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विचार, विकास व संस्कृति को मिलाकर बनता है भारत – डॉ. कृष्णगोपाल जी

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दीनदयाल के विचारों पर काम कर रही है सरकार – राजनाथ सिंह जी

जयपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि श्रीगुरुजी कहते थे कि देश में राजनेता ऐसा कार्य करें कि उसकी परिभाषा ही बदल जाए और श्री गुरूजी के विचार के अनुसार ही दीनदयाल उपाध्याय ने कार्य किया था. डॉ. कृष्णगोपाल जी बुधवार को धानक्या रेलवे स्टेशन पर स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्मारक पर आयोजित दीनदयाल उपाध्याय जयंती समारोह में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि दीनदयाल जी कहते थे कि एक राष्ट्र हमारा प्रधान विचार है और इसके लिए कार्य करना हमारा लक्ष्य है. देश में आजादी आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने कहा था कि आजादी के बाद कांग्रेस को समाप्त कर दिया जाए, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने गांधी जी की बात को नकार कर, ऐसा नहीं किया. कांग्रेस सरकार की नीतियां महात्मा गांधी व सरदार पटेल आदि के विचारों से विपरित जाने लगीं. आजादी के बाद देश की कमान अधूरी मानसिकता के विचार वाले लोगों के हाथों में आ चुकी थी. गीता व रामायण को आदर्श मानने वाले देश में विचार दूषित होने लगे थे. ऐसे में विचारों का संरक्षण करने वाला कोई भी राजनेता नहीं था, कांग्रेस का उत्कर्ष चरम पर था, वामपंथ भी भारत में पैर पसारने लगा था. वामपंथियों का मानना था कि भारत एक देश नहीं है, देश तुष्टीकरण की नीतियों पर चल रहा था. ऐसे में देश के सामने प्रश्न खड़ा हो गया कि कांग्रेस को चुनौती कौन देगा. उस समय पंडित उपाध्याय ने देश का मार्गदर्शन किया. दीनदयाल जी पढ़ाई के बाद संघ से जुड़े और जनसंघ में आए. हालांकि उनके स्वभाव में राजनीति नहीं थी, लेकिन गुरूजी के आग्रह पर उन्होंने जनसंघ का कार्य संभाला और फिर जनसंघ के महामंत्री बने.

सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि विचार, विकास व संस्कृति को मिलाकर जो बनता है, वह भारत है. राजनीति का कर्तव्य है कि देश की परम्पराओं को सुरक्षित रखे व संवर्द्धित करे. यदि भाजपा आज शक्तिपुंज बनी है तो दीनदयाल के विचारों के बदौतल ही है. उन्होंने देश की एकता के लिए कई आंदोलन किए. 1962 व 1965 में चीन के साथ युद्ध के दौरान दीनदयाल उपाध्याय जी ने जनसंघ के कार्यकर्ताओं को सरकार के साथ खड़े होने का आह्वान किया. उस दौरान पूरा विश्व चकित हो गया कि विपक्ष भी एकजुट हो गया है. शत्रु से मुकाबले के लिए देश एकजुट हो, इसके लिए उन्होंने एकता का संदेश दिया.

दीनदयाल उपाध्याय जी का विचार था कि हमारे देश का आम व्यक्ति गांव में रहता है, उन्हें भी सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए. देश में लोगों को रोजगार मिले, लोग साधन सम्पन्न हों, इसके लिए उन्होंने अन्त्योदय का विचार दिया कि अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को भी योजना का लाभ मिलना चाहिए.

एकात्म मानव दर्शन का विचार दिया कि देश में अनेकों प्रकार की भिन्नताएं हो सकती हैं, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से हम सब एक हैं. मजदूर व व्यापारी का हित अलग नहीं हो सकता. राजनेता व जनता के हित अलग नहीं हैं. देश की सभी भाषाएं राष्ट्रीय हैं. लंबी पराधीनता सहने के कारण हमारे मन में विदेशी परिवेश बैठ गया है, लेकिन हमें विदेशी भाव को मन से निकालकर भारत का दर्शन अपनाना होगा. हमारा सांस्कृतिक परिवेश ही हमारी पहचान है. हम स्वतंत्र हैं, हमें विदेशी संस्कारों व विचारों का पूरी तरह से परित्याग करना ही होगा. आजादी के बाद सरकारी तंत्र तो हमारा हो गया, लेकिन हमारा दर्शन व विचार स्वदेशी है क्या. ब्यूरोक्रेसी व सरकार में बैठे लोगों का भारतीय दर्शन है या नहीं. उन्होंने सभी विषयों पर बहुत श्रेष्ठ विचारों को बताया है.

उस समय के राजनेताओं के कारण कश्मीर के साथ अन्याय हुआ. कश्मीर में दो झण्डे, दो संविधान हुए, लोगों पर अत्याचार हुए. उन्होंने कश्मीर पर आंदोलन किया, इसमें श्यामाप्रसाद ने बलिदान तक दिया. एक देश में दो निशान, दो विधान व दो प्रधान नहीं चलेंगे-नहीं चलेंगे. इसका निराकरण पिछले दिनों हो गया है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जी ने कहा कि दीनदयाल जी को नमन करता हूं. यह स्मारक भविष्य में और भी भव्य बनेगा, यह समारक देश के लोगों के लिए आदर्श केन्द्र बनेगा. दीनदयाल जी सिर्फ कर्मयोगी, ज्ञानयोगी, भक्ति योगी नहीं थे, भक्ति समन्वय युक्त, ज्ञानयुक्त ज्ञानयोगी थे. आदर्श पुरूष के रूप में दीनदयाल जी के बारे में विचार किया जा सकता है. उस समय भारत का विभाजन हो चुका था, भारत की अखण्डता खण्डित हो चुकी थी, उस समय उन्होंने नया विचार देने का अविस्मरणीय कार्य किया था. इस देश की राजनैतिक रिक्तता को भरने के लिए नहीं, भारत का सर्वांगीण विकास करने के लिए जनसंघ की स्थापना हुई थी. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद व एकात्म मानववाद के आधार के बाद देश को विकास का विचार मिला. अन्त्योदय का विचार हमारा प्रधान कार्य है. जब जब भारत की सीमाएं छोटी हुईं तो आवाज बुलंद करने का काम उस समय जनसंघ व अब भाजपा ने किया. भारत का भला सिर्फ और सिर्फ एकात्म मानववाद के आधार पर ही हो सकता है. राजस्थान महाराणा प्रताप की धरती है, सम्मान के लिए तो महाराणा प्रताप ने सर्वस्व त्याग दिया था. दीनदयाल जी कहते थे कि देशहित सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. सरकार चलाने वालो ऐसा काम करो कि हर मन को ज्ञान मिले. आत्मा के सुख के लिए भगवान मिल जाए.

इससे पूर्व एक दर्जन प्रतिभाओं का सम्मान किया गया. अतिथियों ने स्मारक का अवलोकन कर प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए. जयंती के अवसर पर  स्कूल के बालक-बालिकाओं ने स्मारक स्थल पर हनुमान चालीसा के पाठ का 1100 बार सामूहिक पठन किया. इसके बाद सेवानिवृत जनरल मानधातासिंह व समारोह समिति के अध्यक्ष प्रो. मोहनलाल छीपा ने प्रदर्शनी का उद्घाटन किया. जनरल सिंह ने दीनदयाल जी के चित्र पर पुष्प आर्पित कर स्मारक का अवलोकन किया. इस दौरान संघ के क्षेत्र संघचालक डॉ. रमेश अग्रवाल जी, क्षेत्र प्रचारक दुर्गादास जी, सह क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम जी सहित अन्य उपस्थित थे.

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