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विमुद्रीकरण तथा नकदी रहित लेन-देन पर एक परिचर्चा का आयोजन

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देहरादून (विसंकें). विश्व संवाद केन्द्र में विमुद्रीकरण तथा नकदी रहित लेन-देन पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया. जिसमें वक्ताओं ने केन्द्र सरकार द्वारा सीमित नकदी अथवा नकदी रहित लेन-देन को प्रोत्साहित करने की योजना का स्वागत किया. देशभर में 8 नवम्बर के बाद 5001000 के नोटों को चलन से बाहर करने के सरकार के निर्णय का भी स्वागत किया गया. इस अवसर पर बोलते हुए सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी डॉ. प्रभाकर उनियाल जी ने कहा कि बड़े नोटों के चलन से बाहर होने के बाद देश में तीन प्रकार के समूह बने हुए हैं. पहला समूह ईमानदार लोगों का है जो तमाम कठिनाइयाँ सहन कर केन्द्र सरकार के पक्ष में खड़ा है. दूसरा समूह उन लोगों का है, जिनके पास अथाह धन है, जिन्होंने देश को वर्षों तक लूटा और देश को बड़ी क्षति पहुंचायी. यद्यपि ऐसे लोग सीमित संख्या में है, लेकिन विरोध में खड़े हैं और मुखर होकर विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि तीसरा समूह ऐसे लोगों का है जो तटस्थ हैं तथा विमुद्रीकरण के प्रभावों को मौन होकर देख रहे हैं. इसका तत्काल लाभ कश्मीर में शान्ति व्यवस्था बहाल होने के रूप में देश के सामने आया है. जब नोट नहीं रहे तो पत्थरबाजी की घटनाओं पर तत्काल रोक लग गयी. एक झटके में नकली नोटों का प्रभाव भी समाप्त हो गया.

परिचर्चा में भाग लेते हुए डीएवी कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ वीबी चौरसिया जी ने कहा कि काले धन को प्रचलन से बाहर निकालने के लिए बड़े नोटों का बन्द होना आवश्यक था. साथ ही समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, आतंकवाद व नकद राशि की जमाखोरी रोकने में इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता था. कार्यक्रम के संयोजक दयाचन्द चन्दोला ने गोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता के बारे में बताते हुए कहा कि विमुद्रीकरण एवं नकदी रहित लेन-देन में कुछ समय की कठिनाई के बाद स्थिति सामान्य हो जाएगी. परिचर्चा का संचालन सहसंयोजक निशीथ सकलानी ने किया.

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