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विश्व को उन्नतावस्था में ले जाने की क्षमता सिर्फ मनुष्य के पास है – डॉ. मोहन भागवत जी

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मुंबई (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत को राष्ट्र के नाते आगे बढ़ने के लिये उसकी भारतीयता भी कायम रखने की आवश्यकता है. भारत एक महान राष्ट्र बनना चाहिये, यह सपना हर किसी भारतीय का होता है. परन्तु समाज के सामने अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने की भी जरूरत होती है. सरसंघचालक जी मुंबई में सुविख्यात चित्रकार वासुदेव कामत जी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम में उन्होंने चित्र प्रदर्शनी का भी लोकार्पण किया.

सरसंघचालक जी ने कहा कि कलाकार अपनी कला की अभिव्यक्ति स्वांत सुखाय भाव से करता है. अपनी परंपरा के अनुसार कोई भी कला सत्यम शिवम् सुंदरम् का दर्शऩ देने वाली होती है. कला का रसास्वाद जैसे समाज का आम आदमी लेता है, वैसा ही आनंद कलाकार को भी लेना चाहिये. अन्यथा वह कला समाज को भी आनंद देने में सक्षम नहीं होगी. उन्होंने कहा कि ईश्वर ने मनुष्य को विचार शक्ति का वरदान दिया है. विश्व को उन्नतावस्था में लेकर जाने की क्षमता सिर्फ मनुष्य के पास है. इस क्षमता को कर्तृत्व का साथ देकर समाज को अर्पण करने का काम हम सभी को करना चाहिये.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि संघ सम्पूर्ण समाज का है, कुछ भौतिक लाभ पाने के लिये कोई संघ कार्य नहीं करता. संघ का स्वयंसेवक समर्पण वृत्ति से कार्यरत है. सामान्य व्यक्ति से लेकर दिगंत कीर्ति प्राप्त असंख्य मान्यवर संघ के स्वयंसेवक हैं, वासुदेव कामत जी ऐसे महानुभावों में से क हैं. उनकी कला से हमने बहुत आनंद प्राप्त किया है. ऐसा आनंद हमें आगे भी मिलता रहे, इसलिए मैं कामत जी के लिये दीर्घायुष्य की कामना करता हूं.

कार्यक्रम में वासुदेव कामत जी ने कहा कि जीवन और चित्ररेखा को संस्कारों की आवश्यकता होती है. यह संस्कार मुझे मेरे परिवार तथा संघ के माध्यम से प्राप्त हुए. कला और जीवन को हम अलग नहीं कर सकते. इसलिए कला के माध्यम से मिलने वाले आनंद को हमें समाज को भी देना चाहिये, क्योंकि ऐसी कला ही विश्वरूप हो सकती है. उन्होंने कहा कि समाज को प्रदूषित करने से अच्छा है कि कलासाधक समाज को प्रफुल्लित करे. संघ से मिला यह संस्कार मेरे जीवन का मार्गदर्शक बन गया है. सरसंघचालक जी की उपस्थिति में सत्कार पाना यह मेरे जीवन की परमोच्च अनुभूति है.

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