लखनऊ. हिन्दी जगत के प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार, आत्मसंयमी, लोकसंग्रही तथा नैतिकता के शाश्वत प्रतिमूर्ति आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म दिवस विश्व संवाद केन्द्र लखनऊ के अधीश सभागार में भारतीय विचार केन्द्र लखनऊ के तत्वाधान में मनाया गया. वे नैतिकता के मूर्तिमान प्रतीक के साथ-साथ कर्तव्य परायण, न्यायनिष्ठ आत्म संयमी, परहित में सर्व समर्पण तथा साहित्य के क्षेत्र में सुधारवादी प्रवृत्तियों का प्रवेश हेतु आजीवन आग्रही रहे. नैतिक दृष्टिकोण की प्रधानता के कारण ही इनका कृतित्व प्रशंसनीय तथा इनका व्यक्तित्व पूज्य था. यह विचार व्यक्त किये कार्यक्रम की मुख्य वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय की डा. हिमांशु सेन ने.
कार्यक्रम के प्रारम्भ में भारतीय विचार केन्द्र के माध्यम से समाज सेवा में अहर्निश लगी रहने, स्वदेशी का घर-घर प्रचार करने वाली, साथ ही गरीब बच्चों को स्वदेशी सामानों के निर्माण व संगीत का प्रशिक्षण देकर उनको आत्मनिर्भर बनाने का कार्य करने वाली श्रीमती नीरा सिन्हा उर्फ वर्षा सिन्हा को पूर्व मुख्य मन्त्री स्व. रामप्रकाश गुप्ता की धर्मपत्नी श्रीमती निर्मला देवी के कर कमलो द्वारा सम्मानित किया गया.
आचार्य जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुये डा. सेन ने कहा कि द्विवेदी जी का जन्म सन् 1864 ई. में उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में हुआ था. इनके पिता का नाम रामसहाय व्दिवेदी था. एक सामान्य परिवार में जन्मे श्री व्दिवेदी ने अपने जीवन में कई असामान्य कार्य किये. इनके ज्ञान प्राप्त करने की पिपासा कभी तृप्त नहीं हुई. उन्होंने जीवन निर्वाह हेतु रेलवे विभाग में नौकरी तो की किन्तु साहित्य में अभिरुचि के कारण उसे छोड़ दिया. पुनः झांसी में जिला अधीक्षक के कार्यालय में प्रधान लिपिक के रूप में नौकरी की परन्तु वहां भी अधिकारियों से मतभेद के कारण अधिक दिन तक नहीं रह सके. आप की साहित्य साधना नौकरी करते हुये भी जारी रही जिसके कारण इस अवधि में भी अनेक संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद तथा आलोचनायें प्रकाशित हुईं. आपने 1903 मे ‘‘सरस्वती’’ मासिक पत्रिका का सम्पादन प्रारम्भ किया जो देश के अनेक भागों में सराही गई.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अन्तरराष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक प्रो. आर. के सिंह ने बताया कि आचार्य महावीर प्रसाद व्दिवेदी नौकरी के साथ-साथ हमेशा अध्ययन में भी लगे रहे. वे हिन्दी के अतिरिक्त मराठी, गुजराती, संस्कृत के महान विद्वान भी थे. लगभग 22 वर्षो तक हिन्दी के लिये जो इन्होंने कार्य किया उसके कारण अनेक लेखको की दिशा और दशा बदल गई इसी कारण यह कालखण्ड व्दिवेदी युग के नाम से जाना गया. आप की कृतियों में काव्य-मंजूषा, कविता कलाप, देवी स्तुति शतक आदि प्रमुख रहीं. साथ ही गंगा लहरी,ऋतु तरंगिणी कुमार संभव सार आदि पद्यग्रन्थ प्रसिद्ध हुये. कार्यक्रम के संयोजक इ. राजेन्द्र मोहन सक्सेना ने आये हुये सभी अतिथियो का धन्यवाद ज्ञापित किया कार्यक्रम का संचालन डा. दिलीप अग्निहोत्री ने किया.