गुरदासपुर (विसंके). मुगल आक्रमण का समय हो, स्वतंत्रता आंदोलन रहा हो या फिर आजादी के बाद देश की रक्षा की बात हो पंजाब के रणबांकुरों ने हमेशा विरोधियों से लोहा लिया और वीरगति को प्राप्त हुये. एक सप्ताह पूर्व 27 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जम्मू दौरे से ठीक एक दिन पहले एक आत्मघाती दस्ते ने अरनिया सेक्टर में बिश्नाह तहसील के कठाड़ गांव में खून की होली खेली, जिसमें पंजाब के तीन सैनिक शहीद हो गये. शुक्रवार, 5 दिसंबर को भी जम्मू-कश्मीर में पंजाब के बहादुर सैनिक आतंकियों से लोहा लेते हुये शहीद हो गये. इनके गांवों में शोक की लहर तो है, लेकिन ग्रामीण गर्व से सीना भी फुला रहे हैं. हर किसी के चेहरे पर गर्व के भाव हैं. गुरदासपुर के अवाण गांव के 31 आरटी में बतौर गनर तैनात मनप्रीत सिंह उड़ी सेक्टर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये. उनके दोनों भाई भी सेना में ही सेवा दे रहे हैं, लेकिन शहादत के बाद उन्हें शोक तो है, पर गर्व से उनका सीना फूला हुआ है.
शहीद मनप्रीत के 21 पंजाब बटालियन में तैनात भाई भूपिंदर सिंह का कहना है, “मुझे अपने भाई के शहीद होने का गम है, लेकिन गर्व भी है. मेरा छोटा भाई शहीद हुआ इससे मेरा साहस और ज्यादा बढ़ गया है”. मनप्रीत की शादी पांच साल पूर्व चरणजीत कौर से हुई थी, जिनका एक तीन वर्षीय बेटा है. बठिंडा का गांव सूच भी शनिवार को शोक और गर्व के भाव में डूबा रहा. गांव के 31 फील्ड रेजीमेंट में बतौर लांस नायक तैनात सुखविंदर सिंह ने भी जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की. सुखविंदर का तीन वर्ष पूर्व गांव बुडावाल निवासी गुरविंदर कौर से विवाह हुआ था. अजनाला के गांव पंडोरी सुक्खा सिंह के निवासी सतनाम सिंह भी शनिवार को उड़ी सेक्टर में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये. उनकी पूरे सैनिक सम्मान से अंत्येष्टि की गयी. हजारों नम आंखों ने उन्हें अंतिम विदाई दी.
शहीद सुखविंदर को अंतिम विदाई देने उमड़े ग्रामीण
रामपुरा फूल जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले के दौरान शहीद हुए लांस नायक सुखविंदर सिंह को रविवार सुबह उनके पैतृक गांव सूच में सैकड़ों नम आंखों ने अंतिम विदाई दी. इससे पहले शहीद सुखविंदर सिंह के पार्थिव शरीर के बठिंडा पहुंचने पर सैन्य छावनी चेतक कोर के सैनिकों ने उनको श्रद्धासुमन अर्पित किये. सैन्य छावनी के सभी कमांड के कमांडरों ने वीर सैनिक को माल्यार्पण किया. सेना के चीफ ऑफ स्टाफ, आर्मी कमांडर, सप्त शक्ति कमान और कर्नल कमांडेंट आर्टिलरी रेजिमेंट की ओर से भी श्रद्धांजलि दी गयी.
सभी बेटों को देश पर कुर्बान कर सकता हूं : शहीद के पिता
गांव सूचमें जैसे ही शहीद सुखविंदर सिंह का पार्थिव शरीर पहुंचा, तो शोकाकुल गांववासी शहीद के अंतिम दर्शन को उमड़ पड़े. रूंधे गले से सिसकते हुए शहीद के पिता हरनेक सिंह ने कहा कि वह एक नहीं अपने सभी बेटों को देश पर कुर्बान कर सकते हैं. उनका बेटा मरा नहीं, बल्कि अमर हुआ है. उनके बेटे ने उनका सीना गर्व से चौड़ा कर दिया.
सुखविंदर सिंह में बचपन से देशभक्ति का जज्बा था
जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले के उड़ी सेक्टर में तैनात सुखविंदर की रात 12 बजे के करीब ही परिजनों से बात हुई थी. सुबह होते ही उसकी शहादत की खबर आ गयी. सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले में शहीद सुखविंदर सिंह के गांव में शोक की लहर दौड़ गयी. सूच गांव निवासी हरनेक सिंह के बेटे सुखविंदर सिंह में शुरू से ही देशसेवा का जज्बा था. वर्ष 2003 में वह सेना में भर्ती हुआ था. वह 31 फील्ड रेजीमेंट में बतौर लांस नायक ड्राइवर की ड्यूटी पर तैनात था.
तीन वर्ष पहले ही उसकी शादी गुरविंदर कौर से हुई थी. अभी उनके कोई बच्चा नहीं था. सुखविंदर के भाई गुरजंट सिंह व सुखदेव सिंह ने कहा कि बेशक वह अपने भाई के जाने का दुख कभी नहीं भुला सकते, लेकिन उन्हें इस बात पर गर्व है कि उसने देश की रक्षा करते हुए अपनी शहादत दी है. सेना की तरफ से कैप्टन गुरमेल सिंह गांव में पहुंचे हुये थे.
सूच गांव के किसी घर में नहीं जला चूल्हा
अपने बेटे की शहीद होने की घटना की खबर शनिवार को ही गांव पहुंच गयी थी और तब से ही यहां शोक का वातावरण था. यही नहीं गांव में किसी के भी घर में चूल्हा तक नहीं जला.
मां ने दिया शहीद बेटे को कंधा
कलानौर (धारीवाल) से खबर मिली कि जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में आतंकियों से लोहा लेते समय शहीद हुए 31 एफडी रेजीमेंट के गनर मनप्रीत सिंह का शव रविवार को उनके पैतृक गांव अवाण पहुंचा. यहां शहीद की मां सुखबीर कौर खुद अपने बेटे के अर्थी को कंधा देकर अंतिम संस्कार के लिये लेकर गईं. इस मौके पर सुखबीर कौर ने बेटे की मौत के दुख को सीने में दफन करते हुए अर्थी को कंधा देते समय शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविन्द्र सिंह विक्की से कहा कि भले ही बेटे के बिछडऩे का उसको बहुत गम है, लेकिन गर्व है कि उसके दो बड़े बेटे अभी सेना में देश को अपनी सेवायें दे रहे हैं. अगर कहीं आगे भी इस तरह की परिस्थिति आई तो वह दोंनों बेटों की कुर्बानी देने से भी गुरेज नहीं करेगी. मां ने बताया कि जब मनप्रीत एक साल का था तो उसके पिता का साया उसके सिर से उठ गया था. मनप्रीत में सेना में भर्ती होने का जज्बा था. वह अगस्त 2002 को सेना में भर्ती हो गया. जब एक मां ने अपने बेटे की अर्थी को कंधा दिया तो सबकी आंखें नम हो गईं. सुखबीर कौर ने आगे कहा कि वह अपने पोते का नाम बदल कर मनप्रीत रखेंगी, आज से उसका यह ही मनप्रीत है. इसके पूर्व 17 रेजीमेंट के जवानों ने शहीद को सलामी दी. इसके बाद सरकारी सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार पैतृक गांव अवाण में किया गया. उल्लेखनीय है कि मनप्रीत ने घायल होने के बावजूद अपने 20 साथियों को बचाते हुए बलिदान दिया.
सेना से जुड़ा है पूरा परिवार
शहीद मनप्रीत सिंह का परिवार भारतीय सेना से जुड़ा रहा है. परिजनों ने बताया कि मनप्रीत सिंह का जन्म 14 नवंबर 1985 को हुआ था. माता सुखबीर कौर और पिता स्व. बलदेव सिंह चाहते थे कि उनका बेटा सेना से जुड़कर देश सेवा करे. आखिरकार मनप्रीत सिंह अगस्त 2002 में सेना में भर्ती हुये. इन दिनों उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में थी. 31 मीडियम रेजिमेंट में बतौर गनर मनप्रीत सिंह का पांच वर्ष पूर्व विवाह हुआ था. उसका एक तीन वर्षीय बेटा अरमानप्रीत सिंह है. बड़े भाई गुरजिंदर सिंह भी भारतीय सेना में हैं. उसका एक और भाई भूपिन्द्र सिंह तथा दो चचेरे भाई भी भारतीय सेना में सेवायें दे रहे हैं. जबकि उनके चाचा सुखदेव सिंह सेना से ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
शहीद सतनाम सिंह
अजनाला से खबर मिली है कि श्रीनगर के उड़ी सेक्टर में देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले गांव पंडोरी, तहसील अजनाला, जिला अमृतसर के शहीद सैनिक सतनाम सिंह का शनिवार को पूरे सैन्य सम्मान के साथ नम आंखों से अंतिम संस्कार कर दिया गया. शहीद सतनाम सिंह की चिता को मुखाग्नि पिता प्रताप सिंह ने दी. इस दौरान शहीद सतनाम सिंह अमर रहे के नारे लगते रहे.अंतिम संस्कार से पहले गांव के श्मशानघाट में तिरंगे में लिपटे शहीद सतनाम सिंह के पार्थिव शरीर पर ब्रिगेडियर वेंकटेश शर्मा, एसडीएम सुरेंद्र सिंह, पूर्व सांसद डॉ. रतन सिंह अजनाला व अन्य गणमान्यों ने फूलमालायें भेंट कर श्रद्धांजलि दी. सैनिक टुकड़ी ने हथियार उलटे कर और हवा में फायर कर सलामी दी. शहीद की पत्नी भूपिंदर कौर व बेटे परवंशप्रीत सिंह तथा पिता प्रताप सिंह, मां सुरजीत कौर व भाई बब्बू का रो रोकर बुरा हाल था.