पुणे (विसंकें). सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि संगीत की कला प्रकृति ने ही मनुष्य के हृदय में रखी है. इस कला का उपयोग राष्ट्रकार्य के लिए हो सकता है और इसके लिए कलाकारों को अपने सुझाव देने चाहिए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निश्चय ही उनका उपयोग करेगा. सरसंघचालक जी रविवार (01 अप्रैल) को आयोजित ‘स्वरांजली’ कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक बापूराव दाते जी की जन्मशती के उपलक्ष्य में पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत की ओर से ‘स्वरांजली’ कार्यक्रम पुणे के सर परशुराम महाविद्यालय के मैदान में आयोजित किया गया. प. महाराष्ट्र संघचालक नानासाहेब जाधव और सह संघचालक प्रतापराव भोसले मंच पर उपस्थित थे. सरसंघचालक जी ने स्व. दाते द्वारा लिखित ‘गायनीकळा’ पुस्तक का विमोचन किया. इस ग्रंथ का पुनर्प्रकाशन राधा दामोदर प्रतिष्ठान और ह. वि. दाते जन्मशताब्दी समिति द्वारा किया गया है.
इस अवसर पर मार्गदर्शन करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ में कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है. हर कोई स्वयंसेवक ही है. स्वयंसेवक को क्या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए, इसका स्व. बापूराव दाते उदाहरण थे. संघ जीवन का वे जीते-जागते उदाहरण थे. बापूसाहेब ने जो उद्यम किया, वह स्वयंसेवकों के लिए किया. संघ का घोष बनना चाहिए, संघ कार्य का विस्तार होना चाहिए. इसी उद्देश्य से बापूसाहेब ने यह काम किया. उन्होंने कहा कि वृंद संगीत सामूहिक भावना निर्माण करने के लिए है. भारत में हर कला का अपना एक प्रयोजन है. पश्चिमी देशों में संगीत का उपयोग रोमांच (थ्रिल) निर्माण करने हेतु होता है. हमारे यहां संगीत का उपयोग शांति एवं भक्ति निर्माण करने के लिए होता है. हमारे यहां संगीत को नादब्रह्म कहते हैं. जो शब्द संगीत से बुद्धि तक जाते हैं, वे हृदय तक पहुंचते है और हृदय से कृति में उतरते हैं. अंग्रजों का अनुशासन प्रसिद्ध था. उनके जैसा अनुशासित प्रदर्शन हो, यह स्वयंसेवकों की इच्छा थी. इसी से घोष पथकों का विकास हुआ.
उन्होंने आह्वान किया कि कलाकारों को राष्ट्र के लिए इस कला के उपयोग का पहलू समझना चाहिए तथा उन्हें इस संदर्भ में अपने सुझाव देने चाहिए. इसमें संदेह नहीं कि आपके दिए सुझाव शास्त्र की कसौटी पर खरे होंगे, लेकिन उन्हें व्यवहार में कितना लाया जा सकता है, यह देखना होगा. इस कला का उपयोग मनुष्य को और अच्छा मनुष्य बनाने के लिए होना चाहिए. यह काम हम करेंगे.
प. महाराष्ट्र प्रांत से चुनिंदा घोष पथकों को आमंत्रित किया गया था. इन पथकों ने अनुशासित पद्धति से घोष का संचालन किया. घोष पर संघ की कई प्रसिद्ध रचनाओं का सुरीला प्रस्तुतिकरण किया गया और उसके माध्यम से बापूराव को संघ की ओर से आदरांजली समर्पित की गई. इस अवसर पर संगीत क्षेत्र के कई गणमान्य व्यक्ति, अधिकारी, स्वयंसेवक और नागरिक उपस्थित थे.
दिग्गजों की उपस्थिति
कार्यक्रम में संगीत क्षेत्र के कई दिग्गज और सेनाधिकारी उपस्थित थे. संगीत क्षेत्र के वरिष्ठ गायक पं. सतीश व्यास, वरिष्ठ गायक रवींद्र साठे, धनंजय दैठणकर एवं मिलिंद तुळणकर, वरिष्ठ निर्देशक राजदत्त, विद्यावाचस्पती शंकर अभ्यंकर, वरिष्ठ ताल वादक तौफिक कुरेशी, बांसुरी वादक पं. केशव गिंडे, पं. सुहास व्यास, मंजिरी आलेगावकर, पं. हेमंत पेंडसे, गायिका सीमंतिनी ठकार, अनुराधा कुबेर, हार्मोनियम वादक सुयोग कुंडलकर, संतूर वादक दिलीप काळे, फय्याज़ हुसैन, बांसुरीवादक नागराज, दरबार ब्रास बैंड के इकबाल दरबार सहित 50 से अधिक कलाकार उपस्थित थे. सेना के तीनों दलों के कई अवकाशप्राप्त अधिकारी भी उपस्थित थे.