करंट टॉपिक्स

संघ का उद्देश्य संपूर्ण समाज को संगठित करना है – डॉ. मोहन भागवत जी

Spread the love

तृतीय वर्ष 2016 (1)नागपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि संघ किसी प्रतिक्रिया के स्वरूप में काम नहीं करता. संघ का उद्देश्य संपूर्ण समाज को संगठित करना है, हिन्दुओं में शक्तिशाली संगठन बनना नहीं. सरसंघचालक जी तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग समारोप कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. रेशिमबाग के मैदान पर आयोजित कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि कोलकाता के साप्ताहिक “वर्तमान” के संपादक रंतिदेव सेनगुप्त जी थे.

डॉ. मोहन जी भागवत ने कहा कि शोषण मुक्त, समतायुक्त समाज का निर्माण करने के लिए संघ काम कर रहा है. संघ के स्वयंसेवकों के व्यवहार एवं निस्वार्थ सामाजिक कार्य के कारण संघ की लोकप्रियता बढ़ रही है. समाज सेवा का काम करने वाले कार्यकर्ताओं में संघ भेद नहीं करता. जो संघ से संबंधित नहीं हैं, लेकिन निस्वार्थ भाव से समाज सेवा करते हैं, ऐसे समाज सेवकों के सम्पर्क में भी संघ रहता है. आवश्यक हो तो उन्हें सहायता भी देता है. उन्होंने कहा कि इस देश में विविध संप्रदाय एवं रीति रिवाज हैं, लेकिन “हम भारतवासी है” यह भावना समान है — यह सिखाने की आवश्यकता नहीं है! इस देश की संस्कृति हम सब को जोड़ती है, यह प्राकृतिक सत्य है. हमारे संविधान में भी इस भावनात्मक एकता पर बल दिया गया है. हमारी मानसिकता इन्हीं मूल्यों से ओतप्रोत है.

उन्होंने कहा कि देश की एकात्मता का सूत्र इतना मजबूत होते हुये भी इतिहास में अलगाववादी ताकतों के शक्तिशाली होने के कारण देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा गया. इसे हमें भूलना नहीं चाहिये. हम इतिहास से सीख नहीं लेंगे तो देश की एकता एवं स्वतंत्रता के लिये खतरा निर्माण हो सकता है.

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि संघ की नियमित चलने वाली शाखा 365 दिन एक जैसी लगती है. 90 वर्षों से यह प्रक्रिया निरंतर चल रही है. उन्होंने पूछा, “ये शाखा क्यों चल रही है?” फिर स्वयं बताया कि देश के लिए. यह स्पष्ट है कि संघ की शाखा देश के लिए चल रही है. संघ कहता है कि यह देश हमारी मातृभूमि है, हम इसकी संतान हैं. यही भाव सम्पूर्ण देश को जोड़ता है. इसलिए हम सभी एक स्वर में “भारतमाता की जय” कहते हैं. देश, प्रांत, भाषा आदि मानवनिर्मित है. मानवनिर्मित प्रत्येक चीज परिवर्तनीय है, वह नष्ट भी हो सकती है. पर हमारा सौभाग्य है कि एक शाश्वत आधार हम सबको जोड़ता है, इसे ही हम संस्कृति कहते हैं, हिन्दुत्व कहते हैं. सनातन काल से आज तक हमारे देश में एक सांस्कृतिक जीवन मूल्य प्रतिष्ठित है. इन जीवन मूल्यों को कोई नहीं सिखाता यह हम देशवासियों की अंतरात्मा में बसा है. हमारा जीवन मूल्य उचित-अनुचित, अच्छा-बुरा और सही-गलत में योग्य के चयन का मार्ग दिखाता है.

सरसंघचालक जी ने कहा कि राष्ट्र को लेकर हमारी स्पष्ट अवधारणा है, इसलिए राष्ट्र को लेकर कोई वाद नहीं. भारतीय संविधान ने भी राष्ट्र की भावनात्मक एकता पर बल दिया है. देश में प्राचीन काल से ही देश में सांस्कृतिक एकता का भाव प्रतिष्ठित है. देश की सांस्कृतिक एकात्मभाव से ही राष्ट्र बना है. डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर ने संविधान को राष्ट्र को अर्पित करते हुए कहा था कि आपस में वैचारिक मतभेद हैं, अलग-अलग मत, पंथ है, पर राष्ट्र की एकता के लिए एकात्म और बंधुत्व के भाव को जगाना होगा. उन्होंने कहा था कि हिन्दू धर्म से जातिगत भेदभाव, छुआछूत और विषमता को समाप्त किया जाना चाहिए. इसी के कारण देश की अवनति हुई और अंग्रेजों ने देश पर राज्य किया. सरसंघचालक जी ने जोर देकर कहा कि देश में छुआछूत और भेदभाव को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय एकात्मता का भाव जगाना होगा.

संघ से जुड़े लोग और संघ के बाहर लोग संघ के सन्दर्भ में बहुत सी बातें कहते हैं. अनुमान लगाते हैं, अनेकों बार यह अनुमान गलत होता है. बाहर से देखकर संघ को नहीं समझा जा सकता. संघ को समझने के लिए संघ में आना होगा. संघ में आ कर ही संघ को समझा जा सकता है. कई बार तो संघ के हितैषी भी संघ के सम्बन्ध में अनुमान लगाने में गलती कर बैठते हैं. लेकिन अपप्रचारों के बावजूद संघ लोकप्रिय हुआ है, विस्तारित हुआ है. संघ किसी को भी विरोधी नहीं मानता. संघ समूचे समाज को संगठित करना चाहता है.

संघ के स्वयंसेवकों के व्यवहार एवं निस्वार्थ सामाजिक कार्य के कारण संघ की लोकप्रियता बढ़ रही है. समाज सेवा का काम करने वाले कार्यकर्ताओं में संघ भेद नहीं करता. जो संघ से संबधित नहीं हैं, लेकिन निस्वार्थभाव से समाज सेवा करते हैं, ऐसे समाज सेवकों के सम्पर्क में भी संघ रहता है. आवश्यक हो तो उन्हें सहयोग भी देता है.

तृतीय वर्ष 2016 (7)रंतिदेव सेनगुप्त जी ने कहा कि इस देश के सामाजिक विकास के लिए देश की संस्कृति, परम्परा एवं धर्म चिंतन पर आधारित, जाति-पाति तथा छुआछूत से परे, एक राष्ट्रवादी संगठन का निर्माण हो, यह स्वामी विवेकानंद का स्वप्न डॉ. हेडगेवार जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर पूर्ण किया.

अपने भाषण में किसी संगठन का नाम लिए बिना उन्होंने राष्ट्रविरोधी अभियान चलाने वाली शक्तियों की आलोचना की. उन्होंने कहा भारत की स्वतंत्रता के लिये लड़ने वाले सुभाषचंद्र बोस के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने वाली, भारत के टुकड़े कर कश्मीर, केरल, मणिपुर को भारत से तोड़ने की बातें करने वाली शक्तियाँ कभी सफल नही होंगी, लेकिन देशवासियों को इन शक्तियों से सावधान रहकर गुजरात से बंगाल तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक “भारत माता की जय” का घोष करना होगा.

मंच पर महानगर संघचालक राजेश जी लोया, वर्ग के सर्वाधिकारी वन्नीयराजन जी उपस्थित थे. प्रास्ताविक एवं आभार प्रदर्शन वर्ग कार्यवाह हरीश जी कुलकर्णी ने किया. शिक्षा वर्ग में 978 स्वयंसेवक शिक्षार्थियों ने भाग लिया. समारोपीय कार्यक्रम में शिक्षार्थियों ने योगासन तथा व्यायाम-योग प्रात्यैक्षिक प्रस्तुत किया. राष्ट्र सेविका समिति की संचालिका शांताक्का एवं अनेक गणमान्य नागरिक कार्यक्रम में उपस्थित थे.

तृतीय वर्ष 2016 (8) तृतीय वर्ष 2016 (5) तृतीय वर्ष 2016 (4) तृतीय वर्ष 2016 (3) तृतीय वर्ष 2016 (2)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *