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संस्कृति, स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आत्मगौरव व वीरता भी आवश्यक – डॉ. कृष्ण गोपाल जी

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नई दिल्ली. भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य के राज्याभिषेक दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में समारोह आयोजित किया गया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे. इस अवसर पर इतिहास संकलन समिति के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बाल मुकुंद पाण्डेय जी तथा विश्व हिन्दू परिषद् के संयुक्त सह संगठन मंत्री विनायक राव देशपाण्डेय जी मंच पर उपस्थित थे.

विश्व हिन्दू परिषद् व सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य राज्याभिषेक समारोह समिति के संयुक्त तत्वाधान में, शनिवार 07 अक्टूबर को गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति में डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि हेमचन्द्र विक्रमादित्य की सेना में लगभग पचास हजार घुड़सवार थे, डेढ़ हजार से अधिक हाथी, एक लाख से अधिक अन्य सैनिक, 51 बड़ी तोपें और सैकड़ों की संख्या में छोटी तोपें थीं. बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, वर्तमान का हरियाणा, दिल्ली, क्षेत्र के सैनिक सम्राट हेमचन्द्र के पास थे. मोहम्मद गौरी के समय से दिल्ली में जो इस्लाम की सत्ता स्थापित हुई थे, उसको बड़ी चुनौती सम्राट हेमचन्द्र ने दी. अनेक युद्ध जीतते हुए उसने दिल्ली पर एक बार पुनः हिन्दू शासन स्थापित किया. लेकिन पानीपत के युद्ध में कुछ कारणों से उनकी पराजय हुई. हार और जीत महत्वपूर्ण तो होती है, लेकिन प्रत्येक हार और जीत एक विश्लेषण देती है.

इस्लाम की सत्ता जो अरब देशों से सातवीं शताब्दी से आगे बढ़ी तो कुछ वर्षों के बाद वो भारत की भूमि पर आक्रमणकारियों के रूप में आ धमके, उनका उद्देश्य शासन ग्रहण करना मात्र नहीं था. जहाँ-जहाँ उन्होंने शासन प्राप्त किया, वहां-वहां के नागरिकों को वह इस्लाम के नियंत्रण के नीचे ले आए. पूरा उत्तरी अफ्रीका, पूरा पश्चिमी एशिया और कुछ हिस्से यूरोप के, कुछ हिस्से मध्य एशिया के, कजाकिस्तान से लेकर के रूस से चीन की ओर जाने वाले सारे क्षेत्र इस्लाम के नियंत्रण में आ चुके थे. एक से चार वर्ष से ज्यादा लड़ने की हिम्मत किसी भी देश में नहीं थी, उनकी अपनी संस्कृति-सभ्यता समाप्त होकर इस्लाम में परिवर्तित हो गयी. लेकिन भारत में सातवीं शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक का युद्ध भारत के वीरों ने लड़ा. लगभग साढ़े तीन सौ-चार सौ वर्षों के बाद ही वो सिंध-पंजाब को पार कर दिल्ली तक आ सके. लेकिन भारत ने इसको स्वीकार नहीं किया. बार-बार यहाँ के योद्धा देश को इस्लामी आक्रमणकारियों के नियंत्रण से स्वतंत्र करने के लिए संघर्ष करते रहे. बारहवीं शताब्दी से लेकर 1947 तक का यह संघर्ष है. हम बहुत बार हारे और जीते, लेकिन आज हम यहाँ जीते हुए लोग हैं, गौरी और मुगलों के पूर्वजों ने शासन किया है, लेकिन उनके वंशज कहाँ किस स्थिति में हैं आज. सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि बहुत सुसभ्य समाज जीत की गारंटी नहीं होता. बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों के बड़े-बड़े ग्रंथालयों के मालिक हम थे, हिंदुस्तान दुनिया की इकॉनोमी में बहुत ऊपर था. आचरण-व्यवहार में हम बहुत श्रेष्ठ थे. लेकिन पराजित हो गए. केवल विद्वत्ता, आर्थिक उन्नति ही पर्याप्त नहीं है, इसके संरक्षण के लिए अपने मन में, हृदय में, अपने बाहुओं में वीरता भी जरूरी है. अन्यथा जैसे आठ सौ वर्षों तक हमने झेला है वो कम नहीं है.

दिल्ली के प्रसिद्ध कवि गजेन्द्र सोलंकी ने आयोजन में सम्राट हेमचन्द्र तथा इतिहास की पुस्तकों में उचित स्थान ना पाने वाले हिन्दू वीरों की शौर्य गाथा को समारोह में छंदबद्ध प्रस्तुत कर, हिंदुत्व के गौरव का सभी को आभास कराया.

बाल मुकुंद जी ने कहा कि अंग्रेजों द्वारा या उससे पहले इस्लामी इतिहासकारों की अज्ञानता के कारण जो इतिहास लिखा गया है, वह भारत को नीचा दिखाने, गुलाम बनाए रखने, भारतीय मानस को समाप्त करने के लिए लिखा गया है. योजनाबद्ध तरीके से भारत के इतिहास को विकृत किया गया है, जिसको पढ़कर आने वाली पीढ़ी गुलामी महसूस करे. 07 अक्टूबर 1556 को हेमचन्द्र विक्रमादित्य का दिल्ली के पुराने किले में पूर्ण हिन्दू-रीति से राज्याभिषेक हुआ. आज आवश्यकता है कि हमारे स्वाभिमान को बढ़ाने वाले ऐसे विस्मृत योद्धा को देख कर हमारी आने वाली पीढ़ी आगे बढ़ सकती है, स्वाभिमान को महसूस कर सकती है, ऐसे महापुरुषों के इतिहास का अनुसरण करना चाहिए. जो परंपरागत इतिहास दिल्ली सल्तनत और अंग्रेजों का इतिहास है, उसको छोड़ना होगा. अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना ने इस कार्य को अपने हाथ में लिया है. भारत के गांव-गांव में हजारों ऐसे महापुरुषों की कहानियां लोगों की जुबान पर आज भी हैं, लेकिन वह इतिहास के पाठ्यक्रम में नहीं आ पाया है. आवश्यकता है कि देश के ऐसे विस्मृत योद्धाओं को हम चिन्हित करें, संगोष्ठियों, पत्र-पत्रिकाओं, लेख, पुस्तकों के माध्यमों से सामने लाकर एक गर्व की अनुभूति आने वाली पीढ़ी को दें.

विनायक राव देशपाण्डेय जी ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत का इतिहास जानबूझ कर तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया, उनको डर लगता था कि हिन्दू अगर जागृत हो जाएगा तो एक दिन भी उनकी सत्ता इस देश में नहीं रहेगी. सत्ता उनकी थी, इसका लाभ उठाकर उन्होंने हिन्दुओं के मन में तिरस्कार और हीन भावना पैदा करने के लिए हमको पढ़ाया. दुर्भाग्य है कि आजादी के 70 साल बाद भी हमको अंग्रेजों द्वारा बताई वही बातें रटाई जा रही हैं. आज दिल्ली में कोई विदेशी पर्यटक घूमने आता है तो दिल्ली का सही इतिहास बताने वाला कोई नहीं होता कि यह पांडवों की बसाई राजधानी है, युधिष्ठिर दिल्ली का पहला सम्राट था. सरकार अपने स्तर पर प्रयत्न करे, लेकिन स्वयंसेवी संगठन भी अपने स्तर पर इसको ठीक करने के लिए प्रयत्न कर सकते हैं.

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