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संस्कृत के प्रचार-प्रसार में भारती पत्रिका का अविस्मरणीय योगदान – राघवाचार्य वेदांती जी

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जयपुर (विसंकें). रेवासाधाम अग्रपीठाधीश्वर राघवाचार्य वेदांती जी महाराज ने कहा कि संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है और संगणक के लिए यह सबसे उपयुक्त भाषा है. संस्कृत के प्रचार-प्रसार में भारती संस्कृत पत्रिका का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. राघवाचार्य जी रविवार को भारतीय संस्कृत प्रचार संस्थानम् द्वारा संघ कार्यालय भारती भवन में आयोजित भारती संस्कृत के पाठक सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे.

भारती के संस्थापक संपादक व दादाभाई गिरिराज शास्त्री जी की जन्मशताब्दी पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि वर्तमान समय में जब अधिकांश साहित्यिक व सांस्कृतिक लघु पत्रिकाएं अपना अस्तित्व खो चुकी हैं, ऐसे समय में वर्ष 1950 दीपावली से प्रकाशित संस्कृत पत्रिका आज भी संपूर्ण भारत में पढ़ी जा रही है. यह सब दादाभाई गिरिराज शास्त्री की तपस्या का प्रतिफल है. दादाभाई राजस्थान में संघ कार्य की नींव के पत्थर थे, उन्होंने संस्कृत के प्रचार में अविस्मरणीय भूमिका निभाई है.

सम्मानित संस्कृत विद्वान, डॉ. एस. राधाकृष्णन आयुर्वेद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बनवारी लाल जी गौड़ ने कहा कि भारती संस्कृत की एक श्रेष्ठ पत्रिका है, जिसके पठन से जीवन की न्यूनताएं दूर होती हैं. इसमें दैनिक जीवन से जुड़ी अनेक बातें मिलती हैं. इसमें प्रकाशित आयुर्वेद स्तम्भ पाठकों के लिए बहुत ही उपयोगी होता है.

कार्यक्रम अध्यक्ष सम्मानित संस्कृत विद्वान एवं भारती के प्रधान संपादक कलानाथ शास्त्री ने कहा कि भारती इस देश की एकमात्र ऐसी संस्कृत पत्रिका है जो बिना किसी व्यवधान के पिछले 70 साल से लगातार प्रकाशित हो रही है. आपातकाल के दौरान भी यह पत्रिका निरंतर प्रकाशित होती रही है. इसमें पारम्परिक विषयों के साथ ही समसामयिक विषयों पर निरंतर विमर्श होता रहा है.

इससे पूर्व अतिथियों ने भारती के पूर्व संपादक व राजस्थान शिखर साधना पुरस्कार से सम्मानित आचार्य प्यारे मोहन शर्मा का सम्मान पत्र, श्रीफल व शॉल देकर अभिनंदन किया. आचार्य शर्मा ने दादाभाई के जीवन से जुड़े प्रसंग सुनाए. चलचित्र के माध्यम से दादाभाई का जीवन दर्शन प्रदर्शित किया गया.

अतिथियों ने भारती के नवीन अंक का विमोचन किया. इस दौरान पाठक व प्रबुद्धजन उपस्थित रहे.

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