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सद्भावना, सहयोग, सहअस्तित्व भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं – प्रो. एस.सी. मित्तल

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नोएडा. बुधवार 04 अक्तूबर को Amity Institute of social Sciences और अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के तत्वाधान में सेक्टर 125 नोएडा स्थित एमिटी विश्वविद्यालय में दो दिवसीय 2017 World History Conference 2017 Values, Ethics and Culture: Past and Present का आयोजन किया गया. स्वागत समारोह में डॉ. निरूपमा प्रकाश जी (निदेशक, एमिटी संस्थान सामाजिक विज्ञान), प्रो. सौरभ अग्रवाल जी (प्रोफेसर और डीन भारतीय वित्त संस्थान), डॉ. बीआर मनी जी (कुलपति और डायरेक्टर, राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली), प्रो. बीएम पांडेय जी (संगठन मंत्री, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना), डॉ. एस.सी. मित्तल जी (अध्यक्ष, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना) ने अपने विचार रखे.

प्रो. सौरभ अग्रवाल जी ने व्यापार के विस्तार के साथ मूल्य संघर्षों के कई उदाहरण दिए. अमेरिका में विकास के साथ-साथ असमानता एवं संघर्ष की बढ़ती प्रवृत्ति की विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि सरकार के समक्ष वर्तमान में नीतिगत संतुलन के माध्यम से जीडीपी विकास को प्रोत्साहित करने की चुनौती है. डॉ. ओम जी उपाध्याय ने धर्म की परिभाषा दी. उनके अनुसार धर्म का पर्याय रिलीजन नहीं है. धर्म 10 गुणों का समुच्चय है. आज नैतिक मूल्यों को जीवन में शामिल करना नितांत आवश्यक है.

डॉ. बीआर मनी जी ने कहा कि पुरातात्विक खोजों के अनुसार भारतीय सभ्यता की कहानी हड़प्पा की खुदाई से मिले साक्ष्यों के अनुसार लगभग 5000 ईसवी पूर्व शुरू होती है. पश्चिम के इतिहासकारों के अनुसार 1000 ईसवी पूर्व वैदिक व्यवस्था के मानने वाले लोग भारत आये थे तथा स्थानीय लोगों के संघर्ष के बाद अपनी सत्ता स्थापित की. किन्तु वर्तमान शोध बताते है कि लोग पश्चिम से पूर्व की ओर नहीं, बल्कि पूर्व से पश्चिम की ओर प्रयाण किये थे. इतिहास के तथ्य हमेशा ही सही नहीं होते, उत्खनन से पता चलता है कि कई धारणाएं जो भारतीयों पर थोपी गयी वे असत्य हैं.

डॉ. बालमुकुन्द पाण्डेय जी ने कहा कि आज वामपंथी विचारधारा से बने इतिहास के अनुसार महिशासुर साम्प्रदायिक है, जबकि डायनासोर काल्पनिक होते हुए भी धर्म निरपेक्ष होता है. हमारी ज्ञान परम्परा को पहले फारसी में बाद में अंग्रेजी में रूपांतरित किया गया. यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम उस अंग्रेजी के ज्ञान को हिन्दी में रूपांतरित करके पढ़ रहे हैं. पश्चिम के अनुसार मूल्य प्रणाली आज आधुनिक है. लेकिन भारतीय ज्ञान के अनुसार चित्त की अवधारणा बतायी गई है. ऋग्वेद में ऐसा वर्णन है कि चित्त की अभिव्यक्ति सत्य होती है. सत्य जब क्रियाशील होता है तो वह धर्म बन जाता है. अंग्रेजी भाषा के कारण हमने मूल को छोड़ दिया.

प्रो. एस.सी. मित्तल जी ने कहा कि भारत के सभी ग्रन्थों के केन्द्र में तीन तत्व अवश्य मिलेंगे – जीवन मूल्य, नैतिकता एवं संस्कृति, असतोमासद्गमय तमसोमाज्योतिर्गमय मृत्योर्माअमृतम्गमय. भारत एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक देश है. जीवन मूल्य के केन्द्र में अध्यात्म है, अध्यात्म न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की भी सोचता है. संस्कृति भारतीय इतिहास की जड़ मूल है. इतिहास हमारा कृतित्व है, जबकि संस्कृति संस्कार से जुड़ी है. सद्भावना, सहयोग, सहअस्तित्व संस्कृति के मूल तत्व हैं. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की अभिव्यक्ति ही इतिहास है. धर्म सुखं अर्थः विवेकानन्द को उद्दत करते हुए कहा कि भारत में धर्म मनुष्य के मर्म में है. भारत में त्यागमूलक योग की बात कही गयी है. दुनिया के किसी भी देश में मोक्ष का विचार नहीं है. जहां पाश्चात्य दर्शन समाप्त होता है, वहीं से भारतीय दर्शन शुरू होता है.

कार्यक्रम के अन्तिम सत्र में विश्व इतिहास कांफ्रेस की प्रोसिडिंग का मंच पर उपस्थिति लोगों ने अनावरण किया. इसके अलावा पुस्तक Relegion thy Relivence का विमोचन किया गया. कार्यक्रम के अन्त में डॉ. वीनस जैन ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया. कार्यक्रम की रूपरेखा एवं विषय परिचय एमिटी इन्स्टीट्यूट आफ सोशल साइन्सेज की निदेशिका डॉ. निरूपमा प्रकाश जी ने प्रस्तुत किया.

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