नागपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी ने कहा कि निरपेक्षभाव से जैसे ईश्वर की पूजा हम करते हैं, उसी भाव से समाज में किया गया सेवाकार्य श्रेष्ठ होता है.
सरकार्यवाह सेवा पुरस्कार समारोह में संबोधित कर रहे थे. नागपुर स्थित साइंटीफिक सभागृह में स्व. रंजना भालचंद्र मार्डीकर तथा स्व. भालचंद्र प्रभाकर मार्डीकर स्मृति पुरस्कार समारोह आयोजित किया गया था. गत ४ वर्षों से मार्डीकर परिवार द्वारा अपने माता पिता की स्मृति में सामाजिक संस्थाओं तथा समाजिक कार्यकर्ताओं को यह पुरस्कार दिया जा रहा है. इस वर्ष नागपुर स्थित माधवनगर के निरामय बहुउद्देशीय संस्था को उनके महिला तथा युवाओं को रोजगार प्रशिक्षण, पानी का atm, आरोग्य के क्षेत्र में योगदान के लिये संचालक उर्मिला क्षीरसागर जी, सुदूर आसाम के चाय बागानों में काम करने वाले सदानी समाज की उन्नति के लिए 28 वर्षों से कार्यरत भास्कर संस्कार केंद्र पार्वतीपुर, असम के अशोक श्रीधर वर्णेकर जी को पुरस्कार दिया गया. पुरस्कार में 33000 रु. रु नगद, मानपत्र तथा एक ग्रन्थ प्रदान किया गया.
सरकार्यवाह जी ने कहा कि थोड़ा सा कुछ कार्य करके बहुतांश लोग उसके फल की अपेक्षा करने लगते हैं, ऐसे लोगों की समाज में कमी नहीं है. बहुत बार अच्छे कामों में भी कुछ पाने की विकृति दिखाई देती है. ऐसी विकृति से अपने आपको दूर रखने की आवश्यकता है और यही एक प्रकार की साधना है. ऐसे ही लोगों द्वारा सेवा का व्रत लिया जाता है और निरपेक्षभाव से अतं तक निभाया भी जाता है. मंदिर में जाना, पूजा अर्चना करना यह तो ठीक है, परन्तु उसके आगे बढ़ कर मनुष्य के अन्दर के भगवान को पहचान कर उसकी सेवा करना यही श्रेष्ठ सेवाकार्य होता है.
उन्होंने कहा कि समाज सेवा के लिये प्रायः कुछ मुख्य बातों को देखना पड़ता है, जिसकी सेवा करनी है उसकी आवश्यकता, समझ तथा मुख्य कठिनाई इसकी पहचान करनी होगी. उसके लिये प्रखर संवेदना की आवश्यकता होती है. इसी संवेदना से हम आने वाली हर कठिनाई का मुकाबला करते हुए खुद को सेवाकार्य में समर्पित कर समाज के दीन दुखियों, जरुरतमंदों की सेवा कर सकते हैं. सेवा कार्य करते-करते उस विषम परिस्थिति को सम-परिस्थिति में परिवर्तित कर समाज को बराबरी की रेखा पर हम लाकर खड़ा करते हैं.
समाज के लोग सदा गरीब रहें, अनपढ़ रहें, बीमार रहें…ये कामना कुछ लोग या कुछ राजनितिक पक्ष करते हैं, क्योंकि अगर ऐसा नहीं रहा तो उनकी दुकान कैसे चलेगी? गरीबी मुक्ति के नारे, समाजसेवा का ढोंग, वही झूठा दिखावा पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहे, यही उनकी कामना रहती है. लेकिन यह विकृति है. पूर्ण निस्वार्थभाव से निरंतर किया गया सेवा का व्रत ही अपने आप प्रतिष्ठा भी प्राप्त करता है. ऐसे लोगों को ढूंढ कर सम्मानित करना भी आवश्यक है.
कार्यक्रम में मंच पर अरविन्द मार्डीकर जी तथा युवा झेप प्रतिष्ठान के संदीप जोशी जी विराजमान थे. प्रस्ताविक परिचय प्रकाश जी ने करवाया.