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सेवा भारती के छात्रावास में पढ़ेंगे शिक्षा से वंचित रहे बच्चे

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शिक्षा सुविधा से वंचित बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहल की है. आजादी के 72 वर्ष बाद भी गरीबी का जीवन जी रहे मुसहरों के बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा के द्वार खोले हैं. 05 अगस्त को आजमगढ़ में इन बच्चों के लिए छात्रावास का शुभारंभ होगा. यह छात्रावास अमर सिंह के तरवां स्थित पैतृक मकान में शुरू हो रहा है. 50 बच्चों के पहले बैच में कुशीनगर के दुदही ब्लाक से 14 बच्चे भेजे गए हैं.

अमर सिंह ने पिछले साल नवम्बर में आजमगढ़ के तरवां में स्थित अपना पैतृक आवास और उससे लगी 10 बीघा जमीन सेवा भारती को दान कर दी थी. सेवा भारती के प्रांत सेवा प्रमुख डॉ. राकेश सिंह ने बताया कि अमर सिंह के पैतृक आवास में ठाकुर हरिश्चन्द सेवा संस्थान नाम से गरीबों, खासकर मुसहर बच्चों के लिए छात्रावास खोलने का निर्णय लिया गया है. दुदही ब्लाक के जिन मुसहर बच्चों को छात्रावास के लिए चुना गया है, उनके परिवारों की स्थिति बेहद खराब है. दिन भर जंगल से लकड़ी बीनना, घोघा-मछली पकड़ने में ही उनका समय जाता था. ऐसे बच्चों के अभिभावकों से उनके बच्चों को पढ़ा लिखाकर अच्छा नागरिक बनाने की बात की गई तो वे सहर्ष तैयार हो गए. 10 से लेकर 15 वर्ष तक के बच्चों का छात्रावास के लिए चयन किया गया है. छात्रावास में 35 बच्चे देश के अन्य गरीब और पिछड़े तबकों से लिए गए हैं.

आजमगढ़ विभाग प्रचारक बैरिस्‍टर ने बताया कि नानाजी देशमुख ने जैसे चित्रकूट में सेवा के प्रकल्‍प चलाए, वैसे ही तरवां के 05 किलोमीटर के क्षेत्र में शिक्षा, स्‍वावलम्‍बन, स्‍वच्‍छता और चिकित्‍सा के कई प्रकल्‍प शुरू किए जाएंगे.

रहने, भोजन से लेकर स्कूल में प्रवेश तक का इंतजाम

सेवा भारती के प्रकल्प के तहत बच्चों के लिए छात्रावास में रहने, भोजन करने के साथ-साथ स्कूलों में प्रवेश कराने तक की व्यवस्था की गई है. डॉ. राकेश सिंह ने बताया कि ज्यादातर बच्चों के प्रवेश विद्यामंदिर के विद्यालयों में कराए गए हैं.

गोरखपुर में 1983 से चल रहा वनवासी कल्याण आश्रम

आजमगढ़ के छात्रावास की ही तरह देश के कई जिलों में वनवासी कल्याण आश्रम छात्रावास चला रहा है. गोरखपुर में 1983 से चल रहे इस प्रकल्प के तहत पूर्वोत्तर राज्यों और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के 70 बच्चों को रखकर पढ़ाया-लिखाया और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाता है. यह प्रकल्प भी पूरी तरह जनता के सहयोग से चलता है. आश्रम को सबसे पहले तत्कालीन गोरखपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ ने गोरखनाथ मंदिर में स्थान दिया था. वहां 1987 तक संचालित होने के बाद रामप्रसाद आप्टीशियन के परिवार ने गोरखनाथ क्षेत्र में ही अपना भवन दान में दे दिया. इस जगह पर महापुरुषों के नाम पर बने कई बड़े-बड़े कमरों में बच्चों के लिए रहने और पढ़ने की व्यवस्था की गई है. शहर में विद्यामंदिर सहित कई विद्यालयों और कोचिंग संस्थानों में बच्चों के पढ़ने का प्रबंध है. यहां से पढ़कर पिछले 36 वर्षों में कई डॉक्टर और केंद्र- राज्यों के अधिकारी-कर्मचारी निकल चुके हैं.

पांच दर्जन से अधिक छात्र कर रहे अध्ययन

आश्रम के गोरक्ष और काशी प्रांत के संगठन मंत्री पंकज सिंह बताते हैं कि इस वक्त कानपुर मेडिकल कॉलेज से एमडी मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे नागालैंड के डॉ. अबेम्बो, एमबीबीएस के बाद निमग्रिम शिलांग से हाउस जॉब कर रहे नागालैंड के कैरिडीबो इसी आश्रम से निकले हैं.

इसी वर्ष आजमगढ़ के राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक कर निकले अजीत को साढ़े चार लाख के पैकेज पर नौकरी मिली है. आश्रम में इस वक्त 10 बच्चे नागालैंड, तीन झारखंड, एक अरुणाचल, तीन मेघालय, एक असम, तीन त्रिपुरा, दो मिजोरम, दो सिक्किम, 40 उत्तर प्रदेश और तीन बिहार के हैं.

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