शिमला (विसंकें). हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के वीसी एडीएन वाजपयी जी ने कहा कि स्वदेशी भावना, स्वदेशी संस्कार और स्वदेशी स्वाभिमान से ही सही रूपों में स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है. इसी से भारत विश्व में अपने आपको स्थापित कर पायेगा. वह शुक्रवार को स्वदेशी जागरण मंच द्वारा शिमला में आयोजित कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में स्वदेशी जागरण मंच ने स्वदेशी अर्थव्यवस्था आज की आवश्यकता विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया. संगोष्ठी में मुख्य अतिथि विवि के वीसी एडीएन वाजपेयी, मुख्य वक्ता स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय संगठक कश्मीरी लाल जी, विशिष्ट अतिथि हरियाणा सरकार में सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष प्रशांत भारद्वाज उपस्थि रहे.
एडीएन वाजपेयी जी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हर वस्तु विदेशों से ही आयात की जा सकती है, भारत किसी तकनीक को विकसित करने में सक्षम नहीं है. सूर्य की रोशनी, पानी, हवा इत्यादि तत्वों से बना यह पर्यावरण विदेशों से आयातित नहीं है. जरूरत इस बात की है कि हम सबसे पहले अपने संसाधनों को भलीभांति पहचानें और विश्व को भी बतायें. भारत में ज्ञान की अमूल्य निधि है, लेकिन इस ओर अनुसंधान करके ही हम विश्वस्तर पर अपनी पहचान बना सकते हैं.
मुख्य वक्ता कश्मीरी लाल जी ने बाबा रामदेव का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक सन्यासी का ही प्रण है कि आज वो विदेशी कंपनियों से स्पर्धा में आकर खडे़ हो गये हैं और बड़ी बड़ी कंपनियों के उत्पाद अब स्वदेशी स्तर पर ही निर्मित हो रहे हैं. भारत में विदेशी कंपनियां हर स्तर पर देश में लूट मचा रही है. इलाज के नाम पर इतनी महंगी दवाईयां वो बेच रहे हैं कि आम लोगों की हालत उसके दाम सुनकर ही खस्ता हो जाती है. हिमाचल के बारे में कहा कि हिमाचल का सेब विश्व प्रसिद्ध है, फिर भी सेब चीन से आयात किया जा रहा है जो बेहद चिंता की बात है. स्वदेशी जागरण मंच लगातार स्वदेशी नीतियों को अपनाने के लिए संघर्ष कर रहा है. उन्होंने किसानों की दुदर्शा पर चिंता जताते हुए कहा कि आज विदेशी कंपनियों की नजर भारतीय बीज बाजार पर पड़ गयी है, जिसका खामियाजा यहां के आम किसानों को भुगतना पड़ेगा. विदेशी कंपनियां बीजों के लिए विदेशी निर्भरता का खेल, खेल रही हैं. जिस पर सरकार को तुरंत ध्यान देना चाहिए और स्वदेशी बीज को तैयार करने के लिए शोध करवाने चाहिए. भारतीय क्षमताओं का जिक्र करते हुए कहा कि सुपर कंप्यूटर का निर्माण भारत ने अपने दम पर किया. आज स्वदेशी तकनीकों के कारण भारत न केवल रक्षा के क्षेत्र में बल्कि हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहा है. उन्होंने भारतीय नीति निर्माताओं से अपील की कि भारतीय वैज्ञानिकों के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करे ताकि देश को अनुसंधान के लिए विदेशी आयात पर निर्भर न होना पड़े. उन्होंन तुलसी, नीम, गिलोये का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में इनके औषधीय गुणों की हमेशा उपेक्षा की जाती रही, जबकि विदेशों में जब इस पर अनुसंधान हुए तो वह इसका पेटैंट करवाने की कवायद में जुटे है. उन्होंने सरकार से अपील की कि विदेशी निवेश में छूट देने से स्थाई विकास नहीं होगा, बल्कि इसके लिए स्वदेशी नीति और स्वदेशी भावना को अपनाने की जरूरत है.
विशिष्ट अतिथि प्रशांत भारद्वाज ने आर्थिक नीतियों के वैश्वीकरण का विरोध करते हुए कहा कि न तो स्वदेशी भाषा का वैश्वीकरण हुआ, न स्वदेशी संस्कृति का. केवल वैश्वीकरण के नाम विदेशी उपभोक्तावाद का ही विस्तार हुआ है, ऐसे में जरूरत इस बात की है कि हम देश को बाजार की दृष्टि से न देखकर एक समग्र राष्ट्र के रूप में देखें. तभी हम वैश्वीकरण के सही अर्थों को जान पायेंगे. उन्होंने स्थाई विकास के लिए स्वदेशी नीति निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया. कार्यक्रम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नागेश ठाकुर एवं स्वदेशी जागरण मंच के प्रांत संयोजक नरोतम ठाकुर ने भी संबोधित किया. प्रांत संयोजक अजय भेरटा ने अतिथियों का कार्यक्रम में आने पर धन्यवाद किया.