करंट टॉपिक्स

स्वदेशी भाव के बिना कोई भी साहित्य अधूरा है – डॉ. कृष्णगोपाल जी

Spread the love

नई दिल्ली (इंविसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने साहित्य में स्वदेश भाव विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि शकों और हूणों ने भी भारत पर आक्रमण किया, लेकिन भारतीय साहित्यकारों के विचारों से प्रभावित होकर वे देश में ही समाहित हो गए. इसके बाद 12वीं शताब्दी में देश पर आक्रमण करने वाले आक्रमणकारियों का बौद्धिक स्तर उस तरह का नहीं था, वे असहिष्णु थे, वे सिर्फ अपनी बात को ही सब कुछ समझते थे. उन्होंने कहा कि ये दुर्लभ संयोग है कि भारत में हुए अधिकतर गुरु साहित्यकार भी थे, योद्धा भी थे, अच्छे शासक भी थे और संत भी थे. भारतीय जनमानस पर सबसे अधिक प्रभाव श्री रामचरितमानस ने डाला. जिसका प्रभाव लोगों में साफ देखा जा सकता है. इसलिए कोई भी साहित्य स्वदेशी भाव के बिना अधूरा है. सह सरकार्यवाह जी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्धघाट्न सत्र में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने क्षेत्रीय साहित्यकारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि देश को एक करने में क्षेत्रीय साहित्यकारों ने बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. समय-समय पर अपने साहित्य में प्रांत के बजाय देश को प्राथमिकता देते रहे हैं. ये साहित्यकारों की ही देन है, जिसने देश को 900 वर्षों तक बचाकर रखा. आनंदमठ का जिक्र करते हुए डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि लोग आजादी के समय वन्दे मातरम गीत गाते-गाते फ़ांसी पर झूलने को तैयार रहते थे और क्रांतिकारियों की टोली में शामिल हो जाते थे.

कार्यक्रम में सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि लोगों की अच्छी इच्छाओं से राष्ट्र उत्पन्न होता है. हम सभी का जन्म देश के विभिन्न राज्यों में कहीं न कहीं हुआ है, लेकिन बोलते सभी भारत माता की ही जय हैं. अंग्रेज कहते हैं कि हमने भारत को एक किया है, इससे पहले भारत विभिन्न रियासतों में विभक्त था, ऐसा नहीं है हजारों साल पहले महाभारत में संजय ने, कालिदास ने अपने महाकाव्य मेघदूत में इसके अलावा विष्णु पुराण और अन्य पुराणों में भी किसी न किसी रूप में भारत का नाम लिया गया है. कोई भी साहित्य तब तक अधूरा रहेगा, जब तक उसमें भारत का नाम नहीं लिया गया हो.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *