मेरठ (विसंकें). स्वामी विवेकानन्द जी का हृदय भी व्यक्तित्व के समान ही विशाल और गम्भीर था. उनका हृदय दीन दुखियों के लिये करुणा का सागर था. उनका कहना था – हमारे माली, मोची, मेहतर, मजदूर, किसान, निर्धन, बीमार सब हमारे भगवान हैं, इनकी सहायता नहीं सेवा करो. ‘दरिद्र नारायण’ की सेवा ही सच्ची भक्ति है. उनके द्वारा दिया गया समरसता का संदेश हर मन में उतरना चाहिये. केवल भाषण या कार्यक्रम से समरसता नहीं आएगी. मन बदलेंगे तभी सच्ची समरसता आएगी.
स्वामी विवेकानन्द जयंती पर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में साहित्यिक सांस्कृतिक परिषद द्वारा आयोजित समरसता यज्ञ के अवसर मुख्य वक्ता राष्ट्रदेव के प्रबन्ध सम्पादक सुरेन्द्र सिंह ने कही. जयन्ती के अवसर पर समरसता यज्ञ का आयोजन किया गया. यज्ञ में मुख्य यज़मान विश्वविद्यालय के स्वच्छता कर्मी रहे. यज्ञ के समापन पर उनके द्वारा सभी को प्रसाद वितरण किया गया.
प्रति कुलपति व साहित्यिक सांस्कृतिक परिषद की अध्यक्षा प्रो. वाई विमला ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के जीवन से युवाओं को बहुत कुछ सीखने की आवयश्यकता है. किस प्रकार से मन को अपने नियंत्रण में रखना है और अपने जीवन में नई ऊंचाईयों को छूना है, यह सब विवेकानंद के जीवन से सीखा जा सकता है. कार्यक्रम के अध्यक्ष चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एन.के. तनेजा ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने मात्र 39 वर्ष के छोटे से जीवन में पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता को स्थापित किया. विश्व को ज्ञान व कल्याण का मार्ग बताते हुए सहिष्णुता व बन्धुत्व का संदेश दिया. कार्यक्रम का संचालन साहित्यिक सांस्कृतिक परिषद के संयोजक डॉ. रूपनारायण तथा समन्वयक डॉ. विघ्नेश त्यागी ने सभी का धन्यवाद किया.