नई दिल्ली (इंविसंकें). जेएनयू में 9 फरवरी, 2016 को घटित राष्ट्र विरोधी घटना के विरोध में एनडीटीएफ द्वारा कांस्टीट्यूशन क्लब में प्रेस वार्ता आयोजित की गयी. प्रेस वार्ता में पत्रकारों को संबोधित करते हुए एनडीटीएफ के अध्यक्ष तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के निर्वाचित सदस्य अजय कुमार ने बताया कि अपनी स्वायत्ता को बचाने का सबसे अच्छा तरीका होता है कि हम स्वयं अनुशासित रहें. स्वायत्ता के नाम पर कुछ भी, चाहे वह अराष्ट्रीय कार्य ही क्यों न हो, उसे करने के बाद कहा जा रहा है कि हमारे ऊपर हमला हो रहा है. तो इसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता. यह सेल्फ डिटरमिनेशन से बच रहे हैं. इसलिए हम व्यापक जांच की बात कर रहे हैं. हम सिर्फ उस घटना की, उस समय क्या स्थिति थी, उस समय कौन-कौन से अराष्ट्रीय लोग वहां मौजूद थे, उनमें से इस घटना के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं, इसकी जांच की मांग कर रहे हैं. जिस तरह के नारे वहां लगाए गए, देश के खिलाफ लगाये गए इन नारों से भीड़ में वहां उत्तेजना से जान-माल के नुकसान की घटना भी हो सकती थी. क्या यह जरूरी है कि जब जान-माल का नुकसान हो जाता, तब केस फाइल किया जाता. यहां केवल चार लोगों के बीच अलग से नारे नहीं लगे थे, वहां सौ के लगभग विद्यार्थी थे, अगर वहां उत्तेजना भड़क जाती तो स्थिति खतरनाक हो सकती थी.
उन्होंने बताया कि हम तीन मुद्दे ध्यान में लाना चाहते हैं. पहला, अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता और जो तमाम स्वतंत्रता लोकतंत्र में दी गयी हैं, हम उसके पक्षधर हैं. परन्तु संविधान में उसकी सीमा भी परिभाषित की गयी है, उसकी रक्षा करनी चाहिये, अपनी स्वायत्ता बचाने के लिए उसका ध्यान रखना चाहिये. दूसरी बात, जो घटना 9 फरवरी को जेएनयू में हुई है, उसमें दोषी पाए गए लोगों के खिलाफ कानून के अनुसार सख्त से सख्त कार्यवाही हो. यह कोई अचानक अकेली घटना वहां नहीं हुई है, बल्कि 1995 से लेकर बार-बार छोटी बड़ी इस तरह की घटनाएं वहां होती रही हैं, और यह खुल करके अब वहां सामने आई हैं. दंतेवाडा में माओवादियों द्वारा 76 सीआरपीएफ के जवानों को मार दिया गया था तो उस समय भी यहां जेएनयू में जश्न मनाया गया था, जिसे प्रिय नहीं कहा जा सकता. कोई ऐसा न्यायिक आयोग बने या सरकार की तरफ से वहां कोई जांच कमेटी बने जो यह देखे की क्या कारण है कि वहां कुछ ऐसे तत्व उस निश्चित दिन प्रकट हो गए या क्या उनकी वहां कोई सक्रिय सहभागिता है, या वहां कोई ऐसी चीज विकसित हो रही है, जिससे इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. यह हमारे तीन मुद्दे हैं.
कैंपस में इस तरह की घटनाएं न हों, इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि सबसे कारगर तरीका होता है कि यूनिवर्सिटी सेल्फ डिसिप्लेन पैदा करे. अपने पैरामीटर तय करे, उसके बाद भी अगर वहां पर इस तरह की घटनाएं होती हैं तो उस आधार पर उसकी जांच कर तय किया जाए कि उस पर क्या कार्यवाही हो. उन्होंने बताया कि आज राष्ट्रपति महोदय को इस पर एक ज्ञापन दिया गया है, जिस पर इन्हीं तीन मुद्दों पर दिल्ली विश्वविद्यायल के एक हजार शिक्षकों की सहमति के हस्ताक्षर हैं.
उनके साथ अधिवक्ता तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के सदस्य राजेश गोगना, एनडीटीएफ के महासचिव डॉ. वीएस नेगी, दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के निर्वाचित सदस्य एवं डूटा के कार्यकारी सदस्य खेमचंद जैन, सलोनी गुप्ता, जसपाली चौहान, गीता भट्ट, विजेंदर कुमार, आरएन दुबे, सुनील शर्मा, अशोक यादव, अनिल शर्मा और आनंद कुमार उपस्थित थे.