विजयवाड़ा. स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद की दो दिवसीय बैठक आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में 27, 28 जून को आयोजित की गई. बैठक में देश की आर्थिक नीतियों, व अन्य विषयों पर विचार विमर्श हुआ. राष्ट्रीय परिषद की बैठक में दो प्रस्ताव सर्वसम्मति के साथ पारित कर केंद्र सरकार का ध्यानाकर्षित किया गया. स्वदेशी जागरण मंच ने स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य आहार, जंक फूड के नाम पर बिक रहे पदार्थों, जनता को भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाने के साथ ही कार्रवाई की मांग सरकार से की है. यानि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों पर प्रभावी अंकुश की आवश्यकता पर जोर दिया. साथ ही देशवासियों से स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक आहारों के प्रति जागरूक रहने का आग्रह किया.
प्रस्ताव – स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों पर प्रभावी अंकुश की आवश्यकता
भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण को नेस्ले जैसी छह लाख करोड़ रूपये का वार्षिक कारोबार करने वाली विदेशी कंपनी द्वारा मैगी जैसे जहरीले पदार्थों से युक्त खाद्य उत्पादों व बिक्री की लंबे समय तक अनदेखी के बाद अब अंततः उन्हें वापस लेने का आदेश देने को बाध्य होना पड़ा है. ऐसे ही जंक फूड यानि उच्च वसा, चीनी व नमक युक्त अस्वास्थ्यकर आहारों के संबंध में उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद भी मार्गदर्शी प्रावधानों में इतनी अधिक कमियां छोड़ दी हैं कि इन अस्वास्थ्यकर आहारों की विद्यालयों में बिक्री पर प्रभावी रोक संभव नहीं होगी.
इनके अतिरिक्त देश में अनेक उत्पादों के संबंध में विहित मानकों का उल्लंघन करने की प्रवृत्ति भी लगातार बढ़ रही है. आईसक्रीम में क्रीम के स्थान पर ऐसी वानस्पतिक वसाओं, जिनका सामान्य खाद्य में उपयोग करने में हिचकते हैं उनका प्रयोग कर उसे फ्रोजन डेजर्ट नामांकित कर देना या स्नान के साबुन में कुल वसा की मात्रा 75 प्रतिशत के स्थान पर 65 प्रतिशत रखने के लिए उसे सौंदर्य साबुन नामांकित कर देने जैसी विधि के प्रावधानों की धज्जियां उड़ाने वाले अनेक उदाहरण हैं. इसी प्रकार विगत डेढ़ दशक से देश में निरंतर मांग किये जाने पर भी जैव रूपांतरित अर्थात जेनेटिकली मोडिफाइड खाद्य युक्त आहारों के लेबल पर जीएम आहार अंकित करने संबंधी कानून का विधेयक लंबित है. जबकि यूरोप सहित कई देशों में कई जीएम आहार प्रतिबंधित है.
डिब्बा बंद पोषक आहारों में कुछ ही विदेशी कंपनियों के बढ़ते एकाधिकार को देखते हुए उद्योगों में होने वाले अधिग्रहणों आदि के विरूद्ध भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की निष्क्रियता भी चिंताजनक है. ऐसी एकाधिकार युक्त कंपनियों द्वारा सीसा व मोनोसोडियम ग्लूटामेट जैसे हानिकारक पदार्थों से युक्त या यकृत, गुर्दा एवं मस्तिष्क आदि के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे आहारों के भारी भरकम विज्ञापन से उपभोक्ताओं को जिस प्रकार भ्रमित किया जा रहा है, उन्हें व उनके विज्ञापनों में उनके मिथ्या गुणों का बखान करके समाज के साथ धोखाधड़ी कर रहे प्रसिद्ध सितारों पर भी रोक व कार्यवाही की पहल आवश्यक है.
जंक फूड कहे जाने वाले उच्च वसा, नमक व चीनी युक्त हानिकारक तैयार आहारों के दुष्प्रभावों पर हुए सभी शोध उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अवसाद, गुर्दे खराब होने आदि के दुष्प्रभाव बता रहे हैं, उन्हें देखते हुए जंक आहार के उत्पादन, बिक्री, लेबल पर चेतावनियों की अनिवार्यता, उन पर प्रभावी अंकुश और बच्चों की पहुंच से दूर रखना आवश्यक है. इसके साथ ही ऐसे खाद्य आहारों के समयबद्ध नमूने लेकर उनके संबंध में कठोर मानकों के विधेयन और दंड के प्रावधान भी अनिवार्य हैं. खाद्य पदार्थों की लेबलिंग की दृष्टि से रोगकारक ए-1 श्रेणी, व रोगरहित रखने में सक्षम ए-2 श्रेणी के, दूध पर भी क्रमशः ए-1 और ए-2 का भी अंकन होना चाहिए. वस्तुतः भारतीय नस्ल की सभी गाय का दूध रोगरहित रखने वाला ए-2 श्रेणी का ही होता है.
विविध अस्वास्थ्यकर आहारों के संबंध में आ रहे शोध परिणामों के आलोक में स्वदेशी जागरण मंच मांग करता है कि ‘सरकार ऐसे सभी तैयार आहारों के मानकों का ठीक से निर्धारण कर उनके उल्लंघन पर कठोर सजा का प्रावधान करे. ऐसे हानिकारक आहारों के उत्पादन और विपणन में लिप्त सभी कंपनियों को दण्डित करे एवं उन्हें देश में कारोबार से पूरी तरह प्रतिबंधित करे. मंच देशवासियों को भी आगाह करता है कि वे ऐसी कंपनियों के सभी उत्पादों का बहिष्कार करते हुए ऐसे घातक आहारों के विरूद्ध संपूर्ण समाज को जागरूक करे.
प्रस्ताव – पूंजी खाते पर रूपये की परिवर्तनीयता अवांछनीय
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और भारत सरकार के वित्त राज्यमंत्री के इन बयानों, कि रूपये को जल्द पूंजी खाते पर परिवर्तनीय बनाना चाहिए, पर आपत्ति दर्ज करते हुए स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद सरकार को आगाह करती है कि रूपये को पूंजी खाते पर परिवर्तनीय बनाने की गलती न करे.
गौरतलब है कि रूपये को पूंजी खाते पर परिवर्तनीय बनाने के प्रयास विभिन्न सरकरों द्वारा समय-समय पर किए जाते रहे हैं. भूमंडलीकरण समर्थकों द्वारा पूंजी खाते पर रूपये को परिवर्तनीय बनाना भूमंडलीकरण की अंतिम कड़ी के रूप में देखा जाता है. पूंजी खाते को परिवर्तनीय बनाने के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि लोग विश्व भर में पूंजीगत परिसंपत्तियां खरीदकर अपना लाभ अधिकतम कर सकते हैं और साथ ही साथ सस्ती दर पर ऋण भी लिए जा सकते हैं. इस संबंध में पहला बड़ा प्रयास वर्ष 1996-97 में किया गया. उस समय की सरकार रूपये को तुरंत परिवर्तनीय बनाने की ओर अग्रसर हो रही थी. ऐसे में स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार के प्रयास को पुरजोर विरोध किया था. सरकार ने अपनी जिद् में रूपये के पूंजी खाते पर परिवर्तनीय करते हुए रोड मैप तैयार करने के लिए तारापोर कमेटी का गठन किया था. उस समय दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भीषण आर्थिक संकट के चलते सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे.
तारापोर कमेटी ने वर्ष 1997 में दक्षिण पूर्व एशियाई संकट से सबक लेते हुए सिफारिश की कि रूपये को पूंजी खाते पर परिवर्तनीय बनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए कई शर्तों का अनुपालन करना जरूरी होगा –
1. वर्ष 1999-2000 तक राजकोषीय घाटे को 3.5 प्रतिशत तक लाया जाए.
2. वर्ष 1997-2000 के बीच मुद्रास्फीति की दर को तीन से पांच प्रतिशत तक लाया जाए.
3. बैंकों के एनपीए को उस समय के 13.7 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत तक लाया जाए.
4. विदेशी आर्थिक नीतियों को इस प्रकार बनाया जाए कि चालू प्राप्तियां बढ़े और इससे ऋण परिशोधन का अनुपात घटाकर 25 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक किया जाए.
गौरतलब है कि रूपये के परिवर्तनीयता के लिए जरूरी शर्तों को आज तक पूरा नहीं किया जा सका. स्वदेशी जागरण मंच का यह सुविचारित मत है कि रूपये की पूंजी खाते पर परिवर्तनीयता देश की बचत को विदेशों में भेजने का काम कर सकती है, जो भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर सकता है. यही नहीं इस कारण से रूपये के मूल्य में उथल-पुथल को बढ़ावा मिल सकता है. संरचनात्मक सुधारों के मद्देनजर देश में नियमन और नियंत्रण की आवश्यकता है. ऐसे में रूपये की परिवर्तनीयता को अनुमति देना खतरनाक हो सकता है.