उदयपुर (विसंकें). साध्वी ऋतम्भरा जी देश और संस्कृति की सबसे बड़ी सम्पत्ति हमारी संतानें हैं. हमारी संतानें ही हमारी सांस्कृतिक विरासत की संवाहक होंगी. लेकिन यह तभी संभव होगा, जब हम उनमें हमारे संस्कारों की नींव को मजबूत बनाएं और इसके लिए हमें अपनी संतानों को स्वयं समय देना होगा, किसी और के भरोसे संस्कारों का निर्माण नहीं हो सकता.
साध्वी ऋतम्भरा जी ने सोमवार शाम को उदयपुर के टाउन हॉल स्थित सुखाड़िया रंगमंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से आयोजित प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन में संबोधित किया. उन्होंने कहा कि संस्कार मजबूत होंगे, तभी हमारी सांस्कृतिक विरासत मजबूत हो पाएगी और भारतवर्ष अपने गौरवशाली सांस्कृतिक वैभव को अक्षुण्ण बनाए रख सकेगा. अनुभव के सागर बुजुर्गों को संबोधित करते हुए कहा कि वे वृद्धाश्रम की सोच को समाप्त करें और वानप्रस्थि की भूमिका निभाएं. संयुक्त परिवार व्यवस्था को बढ़ावा दें और सांस्कृतिक विरासत की शिक्षा देकर नई पीढ़ी को उसका महत्व समझाएं. स्कूल और अभिभावकों को भी स्वयं को एक ही परिवार का हिस्सा मानना होगा, एक-दूसरे के पाले में कर्तव्य की गेंद फैंकने वाले स्कूल और अभिभावक कभी जिंदगी का मैच नहीं जीत सकते.
उन्होंने मैकाले की शिक्षा व्यवस्था को भारतवर्ष के लिए नुकसानदेह बताया और कहा कि इस व्यवस्था ने भारत के चिंतन को समाप्त कर दिया. भारत में शिक्षा, चिकित्सा कभी रोटी व्यापार नहीं थे, बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः का चिंतन हमारी संस्कृति है. यह चिंतन आज कहां खो गया, इस पर गंभीरता से सोचना ही काफी नहीं है, इस स्थिति को बदलने के लिए घर-परिवार से ही शुरुआत करनी होगी. उन्होंने गुरुकुल पद्धति को वैज्ञानिक कसौटी वाली बताते हुए कहा कि परीक्षा तात्कालिक विषय नहीं होकर व्यावहारिक विषय होना चाहिए. शिक्षा से बालक कितना संस्कारित हुआ है, यह उसकी मानवीय संवेदनाओं और सहयोग की प्रकृति से तय किया जाना चाहिए. प्राचीन गुरु-शिष्य परम्परा यही सिखाती थी. हमारे यहां देने का संस्कार है, किसी से वसूलने का नहीं. जब आपका हृदय लगातार काम करते हुए हमारी जीवन ऊर्जा को बनाए रखता है, तब हम अपने व्यक्तित्व में इस बात को क्यों नहीं उतारते. दीदी ऋतम्भरा ने कहा कि उन्होंने वेदना से प्रेरणा पाई है. वात्सल्य धाम मेरे गुरुजी की प्रेरणा है. पुरातन भारत में अनाथालय नहीं थे, वृद्धाश्रम भी नहीं थे. महर्षि वाल्मीकि ने माता सीता को पाला, लव और कुश वहीं जन्में, यही तो भारतवर्ष के मूल्य हैं, जिन्हें हमें पुनर्स्थापित करना है.
कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय संघचालक डॉ. भगवती प्रकाश जी ने कहा कि बसंत पंचमी के दिन साध्वी ऋतम्भरा जी का हमें सान्निध्य मिला है. हम यह संकल्प लेकर जाएं कि प्रतिदिन हम समाज के अभावग्रस्तों की मदद के प्रति तत्पर रहेंगे. उदयपुर में वृद्धाश्रम की आवश्यकता नहीं हो, ऐसा प्रयास करें. कोई भूखा नहीं सोए, सब को काम मिले, इस दिशा में सभी प्रयास करें. उन्होंने कहा कि कतिपय टीवी धारावाहिक हमारी संस्कृति का नाश कर रहे हैं. परिवार को तोड़ने के दृश्य हमारी संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं. एकात्म मानव दर्शन हमें यह बताता है कि परिवार में सौहार्द रहेगा तो समाज में सौहार्द रहेगा. भारत एक सशक्त राष्ट्र हो उसके लिए यह आवश्यक है कि समरसता से एकात्मकता का भाव दृढ़ हो.
कार्यक्रम के आरंभ में साध्वी ऋतम्भरा जी ने 93 वर्षीय स्वयंसेवक विद्या वल्लभ दवे जी का सम्मान किया. रवि बोहरा जी ने काव्य गीत प्रस्तुत किया. मंच संचालन सुभाष जोशी जी ने किया.