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हमें प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा – पद्मश्री सुभाष पालेकर

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मेरठ. चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के नेताजी सुभाष सभागार में लोक भारती मेरठ क्षेत्र के प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण शिविर में मेरठ-सहारनपुर मंडल से आए किसानों से पद्मश्री सुभाष पालेकर जी ने प्रकृति के माध्यम से ही खेती करने का आह्वान किया.

उन्होंने कहा कि प्रकृति ने पेड़-पौधों के भोजन और पानी के लिये पूरी व्यवस्था की है, हमने ही उसे नष्ट किया है. हमें बताया गया कि बिना कीटनाशक और रासायनिक खाद के खेती हो ही नहीं सकती. खेत में जितना खाद और कीटनाशक डालोगे, उत्पादन उतना ही अधिक मिलेगा, लेकिन यह झूठ निकला. इस झूठ ने खेती की लागत बढ़ा दी. उत्पादन घट रहा है. खेती की लागत नहीं निकल रही. मौसम की मार झेलने में ये फसलें विफल हैं. नतीजा यह है कि किसान आत्महत्या कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि इस वक्त जैविक खाद आधारित खेती करना भी असम्भव है. आखिर इतनी जैविक खाद (गोबर से निर्मित) आएगी कहां से. समय की आवश्यकता है कि किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा. यही उनकी समस्त समस्याओं का समाधान है. यही तरीका खेती की लागत शून्य करते हुए आय दोगुनी कर सकता है.

उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर प्रकृति का एक पूरा तंत्र है. इस धरती पर प्रकृति पहले आई और इंसान लाखों साल बाद. तब कोई खाद या कीटनाशक नहीं था. आप जंगल में देखें, वहां पौधों को कौन खाद-पानी और कीटनाशक देता है. फलों से लदे रहते हैं, इन पौधों का पत्ता कहीं से भी तोड़कर दुनिया के किसी भी लैब में टेस्ट करा लीजिये, पोषक तत्वों की कमी नहीं मिलेगी. ऐसा क्यों है? क्योंकि इनका संरक्षण, संवर्धन प्रकृति करती है. हमें इसी तंत्र को समझना होगा.

देसी गाय के गोबर और गौमूत्र में मिट्टी को उर्वर और शक्ति सम्पन्न बनाने की क्षमता है. 14 वर्षों के प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ कि देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र में मिट्टी में जीवाणुओं को सक्रिय करने की शक्ति होती है. देसी गाय एक दिन में 11 किलो गोबर करती है. दस किलो गोबर एक एकड़ में पर्याप्त है. तीस दिन के गोबर से 30 एकड़ खेती की जा सकती है.

पालेकर ने कहा कि खेतों में रासायनिक खाद का अंधाधुंध प्रयोग ग्लोबल वार्मिंग के लिये भी जिम्मेदार है. तापमान जैसे-जैसे बढ़ता है, रसायनिक खादों में शामिल कार्बन मुक्त होकर वातावरण में पहुंचता है. फिर  यह ऑक्सीजन से क्रिया करके कार्बन डाईऑक्साइड बनाता है. यह पृथ्वी को गर्म करने के लिये सबसे जिम्मेदार गैस है. उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वे अपने दिमाग से खाद और कीटनाशकों पूरी तरह निकाल दें. 2050 में आज की तुलना में दोगुने उत्पादन की जरुरत होगी और यह केवल प्राकृतिक खेती से ही संभव है.

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