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हम सब के प्रयासों से साकार होगा राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने का स्वप्न – डॉ. अशोक कुकडे

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मुंबई (विसंकें).  पद्मभूषण डॉ. अशोक कुकडे जी ने कहा कि समाज जीवन के हर क्षेत्र में स्वयंसेवक को संगठन का कार्य करना आवश्यक है, यह मंत्र आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी ने दिया था. डॉ. हेडगेवार के संगठन शास्त्र का, उनके संघ संस्कारों को अंगीकार करने से ही विवेकानंद रुग्णालय का यह कार्य संभव हुआ. मैंने भले ही वैद्यकीय शिक्षा प्राप्त की है, परंतु वास्तव में एक स्वयंसेवक के नाते संगठित होने का अनुभव बचपन से ही मिला है. संगठित रूप से श्रम किया जाए तो समाज भी हमारा साथ देता है और संकटों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति भी प्राप्त होती है. आज का यह दिन इस संगठन वृत्ति का परिणाम है.

महाराष्ट्र के लातूर स्थित विवेकानंद रुग्णालय के संस्थापक और पश्चिम क्षेत्र के पूर्व संघचालक डॉ. अशोक कुकडे को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है तथा डॉ. ज्योत्स्ना कुकडे को एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की उपाधि प्रदान की है. केशव सृष्टी संस्था ने दोनों के सम्मान में मुंबई के माहेश्वरी भवन में, शनिवार 11 मई को समारोह आयोजित किया था. वनबंधु परिषद के पूर्व अध्यक्ष रामेश्वर लाल काबरा तथा बापूजी कार्यक्रम में उपस्थित रहे. समारोह के अध्यक्ष राजेंद्र बारवाले जी, कार्यक्रम के संयोजक विष्णुदास जी मंच पर उपस्थित रहे.

डॉ. कुकडे ने कहा कि विवेकानंद रुग्णालय जिस कालखंड में स्थापित हुआ, वह संघ के लिये अत्यंत प्रतिकूल कालखंड था. हम सब डॉक्टर मूलतः स्वयंसेवक थे. लातूर में हम शाखा में जाते थे. हमारे प्रयत्न मिटाने के अनेक प्रयास किये गए. पहले 15 साल विवेकानंद रुग्णालय के लिये विशेष प्रतिकूल थे. आज का काल अनुकूल है. विवेकानंद रुग्णालय का काम और बढ़ाना आवश्यक है. संघ स्वयंसेवक जिस क्षेत्र में भी जाए, उस क्षेत्र में राजदूत का काम करना चाहिये, श्रीगुरू जी की यह सीख आज भी स्मरण है. राष्ट्र को परम वैभव तक ले जाने का संघ का स्वप्न हम सब के एकत्रित प्रयासों से पूर्ण होगा. आज इस गौरव समारोह की वजह से 80 साल की उम्र में भी ऊर्जा मिलती है तथा काम करने की प्रेरणा मिलती है.

साक्षात परमेश्वर दर्शन का अनुभव

डॉ. ज्योत्स्ना कुकडे ने कहा कि वास्तव में हम दोनों को प्राप्त हुआ सम्मान मुझे ही मिला है, ऐसी हर लातूरवासी की भावना है. यह देखकर मुझे उनमें परमेश्वर दर्शन की अनुभूति मिलती है. मेरी डी.लिट उपाधि का संबंध केवल वैद्यकीय शिक्षा से संबंधित नहीं, बल्कि लातूर निवासियों से जुड़ा है. विवेकानंद रुग्णालय का परिवार उन लोगों से ही समृद्ध हुआ है. हमारी डॉक्टरी की पढ़ाई पीछे चली गई और हम लातूर वासियों के चाचा-चाची बन गए. इसका मुझे अभिमान है.

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