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हिन्दू दर्शन के मूल में भेदभाव का उल्लेख नहीं – अभय जी

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Pressकाशी (विसंकें). ‘‘नमामि गंगे’’ द्वारा काशी में एक नये युग का सूत्रपात करते हुए जूता सिलने का कर्म करने वाले शिल्पकार बन्धु जो सन्त शिरोमणि सन्त रविदास के वंशज हैं, उनका सम्मान नगवां स्थित रविदास पार्क में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक अभय जी, काशी विद्वत परिषद् के अध्यक्ष पद्मश्री पं. रामयतन शुक्ल, मंत्री राम नारायण द्विवेदी की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ.

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक अभय जी ने कहा कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज एक ही पूर्वजों की संतान है तथा हिन्दू दर्शन के मूल में भेदभाव का उल्लेख नहीं है. जो भी विभाजन हमें दिखाई देता है, वह कर्म के आधार पर है. सन्त रविदास का जीवन दर्शन हमें यह शिक्षा देता है कि ‘‘जाति-पाति पूछे नहीं कोई, हरि का भजै तो हरि का होईं.’’

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए काशी विद्वत् परिषद् के अध्यक्ष पं. रामयतन शुक्ल का कहना था कि भारत की संत परम्परा में रविदास का स्थान श्रेष्ठ है. हमें उनका सम्मान करना चाहिए. वह रामानन्द के शिष्य थे तथा समाज को सही दिशा में ले जाने वाले महापुरुष थे.

जूता सिलने का कार्य करने वाले बन्धु जो वाराणसी में सड़कों के किनारे विभिन्न स्थानों पर रहकर सन्त रविदास को अपना गुरु मानते हुए जीविकोपार्जन का कार्य करते हैं, उन्हें माला, अंगवस्त्रम् एवं विशेष रूप से निर्मित रविदास जी का स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया. प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत एवं परिचय नमामि गंगे के क्षेत्रीय संयोजक अशोक चौरसिया ने किया. विषय की प्रस्तावना मीना चौबे ने किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. उत्तम ओझा ने एवं धन्यवाद ज्ञापन अंकिता खत्री ने किया. कार्यक्रम में संजीव चौरसिया एडवोकेट, डॉ. अष्टभुजा मिश्रा, चन्दन दास गुप्ता, डॉ. ओपी पाल, अनुज गुप्ता, कविता मालवीय, योगिता तिवारी, शिप्रा तिवारी, संजय सिंह एवं डॉ. सुनील मिश्रा आदि उपस्थित थे.

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