शिमला (विसंकें). पहाड़ी राज्य हिमाचल और चुनौतियां विषय पर बोलते हुए राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि हिमाचल में पारंपरिक ढंग से ही प्रादेशिक चुनौतियों से निपटा जा सकता है. हिमाचल की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार ही योजनाओं को बनाने की जरूरत है और इसे पाठ्यक्रम में भी शामिल करने की आवश्यकता है, ताकि प्रदेश में चल रहे जल संकट, पर्यावरण संरक्षण आदि विषयों को प्राथमिकता मिल सके. शुक्रवार को शिमला के गेयटी थिएटर में राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने राष्ट्रीय पत्रिका चाणक्य वार्ता का विमोचन किया. इस अवसर पर पहाड़ी राज्य हिमाचल और चुनौतियां विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ. उत्तर क्षेत्र संगठन मंत्री लक्ष्मी नारायण भाला जी ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की तथा केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के कुलपति डॉ. कुलदीपचंद अग्निहोत्री जी बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित रहे. राज्यपाल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक विकसित राज्यों की फेहरिस्त में शामिल है. यहां पर जैविक कृषि को अपनाने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है. जलसंकट से निपटने के लिए कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों और पंचायत प्रतिनिधियों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है. इन सभी के प्रयासों से ही जलसंकट से सुनियोजित तरीके से निपटा जा सकता है.
मुख्य वक्ता डॉ. कुलदीपचंद अग्निहोत्री जी ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्र में कठिन भौगोलिक चुनौतियां हैं, जिसके लिए सामूहिक चिंतन प्रक्रिया को बल दिए जाने की आवश्यकता है. पत्रकारिता के विषय पर कहा कि चाणक्य वार्ता सकारात्मक पत्रकारिता के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहा है. साथ ही सकारात्मक विचारों द्वारा क्षेत्रीय समस्याओं का समाधान करने के लिए सुझाव दिया कि इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर बैठकर नीति निर्धारण करने जरूरत है.
लक्ष्मी नारायण भाला जी ने कहा कि पत्रिका ने अपने आरंभ से जिन दायित्वों को लक्ष्य करके कार्य शुरू किया था, उसी के अनुरूप उसका आज भी अनुपालन हो रहा है. अलग-अलग स्थानों की विभिन्न समस्याओं को चिन्हित करके उसके समाधान की दिशा में चाणक्य वार्ता बेहतर प्रयास कर रहा है. कार्यक्रम के दौरान कई वरिष्ठ पत्रकारों को सम्मानित भी किया गया. इस अवसर पर चाणक्य वार्ता के संपादक डॉ. अमित जैन, खादी और ग्रामोद्योग के निदेशक डॉ. धनकट, चाणक्य वार्ता के राजस्थान के ब्यूरो प्रमुख डॉ. अमर सिंघल सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे.