नई दिल्ली. राजाराम जी का जन्म दो अगस्त, 1960 को राजस्थान के बारां जिले के ग्राम टांचा (तहसील छीपाबड़ौद) में हुआ था. उनके पिता श्री रामेश्वर प्रसाद यादव एक किसान थे. इस कारण खेती और गाय के प्रति उनके मन में बचपन से ही प्रेम और आदर का भाव था. आगे चलकर संघ के प्रचारक बनने के बाद भी उनका यह भाव बना रहा और वह कार्यरूप में परिणत भी हुआ. राजाराम जी की लौकिक शिक्षा केवल कक्षा 11 तक ही हुई थी. वर्ष 1977 में आपातकाल और संघ से प्रतिबंध समाप्त होने के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने नये क्षेत्रों में पहुंचने के लिए जनसंपर्क का व्यापक अभियान हाथ में लिया. इसी दौरान राजाराम जी संपर्क में आये. उन्हें यह काम अपने मन और स्वभाव के अनुकूल लगा. अतः वर्ष 1981 में घर छोड़कर वे प्रचारक बन गये. वर्ष 1985 तक वे बिलाड़ा में तहसील प्रचारक और फिर एक वर्ष धौलपुर के जिला प्रचारक रहे.
इन दिनों पंजाब में खालिस्तान आंदोलन चरम पर था. हर दिन हिन्दुओं की हत्याएं हो रही थीं. हिन्दू अपनी खेती, व्यापार और सम्पत्ति छोड़कर पलायन कर रहे थे. ऐसे में संघ के कार्यकर्ताओं ने पूरे देश के हर प्रांत से एक साहसी एवं धैर्यवान युवा प्रचारक को पंजाब भेजा. इससे पलायन कर रहे हिन्दुओं में साहस का संचार हुआ. यद्यपि यह काम बहुत खतरे वाला था. संघ की शाखा पर भी एक बार आतंकियों का हमला हो चुका था. फिर भी देश भर से प्रचारक पंजाब आये. वर्ष 1986 में राजाराम जी को भी इसी योजना के अन्तर्गत पंजाब भेजा गया. यहां उन्हें रोपड़ जिला के प्रचारक की जिम्मेदारी दी गयी.
कुछ ही समय में वे पंजाब की भाषा, बोली और रीति रिवाजों से समरस हो गये. वर्ष 1992 तक यह जिम्मेदारी संभालने के बाद वे ‘भारतीय किसान संघ’ के प्रांत संगठन मंत्री बनाये गये. इसके बाद वर्ष 1995 से 98 तक वे कपूरथला और फिर 2002 तक फरीदकोट के जिला प्रचारक रहे. जब संघ के काम में ग्राम विकास का आयाम जोड़ा गया, तो राजाराम जी को इसकी पंजाब प्रांत की जिम्मेदारी दी गयी. वर्ष 2004 से 2006 तक पटियाला में विभाग प्रचारक, 2010 तक ग्राम विकास के प्रांत प्रमुख और फिर वे गौ संवर्धन के पंजाब प्रांत के प्रमुख बनाये गये. हंसमुख होने के कारण वे हर काम में लोगों को जुटा लेते थे.
यूं तो राजाराम जी सभी कार्यों में दक्ष थे, पर गौसेवा में उनके प्राण बसते थे. वे इसे देशभक्ति के साथ ही श्रीकृष्ण की भक्ति भी मानते थे. उनके प्रयास से पंजाब में ‘गौसेवा बोर्ड’ का गठन हुआ. सरकार ने गौहत्या के विरुद्ध बने ढीले कानून को बदलकर गौहत्यारों के लिए 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा निर्धारित की. इतना होने पर भी वे शांत नहीं बैठे. उनका मत था कि गाय की दुर्दशा का एक बड़ा कारण गोचर भूमि पर गांव के प्रभावी लोगों द्वारा कब्जा कर लेना है. पहले गोवंश इस भूमि पर चरता था, पर अब गौपालकों को चारा खरीदना पड़ता है. अतः गौपालन बहुत महंगा हो गया है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद उन्होंने गोचर भूमि की मुक्ति का अभियान प्रारम्भ किया. उनके प्रयास से पंजाब शासन ने इसके लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया.
इस बीच वे हृदय रोग से पीड़ित हो गये. चिकित्सकों ने उन्हें शल्य क्रिया कराने को कहा, पर वे राज्य में चलने वाली गौशालाओं की स्थिति सुधारने तथा विभिन्न विद्यालयों में चल रही गौ-विज्ञान परीक्षा की सफलता हेतु भागदौड़ करते रहे. इसके लिए ही वे मंडी गोविंदगढ़ आये थे. वहां स्वामी कृष्णानंद जी द्वारा गौ-कथा का पारायण कराया जा रहा था. 24 नवम्बर, 2013 को कथा के बाद स्वामी जी से चर्चा करते हुए उन्हें भीषण हृदयाघात हुआ और वहीं उनका प्राणांत हो गया. गौभक्त राजाराम जी का अंतिम संस्कार उनके गांव में ही किया गया.