नई दिल्ली. संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह का प्रयाग से बड़ा गहरा नाता था. उन्होंने वहां से उच्च शिक्षा प्राप्त की तथा फिर वहीं प्राध्यापक भी रहे. उनका वहां एक निजी मकान भी था. उनके निधन के बाद वहां ‘प्रो. राजेन्द्र सिंह स्मृति सेवा न्यास’ का गठन किया गया है. सेवा कार्य को समर्पित इस न्यास के संगठन मंत्री थे, संघ के वरिष्ठ प्रचारक राधेश्याम जी.
राधेश्याम जी का जन्म छह मई, 1955 को उ.प्र. के महोबा जिले में स्थित ग्राम ‘अतरपठा’ में हुआ था. उनके पिता रामनारायण त्रिपाठी जी की गांव के मुखिया होने के नाते अत्यधिक प्रतिष्ठा थी. जमींदारी के काल में इस परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी, पर धीरे-धीरे समय बदल गया. चार भाइयों में राधेश्याम जी का दूसरा नंबर था. बचपन से वे पढ़ने में अच्छे थे. घर वालों की भी इच्छा थी कि वे खूब पढ़ें. अतः उन्हें उस क्षेत्र के प्रतिष्ठित ‘त्यागमूर्ति खैर इंटर कॉलेज, गौसराय (झांसी)’ में प्रवेश दिला दिया गया.
पढ़ाई में अच्छे होने के कारण सभी शिक्षक राधेश्याम जी से स्नेह करते थे. एक अध्यापक रुद्रमल परसारिया जी ने उनका परिचय संघ की शाखा से कराया. धीरे-धीरे उनका रुझान शाखा के प्रति बढ़ने लगा. जब इसका पता उनकी दादी को लगा, तो उन्होंने इसका विरोध किया, पर तब तक संघ का विचार राधेश्याम जी के मन में गहराई तक पैठ बना चुका था.
इंटर के बाद पं. रामसहाय शर्मा डिग्री कॉलेज नेवाड़ी (म.प्र.) से बीए तथा झांसी से बीपीएड कर वे महोबा के इंटर कॉलेज में शारीरिक विषय के अध्यापक पर पर नियुक्त हुए. वर्ष 1975 में उनका विवाह पुष्पादेवी से हुआ, जो उस समय एमबीबीएस की छात्रा थीं. विवाह के बाद जीवन सामान्य गति से चलने लगा, पर विधि का विधान कुछ और ही था. इस दाम्पत्य से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जो अल्पकाल में ही चल बसा. यह दुख उनकी पत्नी अधिक समय तक नहीं झेल सकी और वह भी असमय ही काल कवलित हो गयीं.
इन गंभीर झटकों ने राधेश्याम जी का जीवन बदल दिया. अब उनकी रुचि सांसारिक कार्यों से हट गयी. अतः झांसी के तत्कालीन विभाग प्रचारक ठाकुर संकठाप्रसाद की प्रेरणा से वे पूरा समय संघ और अन्य सामाजिक कामों में लगाने लगे. कुछ समय वे महोबा के सरस्वती शिशु मंदिर में प्राचार्य रहे. फिर यह सब छोड़कर वे प्रचारक बन गये.
प्रचारक के नाते उन पर क्रमशः फरुखाबाद तहसील, हरदोई जिला, उरई जिला, लखनऊ विभाग, गोंडा विभाग तथा बहराइच विभाग का काम रहा. फिर वे गोरक्ष प्रांत के बौद्धिक प्रमुख बनाये गये. उरई जिले में उनका काम विशेष उल्लेखनीय रहा. उन्होंने एक बार योजनाबद्ध रूप से 40 विस्तारक निकाले तथा दस दिन के प्रशिक्षण के बाद सबको दो-दो मंडलों का काम दिया. इस प्रकार जिले के सभी 82 मंडल शाखायुक्त हो गये.
सादगीप्रिय राधेश्याम जी इस बीच हृदय रोग से पीड़ित हो गये. वर्ष 2002 में लखनऊ में उनकी बाइपास सर्जरी हुई. अब चिकित्सकों ने उन्हें ठीक से भोजन, विश्राम तथा दवा लेने का आग्रह किया. अतः उनका केन्द्र प्रयाग बनाकर उन्हें ‘प्रो. राजेन्द्र सिंह स्मृति सेवा न्यास’ का संगठन मंत्री बना दिया गया. सेवा कार्य में रुचि होने के कारण वे न्यास के काम को बढ़ाने में लग गये. दिल्ली, लखनऊ, प्रयाग तथा पुणे में इस संबंध में कई कार्यक्रम हुए, पर काम के साथ हृदय रोग भी बढ़ता जा रहा था. दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से भी उनकी चिकित्सा होती रही. अंततः एक समय ऐसा आया कि उन्हें ‘पेसमेकर’ लगाना पड़ा, पर काम की धुन में वे इसके बाद की आवश्यक सावधानियां भी भूल जाते थे. उसका दुष्परिणाम होना ही था और एक जुलाई, 2014 को प्रयाग संघ कार्यालय पर ही उनका निधन हो गया.