नई दिल्ली. 1857 का स्वाधीनता संग्राम भले ही सफल न हुआ हो, पर उसने सिद्ध कर दिया कि देश का कोई भाग ऐसा नहीं है, जहां स्वतन्त्रता की अभिलाषा न हो तथा लोग स्वाधीनता के लिए मर मिटने को तैयार न हों. मध्य प्रदेश में इंदौर और उसके आसपास का क्षेत्र मालवा कहलाता है. सन् 1857 में यह पूरा क्षेत्र अंग्रेजों के विरुद्ध दहक रहा था. यहां का महिदपुर सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र था. इसलिए अंग्रेजों ने यहां छावनी की स्थापना की थी, जिसे ‘यूनाइटेड मालवा कांटिनजेंट, महिदपुर हेडक्वार्टर’ कहा जाता था. इंदौर में नागरिकों ने जुलाई 1857 में जैसा उत्साह दिखाया था, उसका प्रभाव महिदपुर छावनी के सैनिकों पर भी साफ दिखाई देता था. वे एकांत में इस बारे में उग्र बातें करते रहते थे. यह देखकर अंग्रेजों ने बड़े अधिकारियों तथा अपने खास चमचों को सावधान कर दिया था.
छावनी में भारतीय सैनिकों के कमांडर शेख रहमत उल्ला तथा उज्जैन स्थित सिंधिया के सरसूबा आपतिया की सहानुभूति क्रांतिकारियों के साथ थी. महिदपुर के अमीन सदाशिवराव की भूमिका भी इस बारे में उल्लेखनीय है. उन्होंने क्रांति के लिए बड़ी संख्या में सैनिकों की भर्ती की तथा उन्हें हर प्रकार का सहयोग दिया. अंग्रेज चौकन्ने तो थे, पर उन्हें यह अनुमान नहीं था कि अंदर ही अंदर इतना भीषण लावा खौल रहा है. 8 नवम्बर, 1857 को निर्धारित योजनानुसार प्रातः 7.30 बजे दो हजार क्रांतिकारियों ने ऐरा सिंह के नेतृत्व में मारो-काटो का उद्घोष करते हुए महिदपुर छावनी पर हमला बोल दिया. इन सशस्त्र क्रांतिवीरों में उज्जैन व खाचरोद की ओर से आये मेवाती सैनिकों के साथ ही महिदपुर के नागरिक भी शामिल थे. यह देखकर छावनी में तैनात देशप्रेमी सैनिक भी इनके साथ मिल गये.
अंग्रेज अधिकारी सावधान तो थे ही, अतः भीषण युद्ध छिड़ गया. पर भारतीय सैनिकों का उत्साह अंग्रेजों पर भारी पड़ रहा था. कई घंटे के संग्राम में डॉ. कैरी, लेफ्टिनेंट मिल्स, सार्जेण्ट मेजर ओ कॉनेल तथा मानसन मार डाले गये. मेजर टिमनिस की पत्नी को उसके दर्जी ने अपनी झोंपड़ी में छिपा लिया, इससे उसकी जान बच गयी. इस युद्ध में भारतीय वीरों का पलड़ा भारी रहा, जो अंग्रेज अधिकारी बच गये, उन्हें इंदौर के महाराजा तुकोजीराव होल्कर ने शरण देकर उनके भोजन तथा कपड़ों का प्रबन्ध किया. परन्तु संगठन एवं कुशल नेतृत्व के अभाव, अधूरी योजना तथा समय से पूर्व ही विस्फोट हो जाने के कारण 1857 का यह स्वाधीनता संग्राम सफल नहीं हो सका. धीरे-धीरे अंग्रेजों ने फिर से सभी छावनियों पर कब्जा कर लिया. जिन सैनिकों ने अत्यधिक उत्साह दिखाया था, उन्हें नौकरी से हटा दिया. कुछ को जेलों में ठूंस दिया तथा बहुतों को फांसी पर लटकाकर पूरे देश में एक बार फिर से आतंक एवं भय का वातावरण बना दिया.
महिदपुर के इस संघर्ष में यद्यपि जीत भारतीय पक्ष की हुई और अंग्रेजों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा, पर अंग्रेजों की तरह ही बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक भी वीरगति को प्राप्त हुए. आगे चलकर इस युद्ध के लिए वातावरण बनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले अमीन सदाशिवराव भी गिरफ्तार कर लिये गये. अंग्रेजों ने उन्हें देशभक्ति का श्रेष्ठतम पुरस्कार देते हुए सात जनवरी, 1858 को तोप के सामने खड़ाकर गोला दाग दिया. वीर अमीन सदाशिवराव की देह एवं रक्त का कण-कण उस पावन मातृभूमि पर छितरा गया, जिसकी पूजा करने का उन्होंने व्रत लिया था.