नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऐसे प्रचारकों की एक विशाल श्रंखला निर्मित की है, जिन्होंने अपने कर्तत्व से बंजर भूमि को भी चमन बना दिया. ऐसे ही एक कर्मयोगी थे कृष्णलाल शर्मा जी. कृष्णलाल जी का जन्म एक नवम्बर, 1925 को ग्राम लुधरा (जिला मुल्तान, वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था. वे बचपन से ही प्रतिभावान विद्यार्थी थे. छात्र जीवन में ही उनका सम्पर्क संघ से हुआ और वे नियमित रूप से शाखा जाने लगे. पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक होकर वे मिया छन्नू में पंजाब नेशनल बैंक में काम करने लगे. बैंक के अतिरिक्त शेष समय वे संघ कार्य में ही लगाते थे.
सन् 1946 में वे संघ का प्रशिक्षण लेने के लिए कर्णावती (अमदाबाद) संघ शिक्षा वर्ग में गये. वहीं उन्होंने नौकरी छोड़कर प्रचारक बनने का निर्णय लिया. उन्हें मुल्तान जिले की शुजाबाद तहसील का दायित्व दिया गया. उन दिनों पूरे देश में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन का जोर था. इसी के साथ देश विभाजन की चर्चाएँ भी चल रही थीं. पंजाब का माहौल पूरी तरह गरम था. ऐसे में कृष्णलाल जी ने शाखा विस्तार में अपनी पूरी शक्ति लगा दी. इसका आगामी समय में हिन्दुओं के संरक्षण में बहुत लाभ हुआ.
सन् 1947 में फगवाड़ा में संघ शिक्षा वर्ग लगा था. कृष्णलाल जी ने उसमें भी भाग लिया, पर उसी समय देश की स्वतन्त्रता और विभाजन की घोषणा हो गयी. अतः वर्ग को बीच में ही समाप्त कर सब स्वयंसेवकों को घर जाने तथा वहाँ से हिन्दुओं को सुरक्षित भारत भेजने को कहा गया. कृष्णलाल जी को अपने कार्यक्षेत्र शुजाबाद पहुँचना था, पर वहाँ जाने का कोई साधन नहीं था. तभी उन्हें पता लगा कि अमृतसर से एक गाड़ी मुस्लिम छात्रों को लेकर पाकिस्तान जा रही है. कृष्णलाल जी वेष बदल कर उसमें बैठ गये और 16 अगस्त को शुजाबाद पहुँच गये.
कृष्णलाल जी तथा अन्य प्रमुख कार्यकर्त्ताओं ने निर्णय लिया कि सिक्खों की पहचान सरल है, अतः सबसे पहले उनको और फिर शेष हिन्दुओं को सुरक्षित भारत भेजा जाये. यह सब करने के बाद नवम्बर 1947 में कृष्णलाल जी भारत लौटे. इसके बाद वे संघ की योजनानुसार रोहतक, कलानौर, बहादुरगढ़ आदि में विभाजन से पीड़ित हिन्दुओं के पुनर्वास में जुट गये. इन्हीं दिनों गान्धी जी की हत्या हो गयी. उसके झूठे आरोप में नेहरू जी ने संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया. कृष्णलाल जी को भी दस मास तक जेल में रहना पड़ा. भारतीय जनसंघ की स्थापना के बाद 1964 में उन्हें पहले पंजाब प्रदेश और फिर सम्पूर्ण उत्तर भारत का संगठन मन्त्री बनाया गया. जून 1975 में आपातकाल लगने पर दल की योजनानुसार वे भूमिगत हो गये, पर अगस्त में वे फिरोजपुर में पकड़े गये और आपातकाल के बाद ही जेल से छूटे.
सन् 1980 में ‘भारतीय जनता पार्टी’ की स्थापना के बाद उन्हें उसके सचिव का दायित्व दिया गया. 1990 में वे हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य बने. 1991 में उन्हें भाजपा का उपाध्यक्ष बनाया गया. 1996 तथा 1998 में बाहरी दिल्ली से भारी बहुमत से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. कृष्णलाल जी का जीवन एक खुली पुस्तक की तरह था. संघ ने उन्हें जो जिम्मेदारी दी, उसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया. राजनीति में रहते हुए भी वे सदा निर्विवाद रहे. 17 दिसम्बर, 1999 को अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनका देहान्त हो गया.