नई दिल्ली. संघ के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत जी के पिता मधुकर राव भागवत जी एक आदर्श गृहस्थ कार्यकर्ता थे. गुजरात की भूमि पर संघ बीज को रोपने का श्रेय उन्हें ही है. विवाह से पूर्व और बाद में भी प्रचारक के नाते उन्होंने वहां कार्य किया. वे गुजरात के प्रथम प्रांत प्रचारक थे.
मधुकर राव जी का जन्म नागपुर के पास चन्द्रपुर में हुआ. उनके पिता नारायण राव भागवत जी सुप्रसिद्ध वकील तथा जिला संघचालक थे. मधुकर राव जी वर्ष 1929 में चंद्रपुर में ही स्वयंसेवक बने. डॉ. हेडगेवार जी से उनका निकट संपर्क था. मैट्रिक उत्तीर्ण करते तक वे तृतीय वर्ष प्रशिक्षित हो गये.
संघ के घोष और संगीत में उनकी अच्छी रुचि थी. उनके निर्देशन में हरि विनायक दात्ये जी ने ‘गायनी कला’ नामक एक पुस्तक भी लिखी थी. पुणे से बीएससी कर उन्होंने वर्ष 1941 में एकनाथ रानाडे जी के साथ कटनी (म.प्र.) में प्रचारक के नाते काम किया. इसके बाद उन्हें गुजरात में संघ कार्य प्रारम्भ करने के लिए भेजा गया. उन्होंने क्रमशः सूरत, बड़ोदरा तथा कर्णावती में शाखा प्रारम्भ की.
गुजरात और महाराष्ट्र की भाषा, खानपान और जीवनशैली में अनेक अंतर हैं. मधुकर राव जी ने शीघ्र ही कई गुजराती परम्पराएं अपना लीं. वे शाखा में आने वाले मराठी स्वयंसेवकों से भी गुजराती बोलने का आग्रह करते थे. मधुर स्वभाव के कारण वे हर मिलने वाले पर अमिट छाप छोड़ते थे. वर्ष 1943-44 से पूरे उत्तर भारत और सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) के प्रशिक्षण वर्ग गुजरात में होने लगे. ऐसे एक वर्ग में लालकृष्ण आडवाणी जी भी आये थे.
माता जी के देहांत के कारण मधुकर राव जी को विवाह करना पड़ा. कुछ समय बाद पिताजी का भी देहांत हो गया, पर वे इनसे विचलित नहीं हुए. घर का वातावरण संभलते ही वे फिर निकल पड़े. पहले उन्हें श्रीगुरुजी के साथ प्रवास की जिम्मेदारी दी गयी. फिर उन्हें गुजरात में प्रांत प्रचारक बनाया गया.
वर्ष 1947 में राजकोट तथा कर्णावती में हुए शिविरों में 4,000 से भी अधिक स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लिया था. वर्ष 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने तक उनके संगठन कौशल से गुजरात के 115 नगरों में शाखा प्रारम्भ हो गयीं. प्रतिबंध काल में वे जेल में रहे तथा बाद में वर्ष 1951 तक प्रांत प्रचारक रहे.
प्रचारक जीवन से लौटकर मधुकर राव जी ने नागपुर से कानून की उपाधि प्राप्त की. उस समय उन पर नागपुर नगर और फिर प्रांत कार्यवाह की जिम्मेदारी थी. चंद्रपुर में वकालत प्रारम्भ करते समय वे जिला और फिर विभाग संघचालक बने. उनकी पत्नी श्रीमती मालतीबाई जी भी राष्ट्र सेविका समिति, भगिनी समाज, वनवासी कल्याण आश्रम, जनसंघ आदि में सक्रिय थीं. वर्ष 1975 के आपातकाल में पति-पत्नी दोनों गिरफ्तार हुए. बड़े पुत्र मोहन भागवत जी अकोला में भूमिगत रहकर कार्य कर रहे थे. छोटे पुत्र रंजन ने नागपुर विद्यापीठ में सत्याग्रह किया. इस प्रकार पूरे परिवार ने तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में आहुति दी.
संघ कार्य के साथ-साथ चंद्रपुर की अन्य सामाजिक गतिविधियों में भी मधुकर राव सक्रिय रहते थे. चंद्रपुर में विधि कॉलेज की स्थापना के बाद अनेक वर्ष तक उन्होंने वहां निःशुल्क पढ़ाया. लोकमान्य तिलक स्मारक समिति के वे अध्यक्ष थे. 70 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के लिए हुई कारसेवा में भाग लिया. वे हर तरह से एक आदर्श कार्यकर्ता थे.
मधुकर राव भागवत जी का 85 वर्ष की आयु में 10 अगस्त, 2001 को निधन हुआ. उनके प्रशंसक तथा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें संगठन शास्त्र का जीवंत विश्वविद्यालय ठीक ही कहा है.