नई दिल्ली. कोलकाता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता तथा पूर्वोत्तर भारत में संघ कार्य के प्रमुख स्तम्भ कालिदास बसु जी (काली दा) का जन्म 1924 ई. की विजयादशमी पर फरीदपुर (वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था. वर्ष 1939 में कक्षा नौ में पढ़ते समय उन्होंने पहली बार बालासाहब देवरस जी का बौद्धिक सुना, जो उन दिनों नागपुर से बंगाल में शाखा प्रारम्भ करने के लिए आये थे. इस बौद्धिक से प्रभावित होकर वे नियमित शाखा जाने लगे. इसके बाद तो बालासाहब और उनके बाद वहां आने वाले सभी प्रचारकों से उनकी घनिष्ठता बढ़ती गयी. वर्ष 1940 में वे संघ शिक्षा वर्ग में भाग लेने नागपुर गये. श्री गुरुजी उस वर्ग में कार्यवाह थे. पूज्य डॉ. हेडगेवार जी ने वहां अपने जीवन का अंतिम बौद्धिक दिया था. इन दोनों महामानवों के पुण्य सान्निध्य से काली दा के जीवन में संघ विचार सदा के लिए रच-बस गया.
कक्षा 12 की परीक्षा देकर वे बंगाल की सांस्कृतिक नगरी नवद्वीप में विस्तारक बन कर गये. यहां रहकर वे संघ कार्य के साथ ही अपनी पढ़ाई भी करते रहे. उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था. लोगों में बड़ी दहशत फैली थी. जापानी बमबारी के भय से कोलकाता तथा अन्य बड़े नगरों से लोग घर छोड़-छोड़कर भाग रहे थे. बंगाल में उन दिनों संघ कार्य बहुत प्रारम्भिक अवस्था में था, पर समाज में साहस बनाये रखने में संघ के सभी कार्यकर्ताओं ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. काली दा भी इनमें अग्रणी रहे. शिक्षा पूर्ण कर काली दा नवद्वीप में ही जिला प्रचारक बनाये गये. कुछ समय बाद देश का विभाजन हो गया और बंगाल का बड़ा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान बन गया. बड़ी संख्या में हिन्दू लुटपिट कर भारतीय बंगाल में आने लगे. संघ ने ऐसे लोगों की भरपूर सहायता की. काली दा दो वर्ष तक नवद्वीप में ही रहकर इन सब कामों की देखभाल करते रहे. इसके बाद वर्ष 1949 में उन्हें महानगर प्रचारक के नाते कोलकाता बुला लिया गया.
वर्ष 1952 तक प्रचारक रहने के बाद उन्होंने फिर से शिक्षा प्रारम्भ कर कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की और कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे. एक सफल वकील के नाते उन्होंने भरपूर ख्याति अर्जित की. संघ कार्य में लगातार सक्रिय रहने से उनके दायित्व भी क्रमशः बढ़ते गये. महानगर कार्यवाह, प्रान्त कार्यवाह, प्रान्त संघचालक, क्षेत्र संघचालक और फिर केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे. इसके साथ ही वे अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के मार्गदर्शक तथा कोलकाता में विधान नगर विवेकानंद केन्द्र के उपसभापति थे. उन्होंने रामकृष्ण मिशन से विधिवत दीक्षा भी ली थी. बंगाल में राजनीतिक रूप से कांग्रेस और वामपंथियों के प्रभाव के कारण स्वयंसेवकों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इन बाधाओं में काली दा सदा चट्टान बनकर खड़े रहे. वे कोलकाता से प्रकाशित होने वाले हिन्दू विचारों के साप्ताहिक पत्र ‘स्वस्तिका’ के न्यासी थे.
पूर्वोत्तर भारत को प्रायः बाढ़, तूफान तथा चक्रवात जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ता है. स्वयंसेवक ऐसे में ‘वास्तुहारा सहायता समिति’ के नाम से धन एवं सहायता सामग्री एकत्र कर सेवा कार्य करते हैं. काली दा समिति में भी सक्रिय रूप से जुड़े थे. स्वयं सक्रिय रहने के साथ ही उन्होंने अपने परिवारजनों को भी संघ विचार से जोड़ा. उनकी पत्नी प्रतिमा बसु राष्ट्र सेविका समिति की प्रांत संचालिका थीं. ऐसे निष्ठावान कार्यकर्ता कालिदास बसु का 11 दिसम्बर, 2010 को न्यायालय में अपने कक्ष में हुए भीषण हृदयाघात से देहावसान हुआ.