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12 जनवरी जयंती पर विशेष – राष्ट्र भक्त सन्यासी स्वामी विवेकानंद की भविष्यवाणियां

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भविष्यदृष्टा स्वामी विवेकानंद एक ऐसे युवा सन्यासी हुए, जिन्होंने सारे संसार में भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म की विजय पताका फहरा कर भारत को गौरवान्वित किया था. उन्होंने भारतवासियों में राष्ट्रीय चेतना और स्वाभिमान जागृत करके परतंत्रता, अंधविश्वास और गरीबी के विरुद्ध एकजुट होने का आह्वान किया था.

स्वामी विवेकानंद ने अपना आध्यात्मिक अभियान इन शब्दों से प्रारंभ किया था – “राष्ट्र ही हमारा देवता है, यह सब मनुष्य हमारे देवता हैं. इनकी सेवा ही परमात्मा की पूजा है. हमारे प्रथम उपास्य हमारे देशवासी ही हैं. समस्त देशवासियों को दुर्बलताओं और दरिद्रता से मुक्ति दिलाकर उन्हें राष्ट्र व धर्म के कार्य में लगाने की परम आवश्यकता है”.

कलकत्ता में अपने स्वागत समारोह में स्वामी जी ने गर्जते हुए कहा था – “हमें अपने देश को विदेशी दासता से मुक्ति दिलाने वाले वीर-वीरांगनाओं के शौर्य एवं बलिदान से प्रेरणा लेकर, अपने स्वाभिमान और राष्ट्र की  रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष करने का संकल्प लेना चाहिए. शौर्य, वीरता और बलिदान से ही हम अपने देश को गौरव प्रदान कर सकते हैं.

राष्ट्र भक्त स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन काल में ही चार महत्वपूर्ण संकल्प कर लिए थे. इन संकल्पों को स्वामी जी द्वारा की गई भविष्यवाणियां कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

  1. भारत शीघ्र स्वतंत्र होगा

युवकों को साहस बटोर कर स्वतंत्रता सेनानी बनने का आह्वान करते हुए स्वामी जी ने स्पष्ट कहा था कि परतंत्रता की बेड़ियां टूटने के पश्चात ही परम वैभवशाली भारत का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. स्वामी विवेकानंद ने 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में भारत के युवकों को शक्ति आराधन करने का आह्वान किया था.

इतिहास साक्षी है कि 50 वर्षों में सशस्त्र क्रांति के मार्ग पर चल कर सरदार भगत सिंह, वीर सावरकर, उधम सिंह, मदन लाल ढींगरा, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस, राजगुरु, सुखदेव और सुभाष चंद्र बोस इत्यादि हजारों देशभक्त युवकों ने क्रांति का बिगुल बजाया.

परिणामस्वरूप स्वामी जी की भविष्यवाणी (50 वर्षों में ही देश स्वतंत्र हो जाएगा) सत्य सिद्ध हुई. सन् 1947 में देश आजाद हो गया. परंतु दुर्भाग्य से कांग्रेस की मुस्लिम परस्त नीतियों, अंग्रेजों के भारत विरोधी षड्यंत्र और अधिकांश मुस्लिम समाज की हिन्दुत्व (भारत) विरोधी मानसिकता के कारण सदियों पुराने सनातन राष्ट्र के दो टुकड़े हो गए. अखंड भारत खंडित भारत हो गया.

  1. देशव्यापी आंदोलन शुरू होगा

स्वामी विवेकानंद की दूसरी भविष्यवाणी थी कि स्वतंत्रता आंदोलन का स्वरूप अखिल भारतीय होगा. स्वामी जी की यह भविष्यवाणी भी सत्य साबित हुई. अंग्रेजों की जी हुजूरी करके आजादी की भीख मांगने वाली कांग्रेस का नेतृत्व जब महात्मा गांधी जी के हाथों में आया, तब कांग्रेस का अहिंसावादी आंदोलन सारे देश में फैल गया. कांग्रेस ने पहली बार 1930 में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया.

देश में कार्यरत सभी धार्मिक, सामाजिक और सुधारवादी संस्थाओं ने गांधी जी द्वारा घोषित सभी आंदोलनों में भाग लिया. उस वक्त भारत की समस्त जनता ने गांधी जी के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए अपने तथा अपनी संस्था के नाम से ऊपर उठकर देशव्यापी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया. इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन के अखिल भारतीय स्वरूप वाली स्वामी जी की भविष्यवाणी साकार हुई.

यहां ध्यान देने की बात यह है कि यद्यपि महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आर्य समाज और हिन्दू महासभा इत्यादि सभी संस्थाओं की ठोस भागीदारी को स्वीकार किया, तथापि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कांग्रेस के प्रायः सभी दिग्गजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक ही नेता (गांधी जी) और एक ही दल (कांग्रेस) के खाते में डाल दिया. कांग्रेसियों ने तो अंग्रेजों की छाती पर अंतिम सशक्त और निर्णायक प्रहार करने वाले सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के तीस हजार बलिदानी सैनिकों के बलिदान को भी इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया.

  1. ‘युवा सन्यासी’ तैयार होंगे

स्वामी विवेकानंद जी की तीसरी इच्छा अथवा भविष्यवाणी यह थी कि देश में सैकड़ों की संख्या में ऐसे युवक तैयार हों, जो राष्ट्र के परम वैभव के लिए सर्वस्व-अर्पण के लिए नित्य सिद्ध रहें. स्वामी जी ने धर्मनिष्ठ, राष्ट्रसमर्पित और समाजसेवी युवा सन्यासियों की कल्पना की थी. स्वामी विवेकानंद के अंतर्मन में उठी यह कल्पना चरितार्थ हुई 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के साथ.

संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी द्वारा स्थापित प्रचारक पद्धति – ‘युवा-सन्यासी’ का ही साक्षात स्वरूप है. संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी गोलवलकर ने स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन से प्रेरणा लेकर स्वामी अखंडानंद जी से आध्यात्मिक दीक्षा ली थी. जब श्री गुरुजी ने सन्यासी बनने की इच्छा व्यक्त की तो स्वामी अखंडानंद जी ने यह कहते हुए सन्यास दीक्षा नहीं दी – “आपका कार्य क्षेत्र तो संघ और समाज सेवा ही है. आप उसी के माध्यम से स्वामी विवेकानंद के द्वारा घोषित उद्देश्य के लिए काम करें”.

यहां उल्लेखनीय है कि स्वामी अखंडानंद जी ने स्वामी विवेकानंद जी का काला कमंडल श्री गुरुजी गोलवलकर को भेंट की करते हुए कहा था – “इस कमंडल से प्रेरणा लेकर आप भारत का भ्रमण करें और अखंड भारत के परम वैभव का लक्ष्य प्राप्त करें”. वर्तमान समय साक्षी है कि श्री गुरु जी ने जीवन पर्यंत परिश्रम करके हजारों प्रचारकों (युवा संन्यासियों) को तैयार किया. स्वामी विवेकानंद का यह संकल्प भी साकार हुआ. देश में एक शक्तिशाली हिन्दू संगठन तैयार हुआ है.

  1. चिरन्तन सिंहासन पर प्रतिष्ठित भारत माता

स्वामी विवेकानंद द्वारा की गई चौथी भविष्यवाणी को उन्हीं के शब्दों में यहां उदृत करते हैं. — “दीर्घ रात्रि अब समाप्त होती हुई जान पड़ती है. — महानिद्रा में निद्रित शव मानों जागृत हो रहे हैं.  — जो अंधे हैं, वह देख नहीं सकते, और जो पागल हैं वह समझ नहीं सकते कि हमारी मातृभूमि अपनी गंभीर निद्रा से अब जाग रही है. अब कोई उसकी उन्नति को रोक नहीं सकता. यह अब नहीं सोएगी, कोई भी बाह्य शक्ति इस समय इसे दबा नहीं सकती”

“हमारे देश में अभी भी धर्म और आध्यात्मिकता जीवित है. यह ऐसे स्रोत हैं, जिन्हें अबाध गति से बढ़ते हुए समस्त विश्व देख रहा है, — हमें पाश्चात्य एवं अन्य देशों को भी नव-जीवन तथा नवशक्ति प्रदान करनी होगी.”

“यह देखो भारत माता धीरे-धीरे आंखें खोल रही है. यह कुछ ही देर सोई थी. उठो, उसे जगाओ और पहले की तरह और भी अधिक गौरमंडित करके भक्तिभाव से उसे उसके चिरंतन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो. उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत. भारत पुनः बनेगा विश्व गुरु. ”

आओ हम सब स्वामी विवेकानंद के संकल्प को पूरा करने के लिए राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुट जाएं.

नरेंद्र सहगल

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं स्तंभकार

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