सन् 1990, कश्मीर में मुस्लिम आवाम के दिलों में आतंकवाद का जहर घोल दिया गया था. वो सदियों से साथ रहते आए हिन्दुओं को अचानक दुश्मन समझने लगे थे. बड़गाम निवासी तेज कृष्ण राजदान भी इसी जहर के शिकार बने. तेज़ कृष्ण राज़दान, जो की बढियार भल्ला, श्रीनगर के रहने वाले थे. तेज़ कृष्ण राज़दान केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) में बतौर इंस्पेक्टर के पद पर पंजाब में तैनात थे. फरवरी,1990 में तेज़ कृष्ण राज़दान छुट्टियों में अपने गांव आए हुए थे. राजदान छुट्टियों के बाद पूरे परिवार को अपने साथ पंजाब में रहने के लिए ले जाना चाहते थे. 12 फरवरी 1990 को, बडगाम में, वह अपने एक मुस्लिम दोस्त से मिले, जिसका नाम मंज़ूर अहमद शल्ला था. लेकिन तेज़ कृष्ण राज़दान को इस बात का नहीं पता था कि उनका पुराना मुस्लिम दोस्त अब एक आतंकी बन चुका था,जो अब जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट (JKLF) नामक आतंकी संगठन के लिए काम करता था.
मंज़ूर अहमद शल्ला ने तेज़ कृष्ण राज़दान को किसी काम से लाल चौक चलने के लिए कहा और दोनों लाल चौक के लिए बस में बैठकर निकल गए. थोड़ी दूर ही बस गांव-कदल में दूसरी सवारियों को उतारने के लिए रुकी, तो अचानक मंज़ूर अहमद शल्ला ने एक रिवॉल्वर निकाली और तेज़ कृष्ण राज़दान को कई बार सीने में गोली मारी. आतंकी मंज़ूर अहमद शल्ला ने टी.के राज़दान को बस से बाहर खींचा और मुस्लिम यात्रियों को राज़दान के शव को पैरों के नीचे रौंदने के लिए उकसाया. काफी दूर तक उसे सड़क पर घसीटा गया और उनके शव को एक मस्जिद के किनारे फैंक दिया. मस्जिद के बाहर फैंकने के बाद उस आतंकी ने अपनी बर्बरता का उदाहरण देने के लिए और मन में दहशत भरने के लिए टी.के राज़दान के पहचान पत्र निकाले और उन पहचान पत्रों को एक-एक कर कीलों से उनके शरीर पर घोंप दिया. उनका शव तब तक वहीं पड़ा रहा, जब तक कि उनके मृत शरीर को पुलिस ने अपने कब्ज़े में नहीं ले लिया. बाद में पुलिस ने पुष्टि की कि JKLF आतंकी मंज़ूर अहमद शल्ला ने हत्या की थी जो राज़दान का बहुत अच्छा मित्र था. उनके शव का CRPF ने उनके पहचान पत्र के साथ अंतिम संस्कार कर दिया था.