करंट टॉपिक्स

13 जून / बलिदान-दिवस गंगापुत्र : स्वामी निगमानंद

Spread the love

मां गंगा भारत की प्राण रेखा है. भारत की एक तिहाई जनसंख्या गंगा पर ही आश्रित है; पर उसका अस्तित्व आज संकट में है. उसे बड़े-बड़े बांध बनाकर बन्दी बनाया जा रहा है. उसके किनारे बसे नगरों की संपूर्ण गंदगी उसी में बहा दी जाती है. वहां के उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थ उसी में डाल दिये जाते हैं. इस प्रकार गंगा को मृत्यु की ओर धकेला जा रहा है.

गंगा एवं हरिद्वार के सम्पूर्ण कुंभ क्षेत्र की इस दुर्दशा की ओर जनता तथा शासन का ध्यान दिलाने के लिये अनेक साधु-सन्तों और मनीषियों ने कई बार धरने, प्रदर्शन और अनशन किये; पर पुलिस, प्रशासन और माफिया गिरोहों की मिलीभगत से हर बार आश्वासन के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिला.

गंगा में बहकर आने वाले पत्थरों को छोटे-बड़े टुकड़ों में तोड़कर उसका उपयोग निर्माण कार्य में होता है. इसके लिये शासन ठेके देता है; पर ठेकेदार निर्धारित मात्रा से अधिक पत्थर निकाल लेते हैं. वे गंगा के तट पर ही पत्थर तोड़ने वाले स्टोन क्रेशर लगा देते हैं. इसके शोर तथा धूल से आसपास रहने वाले लोगों का जीना कठिन हो जाता है.

हरिद्वार एक तीर्थ है. वहां स्थित हजारों आश्रमों में रहकर सन्त लोग साधना एवं स्वाध्याय करते हैं. ऐसे ही एक आश्रम ‘मातृसदन’ के संत निगमानंद ने गंगा के साथ हो रहे इस अत्याचार के विरुद्ध अनशन करते हुए 13 जून, 2011 को अपने प्राणों की आहुति दे दी.

स्वामी निगमानंद का जन्म ग्राम लदारी, जिला दरभंगा (बिहार) में 1977में हुआ था. श्री प्रकाशचंद्र झा के विज्ञान, पर्यावरण एवं अध्यात्मप्रेमी इस तेजस्वी पुत्र का नाम स्वरूपम् कुमार था. दरभंगा के सर्वोदय इंटर कॉलेज से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे हरिद्वार आ गये तथा मातृसदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद से दीक्षा लेकर स्वामी निगमानंद हो गये. घर छोड़ते समय उन्होंने अपने पिताजी को पत्र में लिखा कि मां जानकी की धरती पर जन्म लेने के कारण सत्य की खोज करना उनकी प्राथमिकता है.

मातृसदन के संन्यासियों ने गंगा की रक्षा के लिये कई बार आंदोलन किये हैं. न्यायालय ने इन अवैध क्रेशरों पर रोक भी लगाई; पर समस्या का स्थायी समाधान नहीं हुआ. स्वामी निगमानंद ने इसके लिये 2008 में भी 73 दिन का अनशन किया था. इससे उनके शरीर के कई अंग स्थायी रूप से कमजोर हो गये. इस बार 19 फरवरी, 2011 से उन्होंने फिर अनशन प्रारम्भ किया था.पर इस बार का अनशन प्राणघातक सिद्ध हुआ. उनकी हालत बिगड़ती देख 27 अप्रैल, 2011 को शासन ने उन्हें हरिद्वार के जिला चिकित्सालय में भर्ती करा दिया. तब तक उनकी बोलने, देखने और सुनने की शक्ति क्षीण हो चुकी थी. इलाज से उनकी स्थिति कुछ सुधरी; पर दो जून को वे अचानक कोमा में चले गये. इस पर शासन उन्हें जौलीग्रांट स्थित हिमालयन मैडिकल कॉलेज में ले गया, जहां 13 जून, 2011 को उनका शरीरांत हो गया.

स्वामी निगमानंद के गुरु स्वामी शिवानंद जी का आरोप है कि हरिद्वार के चिकित्सालय में उन्हें जहर दिया गया. आरोप-प्रत्यारोप के बीच इतना तो सत्य ही है कि गंगा में हो रहे अवैध खनन के विरुद्ध अनशन कर एक 34 वर्षीय युवा संत ने अपने प्राणों की आहुति दे दी.16 जून को उन्हें विधि-विधान सहित मातृसदन में ही समाधि दे दी गयी.

स्वामी निगमानंद ने यह सिद्ध कर दिया कि भजन और पूजा करने वाले संत समय पड़ने पर सामाजिक व धार्मिक विषयों पर अहिंसक मार्ग से आंदोलन करते हुए अपने प्राण भी दे सकते हैं. उनकी समाधि हरिद्वार में गंगाप्रेमियों का एक नया तीर्थ बन गयी है.  (संदर्भ  : तत्कालीन पत्र-पत्रिकायें)

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *