नई दिल्ली. भारत के 132 बुद्धिजीवियों ने जम्मू कश्मीर के विवादित फोटोग्राफरों को पुलित्जर पुरस्कार दिए जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई. बुद्धिजीवियों ने पुलित्जर पुरस्कार 2020 के निदेशक मंडल तथा चयनकर्ताओं के नाम खुला पत्र जारी कर पुरस्कार की बदनामी करने और झूठ व भ्रामक तथ्यों पर आधारित पत्रकारिता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. खुले पत्र में अन्य समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों का जिक्र करते हुए साबित किया कि पुरस्कृत फोटो जर्नलिस्ट ने किस प्रकार तथ्यों को तोड़ मरोड़कर झूठ फैलाने और भारत को बदनाम करने का काम किया है.
बुद्धिजीवियों ने पुरस्कृत फोटो पत्रकार डार यासीन, मुख्तार खान पर पाकिस्तान के इशारे पर भारत विरोधी दुष्प्रचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया, उन्होंने लिखा कि ‘यह शर्मनाक है कि जो पुरस्कार पत्रकारिता की प्रगति और उत्थान का दावा करता हो, वह नफरत, विभाजन और झूठ को प्रोत्साहित कर रहा है.’ उनके अनुसार स्वयं अमेरिका के आतंकवाद से पीड़ित होने के बावजूद चयनकर्ताओं ने डार यासीन और मुख्तार खान जैसे फोटो पत्रकार का चयन कर इसकी मर्यादा को नुकसान पहुंचाया है.
पत्र में 132 बुद्धिजीवियों ने हस्ताक्षर किए
खुले पत्र में 132 बुद्धिजीवियों ने हस्ताक्षर किया है. इसमें पद्धश्री प्रोफेसर मीनाक्षी जैन, आइएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल, मेजर जनरल जीडी बख्शी, विभिन्न विवि के कुलपति, गीता फोगाट, योगेश्वर दत्त सहित अन्य नाम शामिल हैं.
आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप
उन्होंने जम्मू-कश्मीर के इतिहास पर विदेशी लेखकों व प्रकाशकों की पुस्तकों का उल्लेख करते पुलित्जर पुरस्कार के चयनकर्ताओं को बताया कि किस तरह जम्मू-कश्मीर ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा रहा है और आजादी के बाद कानूनी तरीके से उसका भारत में विलय हुआ है. लेकिन पुरस्कार की घोषणा के साथ चयनकर्ताओं ने जानबूझकर ‘भारत ने संचार माध्यम को बंद कर वहां (कश्मीर) की स्वतंत्रता समाप्त कर दी’ यह लिखकर भारत की छवि को खराब करने की कोशिश की है. चयनकर्ताओं पर परोक्ष रूप से आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाते हुए उन्होंने लिखा कि ‘जो भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अलगाववाद और पाकिस्तान के विभाजनकारी एजेंडा को समर्थन देता है, वह आतंकवाद को भी समर्थन देता है.’