नई दिल्ली. दत्ता जी डिडोलकर संघ परिवार की अनेक संस्थाओं के संस्थापक तथा आधार स्तम्भ थे. उन्होंने काफी समय तक केरल तथा तमिलनाडु में प्रचारक के नाते प्रत्यक्ष शाखा विस्तार का कार्य किया. उस जीवन से वापस आकर भी वे घर-गृहस्थी के बंधन में नहीं फंसे और जीवन भर संगठन के जिस कार्य में उन्हें लगाया गया, पूर्ण मनोयोग से उसे करते रहे. ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के कार्य के तो वे जीवन भर पर्यायवाची ही रहे.
सरसंघचालक श्री गुरुजी ने आदर्श महापुरुष की चर्चा करते हुए एक बार कहा था कि वह कभी परिस्थिति का गुलाम नहीं बनता. उसके सामने घुटने नहीं टेकता, अपितु उससे संघर्ष कर अपने लिए निर्धारित कार्य को सिद्ध करता है. वह अशुभ शक्तियों को कभी अपनी शुभ शक्तियों पर हावी नहीं होने देता. इस कसौटी पर देखें, तो दत्ता जी सदा खरे उतरते हैं. दत्ता जी विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य तो थे ही, लम्बे समय तक उसके अध्यक्ष भी रहे. उस समय विद्यार्थी परिषद को एक प्रभावी अध्यक्ष की आवश्यकता थी. उन्होंने अपने मजबूत इरादों तथा कर्तत्व शक्ति के बलपर परिषद के कार्य को देशव्यापी बनाया.
दक्षिण के राज्यों को इस नाते कुछ कठिन माना जाता था, पर दत्ता जी ने वहां भी विजय प्राप्त की. उन्होंने साम्यवादियों के गढ़ केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम में परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन करने का निर्णय लिया. उनके प्रयास से वह अधिवेशन अत्यन्त सफल हुआ. उनका मत था कि विद्यार्थी परिषद किसी राजनीतिक दल की गुलामी के लिए नहीं बना है. बल्कि एक समय ऐसा आएगा, जब सब राजनीतिक दल ईर्ष्या करेंगे कि विद्यार्थी परिषद जैसे कार्यकर्ता हमारे पास क्यों नहीं हैं ? उनके समय के परिषद के कार्यकर्ता आज राजनीति में जो प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं, उससे वह बात शत-प्रतिशत सत्य हुई दिखाई देती है.
दत्ता जी की अवस्था चाहे जो हो, पर वे मन से चिरयुवा थे. अतः वे सदा विद्यार्थियों और युवकों के बीच ही रहना चाहते थे. प्रचारक जीवन से निवृत्त होकर उन्होंने ‘जयंत ट्यूटोरियल’ की स्थापना की. इस संस्था के माध्यम से उन्होंने अनेक छात्रों की सहायता की. इसके पाठ्यक्रम में पढ़ाई के सामान्य विषय तो रहते ही थे, पर कुछ अन्य विषयों के माध्यम से वे छात्र के अन्तर्निहित गुणों को उभारने का प्रयास करते थे. केवल पढ़ाना ही नहीं, तो वे अपने छात्रों की हर प्रकार की सहायता करने को सदा तत्पर रहते थे. जब कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक बनाने का निश्चय हुआ, तो दत्ता जी उस समिति के संस्थापक तथा फिर कुछ समय तक महामंत्री भी रहे. 1989 में जब संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी की जन्म शताब्दी मनाई गयी, तो उसके क्रियान्वयन के लिए बनी समिति के भी वे केन्द्रीय सहसचिव थे.
वे विश्व हिन्दू परिषद के पश्चिमांचल क्षेत्र के संगठन मंत्री भी रहे. छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण की 300 वीं जयन्ती उत्साहपूर्वक मनाई गयी. उस समारोह समिति के भी वे सचिव थे. नागपुर में नागपुर विद्यापीठ की एक विशेष पहचान है. वे उसकी कार्यकारिणी के सदस्य थे. इतना सब होने पर भी उनके मन में प्रसिद्धि की चाह नहीं थी. उन्होंने जो धन कमाया था, उसका कुछ भाग अपने निजी उपयोग के लिए रखकर शेष सब बिना चर्चा किये संघ तथा उसकी संस्थाओं को दे दिया. सदा हंसते रहकर शेष सब को भी हंसाने वाले चिर युवा, सैकड़ों युवकों तथा कार्यकर्ताओं के आदर्श दत्ता जी डिडोलकर का 14 अक्तूबर, 1990 को देहांत हुआ.