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19 फरवरी / जन्मदिवस – छत्रपति शिवाजी महाराज

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ब्रिटिश संग्रहालय मे स्थित छत्रपति शिवाजी का चित्र
ब्रिटिश संग्रहालय मे स्थित छत्रपति शिवाजी का चित्र

महान देशभक्त, धर्मात्मा, राष्ट्र निर्माता तथा कुशल प्रशासक शिवाजी का व्यक्तित्व बहुमुखी था. माँ जीजाबाई के प्रति उनकी श्रद्धा और आज्ञाकारिता उन्हें एक आदर्श पुत्र सिद्ध करती है. शिवाजी का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति उनसे प्रभावित हो जाता था. साहस, शौर्य तथा तीव्र बुद्धि के धनी शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था. शिवाजी की जन्म तिथि के विषय में सभी विद्वान एक मत नहीं हैं. कुछ विद्वानों के अनुसार 20 अप्रैल 1627 है. शिवाजी महाराज ने संपूर्ण रूप से हिंदू राज्य की स्थापना की थी, जिसकी सीमाएं अटक से लेकर कटक तक रही थीं.

शिवाजी की शिक्षा-दीक्षा माता जीजाबाई के संरक्षण में हुई थी. माता जीजाबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं, उनकी इस प्रवृत्ति का गहरा प्रभाव शिवाजी पर भी था. शिवाजी की प्रतिभा को निखारने में दादाजी कोंडदेव का भी विशेष योगदान था. उन्होंने शिवाजी को सैनिक एवं प्रशासकीय दोनों प्रकार की शिक्षा दी थी. शिवाजी में उच्चकोटी की हिन्दुत्व की भावना उत्पन्न करने का श्रेय माता जीजाबाई को एवं दादा कोंडदेव को जाता है. छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल पूना में हुआ था.

शिवाजी की बुद्धि बड़ी ही व्यवहारिक थी, वे तात्कालिक सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों के प्रति बहुत सजग थे. हिन्दू धर्म, गौ एवं ब्राह्मणों की रक्षा करना उनका उद्देश्य था. शिवाजी हिन्दू धर्म के रक्षक के रूप में मैदान में उतरे और मुग़ल शासकों के विरुद्ध उन्होंने युद्ध की घोषणा कर दी. वे मुग़ल शासकों के अत्याचारों से भली-भाँति परिचित थे, इसलिए उनके अधीन नहीं रहना चाहते थे. उन्होंने मावल प्रदेश के युवकों में देशप्रेम की भावना का संचार कर कुशल तथा वीर सैनिकों का एक दल बनाया. शिवाजी अपने वीर तथा देशभक्त सैनिकों के सहयोग से जावली, जुन्नार, कोंकण, कल्याणीं आदि उनेक प्रदेशों पर अधिकार स्थापित करने में कामयाब रहे. प्रतापगढ़ तथा रायगढ़ दुर्ग जीतने के बाद उन्होंने रायगढ़ को मराठा राज्य की राजधानी बनाया था.

शिवाजी पर महाराष्ट्र के लोकप्रिय संत रामदास एवं तुकाराम का भी प्रभाव था. संत रामदास शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु थे, उन्होंने ही शिवाजी को देश-प्रेम और देशोध्दार के लिये प्रेरित किया था.

ब्रिटिश संग्रहालय मे स्थित छत्रपति शिवाजी का चित्र
ब्रिटिश संग्रहालय मे स्थित छत्रपति शिवाजी का चित्र

शिवाजी की बढ़ती शक्ति बीजापुर के लिये चिन्ता का विषय थी. आदिलशाह की विधवा बेगम ने अफजल खाँ को शिवाजी के विरुद्ध युद्ध के लिये भेजा था. कुछ परिस्थिति वश दोनों खुल्लम- खुल्ला युद्ध नहीं कर सकते थे. अतः दोनों पक्षों ने समझौता करना उचित समझा. 10 नवम्बर 1659 को भेंट का दिन तय हुआ. शिवाजी जैसे ही अफजल खाँ के गले मिले, अफजल खाँ ने शिवाजी पर वार कर दिया. शिवाजी को उसकी मंशा पर पहले से ही शक था, वो पूरी तैयारी से गये थे. शिवाजी ने अपना बगनखा अफजल खाँ के पेट में घुसेड़ दिया. अफजल खाँ की मृत्यु के पश्चात बीजापुर पर शिवाजी का अधिकार हो गया. इस विजय के उपलक्ष्य में शिवाजी ने प्रतापगढ़ में एक मंदिर का निर्माण करवाया, जिसमें माँ भवानी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया.

शिवाजी एक कुशल योद्धा थे. उनकी सैन्य प्रतिभा ने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली शासक को भी विचलित कर दिया था. शिवाजी की गोरिल्ला रणनीति (छापामार रणनीति) जग प्रसिद्ध है. अफजल खाँ की हत्या, शाइस्ता खाँ पर सफल हमला और औरंगजेब जैसे चीते की मांद से भाग आना, उनकी इसी प्रतिभा और विलक्षण बुद्धि का परिचायक है. शिवाजी एक सफल कूटनीतिज्ञ थे. इसी विषेशता के बल पर वे अपने शत्रुओं को कभी एक होने नहीं देते. औरंगजेब से उनकी मुलाकात आगरा में हुई थी, जहाँ उन्हें और उनके पुत्र को गिरफ्तार कर लिया गया था. परन्तु शिवाजी अपनी कुशाग्र बुद्धि के बल पर फलों की टोकरियों में छिपकर भाग निकले थे. मुगल-मराठा सम्बन्धों में यह एक प्रभावशाली घटना थी.

बीस वर्ष तक लगातार अपने साहस, शौर्य और रण-कुशलता द्वारा शिवाजी ने अपने पिता की छोटी सी जागीर को एक स्वतंत्र तथा शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित कर लिया था. 6 जून, 1674 को शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ था. शिवाजी जनता की सेवा को ही अपना धर्म मानते थे. उन्होंने अपने प्रशासन में सभी वर्गों और सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिये समान अवसर प्रदान किये. कई इतिहासकरों के अनुसार शिवाजी केवल निर्भिक सैनिक तथा सफल विजेता ही न थे, वरन अपनी प्रजा के प्रबुद्धशील शासक भी थे. शिवाजी के मंत्री परिषद् में आठ मंत्री थे, जिन्हें अष्ट-प्रधान कहते हैं.
छत्रपति शिवाजी के राष्ट्र का ध्वज केसरिया है. इस रंग से संबन्धित एक किस्सा है. एक बार शिवाजी के गुरू, समर्थ गुरू रामदास भिक्षा माँग रहे थे, तभी शिवाजी ने उन्हें देखा उनको बहुत खराब लगा.

शिवाजी, गुरु के चरणों में बैठ कर आग्रह करने लगे कि आप ये समस्त राज्य ले लीजिये एवं भिक्षा न माँगें. शिवाजी की भक्ति देख समर्थ गुरु रामदास अत्यधिक प्रसन्न हुए और शिवाजी को समझाते हुए बोले कि मैं राष्ट्र के बंधन में नहीं बंध सकता, किन्तु तुम्हारे आग्रह को स्वीकार करता हूं, तुम्हें ये आदेश देता हूं कि आज से मेरा ये राज्य तुम कुशलता पूर्वक संचालित करो. ऐसा कहते हुए समर्थ गुरु रामदास ने अपने दुप्पट्टे का एक टुकड़ा फाड़कर शिवाजी को दिया तथा बोले कि वस्त्र का ये टुकड़ा सदैव मेरे प्रतीक के रूप में तुम्हारे साथ तुम्हारे राष्ट्र ध्वज के रूप में रहेगा जो तुम्हें मेरे पास होने का बोध कराता रहेगा.

शिवाजी केवल मराठा राष्ट्र के निर्माता ही नहीं थे, अपितु मध्ययुग के सर्वश्रेष्ठ मौलिक प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति थे. महाराष्ट्र की विभिन्न जातियों के संघर्ष को समाप्त कर उनको एक सूत्र में बाँधने का श्रेय शिवाजी को ही है. इतिहास में शिवाजी का नाम, प्रथम हिन्दू राजा एवं रक्षक के रूप में सदैव सभी के मानस पटल पर विद्यमान रहेगा.

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