नई दिल्ली. कर्नाटक में चेन्नम्मा नामक दो वीर रानियां हुई हैं. केलाड़ी की चेन्नम्मा ने औरंगजेब से, जबकि कित्तूर की चेन्नम्मा ने अंग्रेजों से संघर्ष किया था. कित्तूर के शासक मल्लसर्ज की रुद्रम्मा तथा चेन्नम्मा नामक दो रानियां थीं. काकतीय राजवंश की कन्या चेन्नम्मा को बचपन से ही वीरतापूर्ण कार्य करने में आनंद आता था. वह पुरुष वेश में शिकार करने जाती थी. ऐसे ही एक प्रसंग में मल्लसर्ज की उससे भेंट हुई. उसने चेन्नम्मा की वीरता से प्रभावित होकर उसे अपनी दूसरी पत्नी बनाया.
कित्तूर पर एक ओर टीपू सुल्तान तो दूसरी ओर अंग्रेज नजरें गड़ाये थे. दुर्भाग्यवश चेन्नम्मा के पुत्र शिव बसवराज और फिर कुछ समय बाद पति का भी देहांत हो गया. ऐसे में बड़ी रानी के पुत्र शिवरुद्र सर्ज ने शासन संभाला, पर वह पिता की भांति वीर तथा कुशल शासक नहीं था. स्वार्थी दरबारियों की सलाह पर उसने मराठों और अंग्रेजों के संघर्ष में अंग्रेजों का साथ दिया. अंग्रेजों ने जीतने के बाद सन्धि के अनुसार कित्तूर को भी अपने अधीन कर लिया. कुछ समय बाद बीमारी से राजा शिवरुद्र सर्ज का देहांत हो गया. चेन्नम्मा ने शिवरुद्र के दत्तक पुत्र गुरुलिंग मल्लसर्ज को युवराज बना दिया.
पर, अंग्रेजों ने इस व्यवस्था को नहीं माना तथा राज्य की देखभाल के लिए धारवाड़ के कलैक्टर थैकरे को अपना राजनीतिक दूत बनाकर वहां बैठा दिया. कित्तूर राज्य के दोनों प्रमुख दीवान मल्लप्पा शेट्टी तथा वेंकटराव भी रानी से नाराज थे. वे अंदर ही अंदर अंग्रेजों से मिले थे. थैकरे ने रानी को संदेश भेजा कि वह सारे अधिकार तुरंत मल्लप्पा शेट्टी को सौंप दे. रानी ने यह आदेश ठुकरा दिया. वे समझ गयीं कि अब देश और धर्म की रक्षा के लिए लड़ने-मरने का समय आ गया है. रानी अपनी प्रजा को मातृवत प्रेम करती थीं. अतः उनके आह्नान पर प्रजा भी तैयार हो गयी. गुरु सिद्दप्पा जैसे दीवान तथा बालण्णा, रायण्णा, जगवीर एवं चेन्नवासप्पा जैसे देशभक्त योद्धा रानी के साथ थे.
23 अक्तूबर, 1824 को अंग्रेज सेना ने थैकरे के नेतृत्व में किले को घेर लिया. रानी ने वीर वेश धारण कर अपनी सेना के साथ विरोधियों को मुंहतोड़ उत्तर दिया. थैकरे वहीं मारा गया और उसकी सेना भाग खड़ी हुई. कई अंग्रेज सैनिक तथा अधिकारी पकड़े गये, जिन्हें रानी ने बाद में छोड़ दिया, पर देशद्रोही दीवान मल्लप्पा शेट्टी तथा वेंकटराव को फांसी पर चढ़ा दिया गया. स्वाधीनता की आग अब कित्तूर के आसपास भी फैलने लगी थी. अतः अंग्रेजों ने मुंबई तथा मद्रास से कुमुक मंगाकर फिर धावा बोला. उन्हें इस बार भी मुंह की खानी पड़ी, पर तीसरे युद्ध में उन्होंने एक किलेदार शिव बासप्पा को अपने साथ मिला लिया. उसने बारूद में सूखा गोबर मिलवा दिया तथा किले के कई भेद शत्रुओं को दे दिये. अतः रानी को पराजित होना पड़ा.
अंग्रेजों ने गुरु सिद्दप्पा को फांसी पर चढ़ाकर रानी को धारवाड़ की जेल में बंद कर दिया. देशभक्त जनता ने रानी को मुक्त कराने का प्रयास किया, पर वे असफल रहे. पांच वर्ष के कठोर कारावास के बाद 21 फरवरी, 1929 को धारवाड़ की जेल में ही वीर रानी चेन्नम्मा का देहांत हुआ. रानी ने 23 अक्तूबर को अंग्रेजों को ललकारा था. उनकी याद में इस दिन को दक्षिण भारत में ‘महिला दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.