हेमू कालाणी भारत के एक महान क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे. अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी पर लटका दिया था. हेमू कालाणी सिंध के सख्खर में २३ मार्च सन् 1923 को जन्मे थे. उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था.
जब वे किशोरवय थे, तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया. सन् 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू ने आंदोलन में सक्रियता के साथ भाग लिया.
1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना की हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई. वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे, पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ गयी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गये. हेमू कालाणी मुकदमा चला और न्यायालय ने हेमू को फांसी की सजा सुनाई.
उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की. वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये, पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी. 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दी गई. जब फांसी से पहले उनसे आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की. इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया.