सेवा धर्म को सदा कठिन माना गया है. उसमें भी कुष्ठ रोगियों की सेवा, और वह भी उनके बीच में ही रहकर करना तो बहुत ही साहस का काम है; पर दिव्य प्रेम के आराधक आशीष गौतम ने हरिद्वार में यह कर दिखाया है.
भैया जी के नाम से प्रसिद्ध आशीष जी का जन्म 22 अक्तूबर, 1962 को हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ. छात्र जीवन में ही उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हो गया. संघ की दैनिक शाखा ने उनके जीवन में देशभक्ति, अनुशासन और समाज सेवा के संस्कार सुदृढ़ किये. प्रयाग विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम.ए. और फिर कानून की उपाधि प्राप्त कर उन्होंने वकालत या कोई नौकरी करने की बजाय आजीवन अविवाहित रहकर संघ के प्रचारक के रूप में अपना जीवन समाज को अर्पित कर दिया.
पर उनके मन में प्रारम्भ से ही स्वामी विवेकानन्द और उनके अध्यात्म के प्रति रुचि थी. प्रचारक काल में वे कुछ समय हरिद्वार और ऋषिकेश भी रहे. यहाँ देवतात्मा हिमालय की छत्रछाया और माँ गंगा के सान्निध्य ने उनकी इस आध्यत्मिक भूख को बढ़ा दिया और एक दिन वे गंगोत्री की ओर चल दिये. लम्बे समय तक वहाँ साधना करने के बाद उन्होंने प्रत्यक्ष सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया. इसके लिए उन्होंने चुना समाज के उस सर्वाधिक उपेक्षित वर्ग को, जिन्हें सब घृणा से देखते हैं.
भिक्षावृत्ति से जीवनयापन करने वाले कुष्ठ रोगी तीर्थक्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में मिल जाते हैं. हरिद्वार में तो उनकी बहुत संख्या है. अतः आशीष जी चंडी घाट के पास बसे कुष्ठ रोगियों के बीच काम का निश्चय कर स्वयँ वहाँ एक झोपड़ी में रहने लगे. उन्होंने रोगियों की मरहम पट्टी से काम प्रारम्भ किया. इसके लिए गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार के छात्रों और बी.एच.ई.एल के कर्मचारियों ने उन्हें सहयोग दिया. इस प्रकार विवेकानन्द जयन्ती 12 जनवरी, 1997 को ‘दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ नामक संस्था का उदय हुआ.
प्रारम्भ में वहाँ कार्यरत ईसाई संस्थाओं ने उनका विरोध किया. क्योंकि वे इन कुष्ठ रोगियों के स्वस्थ बच्चों को पालकर, पढ़ाकर और फिर पादरी या नन बनाकर भारत में अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं; पर उनका समर्पण भाव देखकर कुष्ठ रोगियों ने मिशनरियों को ही बिस्तर समेटने के लिए बाध्य कर दिया.
धीरे-धीरे काम के आयाम बढ़ते गये. बच्चों के लिए छात्रावास बनाये गये. जो रोगी स्वस्थ हो गये, उन्हें हाथ के कुछ काम सिखाये गये, जिससे उनकी भिक्षावृत्ति छूट गयी. 2002 ई0 उनके स्वस्थ बच्चों की शिक्षा के लिए हरिद्वार से कुछ दूरी पर एक नया प्रकल्प ‘वन्दे मातरम् कुंज’ के नाम से स्थापित किया गया. भविष्य में उनकी स्वस्थ बालिकाओं के लिए भी छात्रावास तथा विद्यालय बनाने की योजना है. ये सभी प्रकल्प पूर्णतः जनसहयोग पर आश्रित हैं.
हरिद्वार के पास बड़ी संख्या में वनगूजर रहते हैं. दूध का कारोबार करने वाले इन घुमन्तु लोगों के बच्चों के लिए भी एकल विद्यालय खोले गये हैं. आशीष जी की योजना एक बड़ा चिकित्सालय बनाने की है, जहाँ कुष्ठ रोगियों का पूरा इलाज हो सके. रामकथा के प्रसिद्ध गायक श्री विजय कौशल अपनी कथा से उनके लिए धन जुटाते हैं.
इस सेवाकार्य को देखकर बड़ी संख्या में युवक, समाजसेवी एवं पत्रकार उनके प्रकल्प से जुड़ रहे हैं. अनेक स्वयंसेवी और शासकीय संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है. ईश्वर आशीष जी को यशस्वी करे, यह शुभकामना है.