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24 जनवरी / पुण्यतिथि – वनवासी कल्याण आश्रम के स्तम्भ भीमसेन चोपड़ा जी

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bheemsen chopra 24 जनवरीनई दिल्ली. भीमसेन चोपड़ा जी वनवासी कल्याण आश्रम के प्रारम्भिक स्तम्भों में से एक थे. वर्ष 1953 से 1964 तक कल्याण आश्रम की बाल्यावस्था में उन्होंने इसके आर्थिक पक्ष को मजबूती से संभाला. उनका जन्म लाहौर के पास सरगोधा में वर्ष 1928 में हुआ था. उनका परिवार मूलतः डेरा इस्माइल खां (वर्तमान पाकिस्तान) का निवासी था, जहां उनके पिता एक ठेकेदार के साथ काम करते थे. वर्ष 1943 में भीमसेन जी ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. वर्ष 1946 में उनके बड़े भाई का अपनी नौकरी के चलते जबलपुर (मध्य प्रदेश) में स्थानांतरण हो गया. उनके साथ पूरा परिवार भी यहां आ गया. जबलपुर में सरकारी नौकरी करते हुए ही भीमसेन जी संघ के स्वयंसेवक बने. तत्कालीन विभाग प्रचारक यादवराव जी का उनके मन पर विशेष प्रभाव पड़ा. वर्ष 1948 में संघ पर लगे प्रतिबंध के विरुद्ध भीमसेन जी ने भी सत्याग्रह किया था. जेल से आकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी. इस प्रकार वर्ष 1949 में वे प्रचारक बन गये. सर्वप्रथम उन्हें सरगुजा भेजा गया. आजकल यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य में है.

वनवासी बहुल सरगुजा रियासत का विलय वर्ष 1948 में भारत में हो गया था. यहां ईसाई मिशनरियों का काम बहुत सघन था. भीमसेन जी ने अम्बिकापुर को केन्द्र बनाकर काम प्रारम्भ किया. इस दौरान वनवासियों की समस्याएं तथा ईसाई कुचक्र उनके ध्यान में आये. वर्ष 1951 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी के अम्बिकापुर आगमन पर भीमसेन जी ‘पांडो’ वनवासियों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उनसे मिले और ईसाई षड्यंत्रों की जानकारी दी. भीमसेन जी संत स्वभाव के व्यक्ति थे. निर्धन वनवासियों के प्रति उनके मन में बहुत प्रेम था. अतः ‘कल्याण आश्रम’ का काम प्रारम्भ होने पर वर्ष 1953 में उन्हें जशपुर भेज दिया गया. वहां राजा विजयभूषण सिंह देव द्वारा प्रदत्त भवन में वनवासी बच्चों का एक छात्रावास प्रारम्भ किया गया था. भीमसेन जी और मोरूभाऊ केतकर भी वहीं रहने लगे. मोरूभाऊ ने संस्थान को अंदर से संभाला, तो भीमसेन जी ने व्यापक प्रवास कर आवश्यक संसाधन जुटाये.

मध्य प्रदेश शासन ने वर्ष 1954 में ‘नियोगी आयोग’ का गठन किया. भीमसेन जी ने उसके सम्मुख ईसाई षड्यंत्रों के अनेक तथ्य प्रस्तुत किये. वर्ष 1956 में ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ का पंजीकरण होने पर बालासाहब देशपांडे अध्यक्ष, मोरूभाऊ केतकर उपाध्यक्ष तथा भीमसेन जी महासचिव बनाये गये. आगे चलकर राजा साहब ने एक बड़ा भूखंड संस्था को दिया. यहां बने भवन का वर्ष 1963 में श्री रामनवमी पर सरसंघचालक श्री गुरुजी ने उद्घाटन किया. इसके लिए भीमसेन जी ने अथक परिश्रम किया. इससे पूर्व उस क्षेत्र में पूज्य प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, स्वामी स्वरूपानंद, गहिरा गुरुजी व रामभिक्षुक जी महाराज ने धर्मयात्राएं निकालीं. इससे 15 गांवों में हनुमान मंदिर बने. 108 रामायण मंडली तथा अनेक भजन मंडलियां गठित हुईं. गीता प्रेस, गोरखपुर के हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने भी श्रीरामचरित मानस की 200 बड़ी प्रतियां भेजीं.

अध्यात्म प्रेमी होने के कारण भीमसेन जी का लगाव फिर पोद्दार जी व राधा बाबा के प्रति अधिक हो गया. वर्ष 1964 से वे गीता वाटिका, गोरखपुर (उ.प्र.) में ही रहने लगे, पर कल्याण आश्रम से उनका प्रेम बना रहा. प्रायः वे जशपुर आकर श्री बालासाहब देशपांडे से मिलते थे. वर्ष 1975 में संघ पर प्रतिबंध लगा, तो कल्याण आश्रम भी संकट में आ गया. ऐसे में उन्होंने पोद्दार जी के कोलकाता निवासी दामाद परमेश्वरी प्रसाद फोंगला जी को कृष्णराव सप्रे जी के हाथ पत्र भेजा. इससे फोंगला जी ने आश्रम को भरपूर आर्थिक सहयोग दिया. अध्यात्म साधना और प्रभुभक्ति में लीन भीमसेन जी का 24 जनवरी, 2003 को गोरखपुर में ही निधन हुआ.

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