संघ कार्य करते हुए अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करने वाले डा. कृष्ण कुमार बवेजा का जन्म हरियाणा राज्य के सोनीपत नगर में 24 सितम्बर, 1949 को हुआ था. उनके पिता श्री हिम्मतराम बवेजा तथा माता श्रीमती भागवंती देवी के संस्कारों के कारण घर में संघ का ही वातावरण था. पांच भाई-बहिनों में वे सबसे बड़े थे. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही सामान्य थी.
पटियाला से गणित में पी.एच.डी. कर, कुछ समय हिन्दू कॉलेज, रोहतक में अध्यापक रहकर, 1980 में लुधियाना महानगर से उनका प्रचारक जीवन प्रारम्भ हुआ. क्रमशः हरियाणा और पंजाब में अनेक दायित्व निभाते हुए वे दिल्ली में सहप्रांत प्रचारक, हरियाणा के प्रांत प्रचारक और फिर उत्तर क्षेत्र (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर व हिमाचल) के बौद्धिक प्रमुख बने. ‘श्री गुरुजी जन्मशती’ के साहित्य निर्माण की केन्द्रीय टोली में रहते हुए उन्होंने ‘श्री गुरुजी: व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ नामक पुस्तक लिखी. 2013 में ‘स्वामी विवेकानंद सार्धशती’ आयोजनों में वे उत्तर क्षेत्र के सह संयोजक थे.
पतले-दुबले शरीर वाले कृष्ण कुमार जी मन के बहुत पक्के थे. 1975 में चंडीगढ़ में अध्ययन करते समय आपातकाल विरोधी गतिविधियों में सक्रिय रहने के कारण पुलिस ने उन्हें पकड़कर मीसा में बंद कर दिया. इससे पूर्व थाने में उन्हें लगातार दो दिन और दो रात सोने नहीं दिया गया. मारपीट के साथ ही सर्दी होने के बावजूद उन पर बार-बार ठंडा पानी डाला गया, फिर भी पुलिस उनसे भूमिगत आंदोलन के बारे में कोई जानकारी नहीं ले सकी.
उनके छोटे भाई टैम्पो चलाकर सारे परिवार को चलाते थे. 1987 में राजस्थान में डाकुओं ने उनकी हत्या कर दी. ऐसे विकट समय में कृष्ण कुमार जी परिवार के दबावों के बावजूद प्रचारक रहते हुए ही कुछ वर्ष चंडीगढ़ के डी.ए.वी. कॉलेज में फिर प्राध्यापक रहे. उन दिनों पंजाब में आतंकवाद चरम पर था. पूरे देश से कई साहसी प्रचारकों को पंजाब में काम के लिए बुलाया गया था. ऐसे में कृष्ण कुमार जी ने पीछे न हटते हुए पंजाब में ही डटकर काम किया. कुछ समय बाद उनके छोटे भाई ने अपना निजी कारोबार प्रारम्भ कर दिया. अतः उन्होंने नौकरी छोड़ दी और फिर पूरी तरह संघ कार्य में जुट गये.
1979 में पटियाला से पी-एच.डी. करते समय उन्होंने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद की स्मृति में रक्तदान शिविर आयोजित किया. उनके प्रयास से कई छात्र, छात्राएं तथा प्राध्यापकों ने भी रक्तदान किया. निर्धारित लक्ष्य पूरा होने पर जब मैडिकल टीम वाले अपना सामान समेटने लगे, तो कृष्ण कुमार जी अड़ गये कि आप लोग मेरा रक्त लिये बिना नहीं जा सकते. उन लोगों ने कहा कि आप बहुत दुबले-पतले हैं. अतः आपके लिए रक्त देना ठीक नहीं रहेगा; पर वे अड़े रहे और चिकित्सकों को उनका रक्त लेना ही पड़ा.
कृष्ण कुमार जी जो कहते थे, उसे पहले स्वयं करते थे. जब शाखा पर दंड लेकर जाने का आग्रह हुआ, तो वे स्वयं अपने स्कूटर पर दंड लेकर चलते थे. नये प्रचारक-विस्तारक निकालने पर उनका बहुत जोर रहता था. प्रवास में सुयोग्य विद्यार्थियों के नाम वे अपनी डायरी में लिख लेते थे और फिर पत्र तथा व्यक्तिगत संपर्क से उसे प्रचारक बनाने का प्रयास करते थे. प्रचारक बनने के बाद भी उसकी सार-संभाल पर उनका विशेष ध्यान और आग्रह रहता था. इस प्रकार उन्होंने नये और युवा प्रचारकों एक बड़ी शृंखला निर्माण की.
18 सितम्बर, 2013 को वे सहक्षेत्र प्रचारक श्री प्रेम कुमार जी के साथ हिमाचल प्रदेश के ऊना में प्रवास पर थे. अचानक मोटर साइकिल फिसलने से उनके सिर में गंभीर चोट आ गयी. चोट इतनी भीषण थी कि एक-डेढ़ घंटे में ही उनका प्राणांत हो गया. इस प्रकार सरल, सहज और विनम्र स्वभाव वाले प्रचारक डा. कृष्ण कुमार बवेजा ने अपने कार्यक्षेत्र में ही चिर विश्रांति ली.