नई दिल्ली. फिल्म जगत में अनेक गीतकार हुये हैं. कुछ ने दुःख और दर्द को अपने गीतों में उतारा, तो कुछ ने मस्ती और श्रृंगार को. कुछ ने बच्चों के लिये गीत लिखे, तो कुछ ने बड़ों के लिये, पर कवि प्रदीप के लिखे और गाये अधिकांश गीत देश, धर्म और ईश्वर के प्रति भक्ति की भावना जगाने वाले थे. प्रदीप के गीत आज भी जब रेडियो या दूरदर्शन पर बजते हैं, तो बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब भाव विभोर हो जाते हैं. कवि प्रदीप का असली नाम रामचन्द्र द्विवेदी था. उनका जन्म छह फरवरी, 1915 को बड़नगर (उज्जैन, मध्य प्रदेश) में हुआ था. उनकी रुचि बचपन से ही गीत लेखन और गायन की ओर थी. वे ‘प्रदीप’ उपनाम से कविता लिखते थे.
बड़नगर, रतलाम, इन्दौर, प्रयाग, लखनऊ आदि स्थानों पर उन्होंने शिक्षा पायी. इसके बाद घर वालों की इच्छानुसार अध्यापक बनना चाहते थे. उन्होंने इसके लिये प्रयास भी किया, पर इसी बीच वर्ष 1939 में वे एक कवि सम्मेलन में भाग लेने मुम्बई गये. इससे उनका जीवन बदल गया. कवि सम्मेलन में ‘बाम्बे टाकीज स्टूडियो’ के मालिक हिमांशु राय भी आये थे. प्रदीप के गीतों से प्रभावित होकर उन्होंने उनसे अपनी आगामी फिल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने को कहा. प्रदीप ने उनकी बात मान ली. उन गीतों की लोकप्रियता से प्रदीप की ख्याति फैल गयी. इस फिल्म के चार गीतों में से तीन गीत प्रदीप ने स्वयं गाये थे. इससे वे फिल्म जगत के एक स्थापित गीतकार और गायक हो गये.
उन दिनों भारत में स्वतन्त्रता का आन्दोलन तेजी पर था. कवि प्रदीप ने भी अपने गीतों से उसमें आहुति डाली. सरल एवं लयबद्ध होने के कारण उनके गीत बहुत शीघ्र ही आन्दोलनकारियों के मुंह पर चढ़ गये, ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालो, हिन्दुस्तान हमारा है’ तथा ‘चल-चल रे नौजवान’ ने अपार लोकप्रियता प्राप्त की. इन गीतों के कारण पुलिस ने उनका गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया. अतः उन्हें कुछ समय के लिये भूमिगत होकर रहना पड़ा. स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी उनके गीतों में देशप्रेम की आग कम नहीं हुई. फिल्म जागृति का गीत ‘आओ बच्चो तुम्हें दिखायें झांकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की, वन्दे मातरम्’ हर बच्चे को याद हो गया था. ‘जय सन्तोषी मां’ के गीत भी प्रदीप ने ही लिखे, जो आज भी श्रद्धा से गाये जाते हैं. कुल मिलाकर उन्होंने सौ से भी अधिक फिल्मों में 1,700 से भी अधिक गीत लिखे.
उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी’ से मिली. वर्ष 1962 में चीन से मिली पराजय से पूरा देश दुखी था. ऐसे में प्रदीप ने सीमाओं की रक्षा के लिये अपना लहू बहाने वाले सैनिकों की याद में यह गीत लिखा. इसे दिल्ली में लालकिले पर प्रधानमन्त्री नेहरु जी की उपस्थिति में लता मंगेशकर ने गाया. गीत सुनकर नेहरु जी की आंखें भी भर आयीं. तब से यह गीत स्वतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस पर बजाया ही जाता है. अपने गीतों के लिये उन्हें अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले. इनमें फिल्म जगत का सर्वोच्च ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ भी है. अपनी कलम और स्वर से सम्पूर्ण देश में एकता एवं अखंडता की भावनाओं का संचार करने वाले शब्दों के इस चितेरे का 11 दिसम्बर, 1998 को देहान्त हो गया.