नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पर खेल, व्यायाम, आसन, चर्चा आदि के माध्यम से संस्कार देने का सफल प्रयोग चलता है. शाखा में गाये जाने वाले गीतों की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है. ये गीत व्यक्ति के अन्तर्मन को छूते हैं. ऐसे ही सैकड़ों प्रेरक और हृदयस्पर्शी गीतों के लेखक थे – चन्द्रकान्त भारद्वाज जी, जिनका आठ जनवरी, 2007 को दिल्ली में देहान्त हुआ था.
वर्ष 1920 ई. में चन्द्रकान्त जी का जन्म ग्राम किरठल (जिला बागपत, उत्तर प्रदेश) में बसंत पंचमी वाले दिन हुआ था. उनके पिता देव शर्मा जी कोटा रियासत में अध्यापक थे. माता मालादेवी जी भी धर्मप्रेमी महिला थीं. चन्द्रकान्त जी चार भाइयों में सबसे बड़े थे. दिल्ली में बीएससी में पढ़ते समय वे स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़े. वर्ष 1942 में पुरानी दिल्ली के किंग्जवे कैंप स्थित पीली कोठी को आग लगाने गयी स्वाधीनता सेनानियों की टोली में चन्द्रकान्त जी भी शामिल थे. वहां उन्हें गोली भी लगी थी.
वर्ष 1942 का आन्दोलन विफल होने के बाद चन्द्रकान्त जी संघ की ओर आकर्षित हुए. धीरे-धीरे चारों भाई शाखा में जाने लगे. यहां तक कि वर्ष 1945 में मेरठ में लगे संघ शिक्षा वर्ग में चारों भाई प्रशिक्षण लेने आये थे. वर्ष 1947 से 1952 तक चन्द्रकान्त जी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और मैनपुरी में जिला प्रचारक रहे. प्रचारक जीवन से लौटकर उन्होंने बीएड किया और अध्यापक बन गये. वर्ष 1954 में उन्होंने विमला देवी के साथ गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया. शिक्षा में रूचि के कारण वर्ष 1942 में गणित में एमएससी करने के बाद उन्होंने वर्ष 1962 में हिन्दी में एमए और फिर वर्ष 1966 में छन्दशास्त्र में पीएचडी की उपाधि ली.
चन्द्रकान्त जी को शुरू से ही साहित्य और विशेषकर काव्य के क्षेत्र में रुचि थी. देश में कोई भी घटना घटित होती, उनका कवि हृदय उसके अनुकूल कोई गीत लिख देता था. वर्ष 1964-65 में दिल्ली में सरसंघचालक पूज्य श्री गुरुजी का भव्य सार्वजनिक कार्यक्रम में भाषण होना था. चन्द्रकान्त जी ने गीत लिखा – खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आंधी पानी से.
निरंजन आप्टे जी ने यह गीत पूरे मनोयोग से गाया. गीत के शब्द, स्वर और लय से वातावरण भावुक हो गया. श्री गुरुजी ने कहा कि अब मुझे भाषण देने की आवश्यकता नहीं है. जो मैं कहना चाहता हूं, वह इस गीत में कह दिया गया है. चन्द्रकान्त जी के छोटे भाई ड़. श्रीकान्त जी भी अच्छे कवि हैं. यह तो केवल एक उदाहरण है. ऐसे सैकड़ों गीत स्वयंसेवकों की जिह्ना पर चढ़कर अमर हुए हैं. ओ भगीरथ चरण चिन्हों पर उमड़ते आ रहे हम, बढ़ते जाना-बढ़ते जाना, विश्व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी, राष्ट्र में नवतेज जागा, पुरानी नींव नया निर्माण.. आदि उनके प्रसिद्ध गीत हैं.
ऐसे ही अरुणोदय हो चुका वीर अब, ले चले हम राष्ट्र नौका को भंवर से पार कर, युग-युग से स्वप्न संजोये जो, नया युग करना है निर्माण, हिन्दू जगे तो विश्व जगेगा, लोकमन संस्कार करना, मानवता के लिए उषा की, पथ का अंतिम लक्ष्य नहीं है….आदि गीतों की भी एक विराट मालिका है. चंद्रकांत भारद्वाज जी नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध लेखन, अनुवाद तथा सम्पादन में भी सिद्धहस्त थे. चरण कमल, खून पसीना और गीत तथा जागरण गीत नामक पुस्तक में उनके कुछ गीत संकलित हैं. हर्षवर्धन (नाटक) और शरच्चन्द्रिका (उपन्यास) भी प्रकाशित हुए हैं. इसके बाद भी उनका बहुत सा साहित्य अप्रकाशित है.