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90 वर्ष की साधना से निखरा संघ का वर्तमान स्वरूप – दुर्गादास जी

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जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजस्थान क्षेत्र के प्रचारक दुर्गादास जी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वर्ष 1925 में स्थापना के बाद समय-समय पर विभिन्न पड़ावों को पार कर अपनी विकास यात्रा तय की है. अनेक चुनौतियों के साथ 90 वर्ष की अथक साधना से संघ का वर्तमान स्वरूप समाज के सामने आज निखर कर खड़ा है. वह साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य के संग्रहणीय अंक के विमोचन अवसर पर संबोधित कर रहे थे.

भारती भवन में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने संघ की विकास यात्रा पर प्रकाश डाला. दुर्गादास जी ने कहा कि संघ ने अब तक पांच पड़ावों में अपनी विकास यात्रा पूरी की है. सन् 1925 से 1947 के समय में संघ ने सिद्ध किया कि हिन्दू भी संगठित हो सकते हैं. जो डॉ. हेडगेवार जी की कल्पना का मूर्त रूप था. सन् 1953 तक के काल खण्ड में भारत विभाजन के समय निर्वासित बन्धुओं की सेवा एवं संबल स्वयंसेवकों ने समाज को प्रदान किया. गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर पहली बार प्रतिबन्ध लगा. अनेक यातनाओं के बाद संघ से प्रतिबन्ध हटा. संगठित समाज अपनी आत्मरक्षा कैसे कर सकता है. यह संघ ने अपनी कार्य पद्धति से सिद्ध किया. सन् 1974 के समय संघ के अनेक अनुषांगिक संगठनों की स्थापना हुई. इसी दौरान संघ ने हिन्दू राष्ट्र का पुनर्निमाण और हिन्दू राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का मॉडल समाज के सामने रखा. इस समय तक देश के सभी तहसीलों में संघ का कार्य पहुंचा.

सन् 1975 से वर्ष 1992 में आपातकाल के बाद लोकतन्त्र की रक्षा के लिए कार्य प्रारम्भ किया. शाखाओं पर ध्यान केन्द्रीत एवं कार्य का विस्तार हुआ. समाज का मन से संघ से जुड़ाव इस दौरान हुआ. इसी समय हिन्दुत्व जागरण के प्रयास संघ ने प्रारम्भ किये. हिन्दू एकात्मत्मा यात्रा के माध्यम से 1.5 लाख से अधिक गांवों तक भारत माता के चित्र और गंगाजल के साथ स्वयंसेवकों ने सम्पर्क किया. सन् 1993 से वर्तमान समय में संघ कार्य शाखा केन्द्रीत रहा. लगभग 63 हजार स्थानों पर संघ कार्य आज चल रहा है. साथ ही विश्व संगठन के माध्यम से विश्व में अनेक स्थानों पर संघ कार्य चल रहा है. दुर्गादास जी ने कहा कि संघ विचार के साथ समाज में अनुकूलता है. जिस कारण ही अमरनाथ श्राइन बोर्ड एवं रामसेतु जैसे विषय पर सरकार को हिन्दू समाज के सामने झुकना पड़ा. किन्तु वर्तमान में मतांतरण व लव जिहाद जैसी चुनौतियों पर भी समाज को एक जुटहोने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि पाञ्चजन्य का यह विशेषांक गागर में सागर है. इस अंक में सामाजिक समरसता व भारत विभाजन के समय की घटनाओं का उल्लेख है.

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