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स्वार्थी तत्व किसानों को बरगलाकर आंदोलन के लिए प्रेरित कर रहे?

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डॉ. अमित शर्मा

केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि विधेयकों पर कुछ किसान संगठन, राजनीतिक दल उन्हें बरगला कर और अनावश्यक भय दिखाकर आंदोलन का रास्ता दिखाने का प्रयास कर रहे हैं. अपने सियासी लाभ के लिये ये लोग किसानों के समक्ष विधेयकों की वास्तविक तस्वीर को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर रहे हैं. कई दशकों बाद खेती और किसानी को एक खुला आकाश देकर उन्हें समृद्ध करने से संबंधित ये कृषि विधेयक सही मायनों में क्रांतिकारी पहल हैं. इनका सभी को स्वागत करना चाहिए. लेकिन मुद्दा विहीन विपक्ष और किसानों के शोषण पर आधारित अपने कारोबार के संरक्षण के लिए कई दल और उनके नेता एक गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रहे हैं. सच्चाई तो यह है कि इन विधेयकों से कृषकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाभ ही होने वाला है.

वर्तमान में देश की मंडियों में किस तरह किसानों के साथ बर्ताव किया जाता है, यह किसी से छिपा नहीं है. कभी मार्केट कमेटी फीस, कभी दलाल की फीस, लेवी पर तो उनको बिना कमीशन दिए फसल का पूरा भुगतान भी नहीं किया जाता. मंडी में व्यापारियों की मिलीभगत से किसानों को फसल का पूरा भाव नहीं मिल पाता. पंजाब और हरियाणा में कृषकों को गुमराह करके भले की उन्हें आंदोलन के लिए प्रेरित किया जा रहा हो, लेकिन वहां पर मंडियों में किसानों के अनाज के साथ जो व्यवहार होता है, वह छिपा नहीं है.

बिल में कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमेटी (2018-2019) की रिपोर्ट के आधार पर कृषकों की आय बढ़ाने के सुझावों को सम्मिलित किया गया है. इसके साथ ही, सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों की हाई पावर कमेटी के सुझाव भी इसमें सम्मिलित किए गए हैं. इससे राज्यों का प्रतिनिधित्व भी इस बिल में रहा है. वर्तमान में मंडी व्यवस्था की खामियां किसी से छिपी नहीं हैं. मंडियों और मार्केट कमेटी से कुछ चुने हुए व्यापारी ही किसानों का सामान खरीदते हैं, ऐसे में आपस में गठबंधन करके किसानों के सामान का मूल्य कम निर्धारित करते हैं. इससे नुकसान किसान को होता है और मुनाफा बिचौलिये हजम कर जाते हैं. इसके साथ ही, मंडियों में कमीशन चार्ज और मंडी फीस के नाम पर अनेक कटौतियां होती हैं. नए बिल में प्रावधान किया गया है कि अब इस तरह की कटौतियां कृषकों को नहीं देनी पड़ेंगी और कृषकों को उनकी फसल का पूरा भुगतान करना पड़ेगा. इससे उनकी आमदनी में बढ़ोत्तरी होना तय है.

मंडी में कमीशन एजेंट और मार्केट कमेटी के पदाधिकारी अपना गुट बना लेते हैं, और वे नए व्यापारियों को मार्केट में प्रवेश नहीं करने देते. ऐसे में खुला बाजार किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प होगा. ऑनलाइन ट्रेडिंग के माध्यम से किसानों को बाजार के बेहतर विकल्प मिलेंगे. किसानों के लिए अब पूरा देश एक खुला बाजार है. जहां अधिक मूल्य मिले वह अपनी उपज का बेच सकता है. राज्यों के प्रतिबंध से अब किसान मुक्त है.

मुक्त व्यापार में राज्यों के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोकने का भी बिल में प्रावधान किया गया है. किसान और व्यापारी के बीच गतिरोध होने पर तीन स्तरों पर जांच व समाधान का प्रावधान बिल में किया गया है. किसानों को ऑनलाइन ट्रेडिंग का फायदा मिलेगा. किसान खेत से ही महंगे से महंगे दाम लगाने वाले व्यापारी को अपना उत्पाद बेच पाएगा. इस बिल में गेहूं, धान, चावल जैसे मुख्य अनाजों के अलावा दलहन, तिलहन को शामिल किया गया है. किसान अब नकदी फसल माने जाने वाले गन्ने, कपास और जूट आदि को भी पूरे देश में कहीं पर भी कीमत अधिक मिलने पर बेच सकेंगे.किसान फल और मसाले जैसे नकदी वाली फसलें उगाने के लिए प्रेरित होंगे. मछली पालन को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.

इस बिल से किसी किसान को नुकसान नहीं हो रहा है. बिचौलियों और मंडी के टैक्स के नाम पर मोटी फीस वसूलने वाले लोगों को इससे करारा झटका जरूर लगा है. सबसे ज्यादा चोट उन कमीशनखोर दलालों पर लगी है जो मंडियों में किसानों को लूटकर अपना घर भर रहे थे.  किसानों को पहले बिल की बारीकियों को समझना होगा. उन्हें तथाकथित किसान नेताओं के बहकावे में आने से बचना होगा. कुछ तथाकथित राजनीतिक दल अपनी राजनीति को चमकाने और किसानों को झूठी बातों के आधार पर बरगलाने का प्रयास कर रहे हैं. जागरूक किसानों को ऐसे नेताओं को करारा जबाव देना होगा. कई दशकों बाद किसानों के हित के लिए पुराने कानूनों को बदलकर उन्हें खुला आकाश दिया गया है.

(लेखक पत्रकारिता और जनसंचार विभाग, जेईसीआरसी यूनिवर्सिटी जयपुर में विभागाध्यक्ष हैं)

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