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मद्रास उच्च न्यायालय ने पुलिस से कहा, लड़की की आत्महत्या की परिस्थितियों पर ध्यान दें, वीडियोग्राफी करने वाले को परेशान न करें

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चैन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि वह उन परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित करे, जिनके कारण इस छात्रा ने आत्महत्या की है. पीठ ने 17 वर्षीय छात्रा की आत्महत्या से संबंधित जांच सीबी-सीआईडी या अन्य जांच एजेंसी को स्थानांतरित करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.

अदालत के समक्ष बताया गया था कि पुलिस उस व्यक्ति को परेशान कर रही है, जिसने छात्रा के बयान की वीडियोग्राफी की थी. यह वीडियोग्राफी उस समय की गई थी, जब वह धर्म परिवर्तन का दबाव डालने का आरोप लगाया था.

इन आरोपों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि…

‘… पुलिस को उस व्यक्ति को परेशान करने से रोका जाता है, जिसने छात्रा का वह वीडियो बनाया था, जिसमें वह आरोप लगाती हुई नजर आ रही है कि उस पर ईसाई धर्म अपनाने का दबाव बनाया गया था. पुलिस अधिकारियों का ध्यान उन परिस्थितियों पर होना चाहिए, जिनके कारण इस बच्ची ने आत्महत्या की है और उन्हें अपना ध्यान वीडियो बनाने वाले व्यक्ति के खिलाफ निर्देशित नहीं करना चाहिए.”

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, तंजावूर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों द्वारा किए पोस्टमॉर्टम की विश्वसनीयता पर कोई संदेह नहीं है, इसलिए पीठ ने जिला कलेक्टर को निर्देश दिया कि वह शव को मृत बच्ची के मूल स्थान पर भेजने के लिए आवश्यक व्यवस्था करे. शनिवार को विशेष सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया था कि परिवार को अपने रीति-रिवाजों के अनुसार बच्ची का अंतिम संस्कार करने दे और उसमें हस्तक्षेप न किया जाए.

जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने तंजावूर के प्रधान जिला न्यायाधीश से कहा कि वह सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मृत बच्ची के माता-पिता के बयान दर्ज करने के लिए एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को नामित करें. बयान की कॉपी सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट के समक्ष पेश की जाए.

मृतक छात्रा, थिरुकट्टुपल्ली के थूया इरुधाया हायर सेकेंडरी स्कूल में 12वीं कक्षा की छात्रा थी, जो स्कूल के छात्रावास में ही रहती थी. उसने 9 जनवरी को छात्रावास परिसर के अंदर जहर (कीटनाशक) का सेवन कर लिया. पुलिस ने 16 जनवरी को उसका बयान लिया, जिसके आधार पर, छात्रावास की वार्डन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 305, 511 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75 और 82 (1) के तहत मामला दर्ज किया था. यह भी आरोप लगाया था कि स्कूल प्रबंधन ने उसे ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रताड़ित किया था.

एक व्यक्ति ने 19 जनवरी को छात्रा की एक वीडियो बनाई थी, जिसमें छात्रा मृत्यु से पहले आरोप लगा रही है कि उस पर ईसाई धर्म अपनाने के लिए दबाव डाला जा रहा था. वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. उसी पर संज्ञान लेते हुए, पुलिस ने नाबालिग की पहचान उजागर करने के मामले में वीडियो बनाने वाले व्यक्ति को कथित रूप से निशाना बनाया है.

शुक्रवार को, न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिया था कि वह याचिकाकर्ता, उसकी पत्नी या उस व्यक्ति को परेशान करने जैसे आरोपों को जन्म न दे, जिसने कथित तौर पर वह वीडियो बनाई थी, जिसमें मृतका उस पर ईसाई धर्म अपनाने के लिए दबाव डालने के आरोप लगा रही है. उसी दिन, न्यायालय ने निर्देश दिया था कि मृत बच्ची का पूरी तरह से वीडियो ग्राफित फोरेंसिक शव परीक्षण किया जाना चाहिए. शनिवार को विशेष सुनवाई की गई थी क्योंकि अदालत को अतिरिक्त लोक अभियोजक ने सूचित किया था कि पोस्टमार्टम पहले ही किया जा चुका है. इसलिए, पुलिस को इस बारे में स्पष्टता की आवश्यकता थी कि क्या दूसरा पोस्टमॉर्टम आवश्यक है?

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