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#TheKeralaStory – केरल की 26 पीड़ित महिलाएं आईं मीडिया के सामने, सुनाई आपबीती

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मुंबई. सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म से ज्यादा एक मुद्दे के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है. फिल्म को लेकर विवाद खड़ा करने के प्रयास जारी हैं. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 150 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है. सिनेमाघरों में दर्शकों का समर्थन मिल रहा है. फिल्म में छल-कपट से धर्मांतरण, लव जिहाद का शिकार हुई केरल की लड़कियों की कहानी दिखाई गई है.

एक वर्ग प्रारंभ से ही फिल्म का विरोध करने के साथ ही इसे रोकने व प्रोपेगंडा साबित करने का प्रयास कर रहा है. वहीं अब केरल की पीड़ित महिलाओं ने अपनी आपबीती सुनाई है. मुंबई में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में 26 महिलाओं ने मीडिया से बातचीत की. इस दौरान ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म की पूरी टीम भी उपस्थित रही.

धर्मांतरण, लव जिहाद का शिकार हुईं पीड़ित महिलाएं एक संस्था से जुड़ी हुई हैं. यह संस्था उन लोगों को घर वापसी कराने का काम करती है, जिन्हें लव जिहाद का शिकार बनाया जाता है या धर्मांतरण कर कट्टरपंथी बना दिया जाता है. महिलाओं ने बताया कि सन् 1999 से अब तक 7 हजार से अधिक महिलाओं को इस घिनौने खेल में फंसने से बचा चुकी हैं. मासूम लड़कियों को सावधान करना और पीड़िताओं को जिहादी चंगुल से बचाना ही उनका उद्देश्य है.

‘आकड़ा मायना नहीं रखता’

पीड़िताओं ने बताया कि उनका ब्रेनवॉश किया जाता है और कट्टरपंथी बनने पर मजबूर कर दिया जाता है. फिल्म में महिलाओं के नंबर पर भी काफी वाद-विवाद हुआ. पीड़ित महिलाओं ने कहा कि असली आंकड़ा 32 हजार से भी कहीं अधिक है और वास्तव में आंकड़ा क्या है, यह मायने नहीं रखता. सच तो ये है कि सही आंकड़े का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.

पिछले कुछ सालों में न सिर्फ लड़कियों को, बल्कि लड़कों को भी कंवर्ट कराया जा रहा है. 15 से 17 साल के लड़कों के दिमाग के साथ जिहादी लोग खेलते हैं और उन्हें गलत राह पर चलने के लिए मजबूर कर देते हैं.

फिल्म निर्माता विपुल शाह ने कहा कि वे आगे भी इस तरह और भी कई पीड़िताओं को मीडिया के सामने लाने का प्रयास करेंगे. संस्था की मदद के लिए फिल्म की टीम की ओर से 51 लाख रुपये की अनुदान राशि प्रदान की गई.

शिखा ने सुनाई अपनी कहानी

शिखा बताती हैं कि किस तरह वो फिल्म के किरदार शालीनी उन्नीकृष्णनन से खुद को रिलेट कर पाती हैं. मैं केरल से हूं. प्रोफेशन से फिजियोथेरिपिस्ट हूं और फुल टाइम संस्थान के साथ काम करती हूं. आज से दो साल पहले तक मैं कन्वर्जन से गुजर रही थी. मैं हॉस्टल के दिनों से बदलाव महसूस कर रही थी. मैं एक हिन्दू परिवार से हूं. हमारे परिवार में यह नहीं बताया जाता है कि हम फलां चीज किस रीजन से कर रहे हैं.

मुझे आसिफा की तरह ही रूममेट्स से मिली थी. फिल्म में जिस तरह उनकी कन्वर्जन स्ट्रैटेजी दिखाई गई थी, वो बिलकुल एक जैसा था. वो ऐसी सिचुएशन पैदा करते हैं और आपके अंदर सवाल पैदा करवाते हैं. कंफ्यूज्ड करते हैं, फिर आपको मैनुपुलेट करने लगते हैं. वो हमसे तमाम तरह से अपने धर्म को लेकर सवाल करते हैं. चूंकि मुझे अपने धर्म की जानकारी नहीं है, तो मैं बेबस हो जाती थी. धीरे-धीरे उन्होंने इस्लाम धर्म से प्रभावित कर दिया था. वो कहती थीं, अल्लाह ही एकमात्र गॉड है. उसके अलावा किसी को भी नहीं मानना चाहिए. वर्ना आप जहन्नुम में जाओगे. मैं भी फैसिनेट होती गई. वो मुझे कुरान ट्रांसलेशन जैसी किताबें देती गईं. कई वीडियोज दिखाने लगीं, जिससे मैं रैडिक्लाइज हो गई थी.

एक वक्त ऐसा हो गया था कि मैं यही यकीन करने लगी कि इस्लाम ही सही है. जो इस्लाम को नहीं मानता है, वो काफिर है. मैं अपने धर्म से नफरत करने लगी. मैं अपने मां-बाप तक को नीची नजरों से देखने लगी थी. मां-बाप के आंसुओं से फर्क ही नहीं पड़ता था.

एक वक्त ऐसा भी आया कि घर पर पूजा पाठ हो रहा है और मैं अपने कमरे में बैठकर नमाज पढ़ रही हूं. मेरी चार साल की भतीजी को मैंने कमरे से धक्का मारकर निकाल दिया था क्योंकि वो मुझे परेशान कर रही थी. कोई धर्म आपको इतना एंटी-ह्यूमन कैसे बना सकता है. 2018 तक मैं इस ट्रैप में रही… (और फिर रो पड़ती हैं).

इनपुट – मीडिया रिपोर्ट्स

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