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लोकसभा चुनाव परिवर्तन का उचित अवसर: संघ

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बंगलुरु, 7 मार्च. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आगामी लोकसभा चुनाव को समस्त देशवासियों के लिये परिवर्तन का उचित अवसर बताते हुए जागृत मतदाताओं से देश के भविष्य निर्धारण के लिये सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया है.

सरकार्यवाह श्री सुरेश (भय्या) जी जोशी द्वारा प्रस्तुत वार्षिक प्रतिवेदन में कहा गया है कि केंद्र की वर्तमान सरकार की विश्वसनीयता, प्रामाणिकता व देशहित के प्रति प्रतिबद्धता पर आज प्रश्नचिन्ह लगा है. देश आज परिवर्तन की अपेक्षा कर रहा है. संघ का कहना है, “ हम सभी को इसी दृष्टि से अपनी भूमिका को समझकर उसका निर्वाह करना होगा. परिणामत:जनमामान्य की इच्छा और आकांक्षानुसार परिवर्तन का अनुभव हम कर सकेंगे.”

संघ ने 2013-14 के कालखंड में जैन समाज को अल्पसंख्य घोषित करने जैसे कुछ घटनाक्रमों को देश की एकात्मता और सद्भावपूर्ण वातावरण को दूषित करने वाला बताते हुए अपनी वेदना प्रकट की है. प्रतिवेदन में कहा गया है, “इसी भूमि में निर्मित विभिन्नपंथ, संप्रदाय मूलत: एक ही चिंतन की विविध शाखाओं के रूप में विकसित हुए और एकात्मभाव से हजारों वर्षों से रहते आये हैं. परंतु गत कुछ वर्षों से अल्पसंख्य-बहुसंख्य इस प्रकार की विभेदकारी नीतियों को अपने क्षणिक, राजनीतिक स्वार्थपूर्ति हेतु अपनाया जा रहा है. हाल में ही जैन समाज को अल्पसंख्यक घोषित करना इसी मानसिकता का द्योतक है.”

प्रतिवेदन में तेलंगाना का नाम लिये बिना संघ ने राज्यों के विभाजन के विषयों का भी राजनीतिक लाभ-हानि के परिप्रेक्ष्य में विचार किए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए परामर्श दिया है कि विभाजन करते समय अनावश्यक उत्तेजना निर्माण न हो, एवं किसी भी समूह अथवा भौगोलिक क्षेत्र के नागरिकों को न्यायोचित लगे, इसका भी ध्यान रखने की आवश्यकताहै. अन्यथा ऐसी घटनाओं के सामाजिक संबंधों पर दूरगामी परिणाम होने की आशंका बनी रहती है.

केरल में संपन्न अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल में देश की असुरक्षित सीमाओं के बारे में पारित प्रस्ताव पर अपने दृष्टिकोण को दोहराते हुए संघ ने सीमा आयोग के गठन पर फिर से जोर दिया है. संघ का मानना है कि आयोग से सीमान्त जनता, केन्द्रीय सुरक्षा बल और सीमावर्ती राज्य सरकार से तालमेल रखते हुए सुरक्षा और विकास की दिशा में उचित कदम उठाने में सुगमता रहेगी.

संघ ने देश की सीमाओं को विवादित बनाने की सीमांत देशों के प्रयासों से सावधान करते हुए कहा कि हमारी सीमायें स्पष्ट रूप से पारिभाषित एवं निर्धारित हैं. हमें इन देशों के जबरनअवैध कब्जों से अपनी भूमि को मुक्त करने की पहल करनी चाहिये.

विवाह बाह्य सहजीवन और समलैंगिकता को वैधानिक मान्यता दिलाने के प्रयासों को संघ ने हिंदू जीवन शैली के समक्ष गंभीर चुनौती मानते हुए कहा है कि कानून के द्वारा परंपरायें, मान्यतायें, संस्कृति, जीवनमूल्यों को मानने वाला समाज सुरक्षित नहीं रखा जा सकता. धार्मिक, सामाजिक, चिंतकों के द्वारा प्राप्त होने वाले मार्गदर्शन से ही समाज जीवन सुरक्षित रहेगा.

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