महाकुम्भ केवल एक पर्व नहीं, यह शाश्वत से हमारे संबंध का स्मरण कराता है। यह वह स्थान है, जहां मानवता के अनगिनत धागे देवत्व और एकता के ताने-बाने बुनने के लिए एक साथ मिल जाते हैं।
मकर संक्रांति की सुबह के साथ ही प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर दिव्य वैभव का दृश्य उत्पन्न हो गया। प्रयागराज महाकुम्भ 2025 का पहला अमृत स्नान (पवित्र डुबकी) मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर आरंभ हो गया, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं और संतों ने कड़कती ठंड के बावजूद गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में डुबकी लगाई। पहले अमृत स्नान में तीन करोड़ पचास लाख से अधिक भक्तों ने डुबकी लगाई। महाकुम्भ के पहले दो दिनों में ही श्रद्धालुओं की कुल संख्या 5 करोड़ से अधिक पहुंच गई।
श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान करते हुए पवित्रता और समृद्धि की कामना की। कई लोगों ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया, पुण्य और मोक्ष के लिए उनसे आशीर्वाद मांगा, क्योंकि मकर संक्रांति सूर्य देव को समर्पित है। वैज्ञानिक रूप से यह त्योहार उत्तरी गोलार्ध में सूर्य के संक्रमण को चिह्नित करता है, जो लंबे दिन और छोटी रातों का संकेतक है। पवित्र डुबकी लगाने के बाद, भक्तों ने अनुष्ठान किए और घाटों पर प्रार्थना की। उन्होंने तिल, खिचड़ी और अन्य पवित्र वस्तुएं देवों को समर्पित कीं। श्रद्धालुओं ने गंगा आरती में भी भाग लिया। परंपरा के अनुसार दान-पुण्य भी किया।
कैलिफोर्निया के रहने वाले भारतीय-अमरीकी सुदर्शन ने कुम्भ पर्व के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा कि “मैं छह साल पहले अर्धकुम्भ में आया था और मुझे यहां बेहद दिव्य अनुभव मिला था। इसलिए मैं महाकुम्भ मेले में वापस आया हूं क्योंकि यह विशेष ऊर्जा से जुड़ने का विशेष अवसर है जो आपको और कहीं नहीं मिलता, इसलिए मैं यहां प्रार्थना करने और जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए आशीर्वाद मांगने आया हूं। महाकुम्भ पर्व में आध्यात्मिक जागृति की ऐसी कई कहानियां हैं।
महाकुम्भ कोई साधारण पर्व नहीं है। यह त्रिवेणी संगम के घाटों को आस्था और दिव्यता में बदल देती है। प्रत्येक व्यक्ति संगम में पवित्र डुबकी लगाकर आत्मशुद्धि और आशीर्वाद मांग रहा था। श्रद्धालुओं की सामूहिक भक्ति से जनवरी की कंपकपाती ठंड बिल्कुल नगण्य लग रही थी।
लाखों लोगों की भीड़ के बीच, संतों, अखाड़ों के स्नान विशेष रूप से दर्शनीय थे। पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के नागा साधुओं ने भव्यता से शाही अमृत स्नान किया। भाले, त्रिशूल और तलवारों से सुशोभित एक जुलूस में भीड़ के बीच से निकले जो किसी राजसी आगमन से कम नहीं था। घोड़ों और रथों पर सवार होकर उनके तपस्वी रूपों ने आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार किया। इसके बाद भजन मंडलियों की स्वरलहरियों ने समा बांध दिया और उनके भजन के बीच भक्तों ने “हर हर महादेव” और “जय श्री राम” के उद्घोष किए।
यह भारतीय संस्कृति के चिरस्थायी मूल्यों का एक जीवंत रूप था, जिसमें श्रद्धा, कर्तव्य और एकता समाहित थी।
विभिन्न भाषाएं बोलने वाले, विभिन्न पारंपरिक पोशाक पहने, और अनूठे सांस्कृतिक प्रथाओं का पालन करने वाले श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने संगम तट पर एक अद्भुत सम्भाव का दृश्य उत्पन्न कर दिया। विविधता के बीच यह एकता महाकुम्भ के सबसे गहन पहलुओं में एक है। भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत जीवंत हो उठती है, जिसमें भारतीय तिरंगे के साथ-साथ सनातन परंपरा के भगवा ध्वज लहराते हैं, जो देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है।
संगम की यात्रा कई लोगों के लिए पर्व से बहुत पहले ही आरंभ हो गई थी। युवा और बूढ़े तीर्थयात्री अपने सिर पर गठरी उठाए मीलों पैदल चलकर वहां पहुंचे जो उनके अटूट विश्वास को दिखाता है। कुछ लोगों ने रात के समय ही तारों से जगमगाते आसमान के नीचे ठंडे पानी की परवाह न करते हुए पवित्र स्नान शुरू कर दिया। जैसे-जैसे सूरज आसमान पर चढ़ता गया, नागवासुकी मंदिर और संगम क्षेत्र भक्ति के विशाल केंद्र बिंदु बन गए। बुजुर्ग भक्त, महिलाएं और युवा प्रार्थना और पवित्र अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए एकत्रित हो गए।
महाकुम्भ भारतीय विरासत और आध्यात्मिकता का प्रतिबिंब है। मकर संक्रांति पर अमृत स्नान को जीवन में आशीर्वाद और सकारात्मकता लाने का उपाय माना जाता है। भक्तों का मानना है कि संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बीच दिन ढलने के बाद भी संगम तट पर विभिन्न गतिविधियां जारी रहीं। श्रद्धालुओं ने दीप प्रज्ज्वलित कर उन्हें जलधार में प्रवाहित किया। गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम गोधूलि में झिलमिलाता दिखा, ऐसा लगा जैसे स्वर्ग पृथ्वी को छू रहा हो। प्रयागराज पहुंचकर महाकुम्भ 2025 में मकर संक्रांति के साक्षी बनने वालों के लिए यह एक घटना मात्र नहीं, बल्कि जीने, महसूस करने और उसे आत्मा के अंदर समेटने का अनुभव था। यह समय का वह क्षण रहा जिसने सांसारिक और परमात्मा के बीच भेद को जैसे मिटा दिया।
एक संत के शब्दों में — महाकुम्भ केवल एक पर्व नहीं, यह शाश्वत से हमारे संबंध का स्मरण कराता है। यह वह स्थान है, जहां मानवता के अनगिनत धागे देवत्व और एकता के ताने-बाने बुनने के लिए एक साथ मिल जाते हैं।