संत, संघ व समाज मिलकर दुनिया का नेतृत्व करने वाला भारत बनाएंगे – रामलाल जी
महाकुम्भ नगर, 21 जनवरी।
महाकुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर 17 में अखिल भारतीय संत समागम का आयोजन किया गया। संत समागम में देशभर के विभिन्न मत-पंथ व सम्प्रदायों के संतों ने दो दिनों तक सामाजिक समरसता विषय पर मंथन किया। मंच पर संत, संघ, सरकार के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में न हिन्दू पतितो भवेत का उद्घोष किया गया। मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख रामलाल जी, प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के अलावा प्रमुख संत मंचासीन रहे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने संत समागम में कहा कि महाकुम्भ सारे विश्व को अध्यात्म का संदेश देगा। विश्व के लिए यह आदर्श कुम्भ है। इस समय पूरा हिन्दुस्तान महाकुम्भ क्षेत्र में स्थित है। प्रयाग की पावन धरती सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एक सूत्र में गूंथने का काम कर रही है। कुम्भ से एकता, समता, समानता व समरसता का संदेश देने के साथ ही समाज से भेदभाव को समाप्त करने का संकल्प लें। उन्होंने कहा कि सारे देश को एकता के सूत्र में बांधने का सामार्थ्य कुम्भ रखता है। भारत ऐसा देश है, जिसने नदी को मां माना। गंगा की धारा में अमीर-गरीब सब लोग स्नान करते हैं। विषमता को दूर करने का सामार्थ्य मां गंगा की धारा में है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख रामलाल जी ने कहा कि सर्वे भवन्तु सुखिन:, वसुधैव कुटुम्बकम, विश्व कल्याण की भावना, यही हिन्दुत्व, यही सनातन है। प्राचीनकाल से भारत सनातन राष्ट्र है। आने वाला समय भारत का है। उन्होंने कहा कि संत, संघ व समाज मिलकर दुनिया का नेतृत्व करने वाला भारत बनाएंगे। पूरी दुनिया को लगने लगा है कि भारत दुनिया का नेतृत्व कर सकता है, इसलिए दुनिया भर की ताकतें भारत को कमजोर करना चाहती हैं। इसलिए जो कमियां हैं, उसे दूर करते हुए आगामी 10 वर्षों में दुनिया को नेतृत्व दे सकने वाला भारत बनाना है।
उन्होंने कहा कि कुम्भ सबका है। हिन्दू समाज में सामाजिक समरसता निर्माण करने के लिए संतों को काम करना है। समाज में हिन्दुत्व की भावना निर्माण करनी है। युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाने की आवश्यकता है। संतों का आह्वान किया कि समाज को धर्म व अध्यात्म के साथ-साथ राष्ट्र व समाज के बारे में बताने की आवश्यकता है।
स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हिन्दू समाज को तोड़ने के अनेक प्रयत्न हुए। सनातन के अन्दर अस्पृश्यता नाम की चीज नहीं थी। 1857 से पहले की कोई भी पुस्तक जातिगत विभाजन से संबंधित नहीं है।
साध्वी उर्मिला जी ने कहा कि जाति-पाति के चक्कर में न पड़ें। आपस में छिन्न भिन्न रहेंगे तो धर्म को मजबूत नहीं कर पाएंगे। सेवा सबसे बड़ा धर्म है। मठ मंदिर के चक्कर में न पड़ें । पहले संत बदलें, समाज अपने आप बदलेगा।
महंत विकास दास जी ने कहा कि भक्तों का विश्वास संतों पर होता है। समरसता का रास्ता हम नहीं बताएंगे तो कौन बताएगा। प्रभु राम ने किसी को छोटा बड़ा नहीं माना।
सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी एवं प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने उपस्थित संतों पर पुष्प वर्षा की। उन्हें समरसता से संबंधित पुस्तक तथा स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मान किया।
इस अवसर पर सामाजिक समरसता गतिविधि के राष्ट्रीय संयोजक श्याम प्रसाद जी, सह संयोजक रवीन्द्र किरकोले जी, विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री देवजी भाई रावत सहित अन्य उपस्थित थे।