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महाकुम्भ नगर, 05 फरवरी। जूनापीठाधीश्वर व जूना अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने प्रभु प्रेमी संघ कुम्भ शिविर में आयोजित बौद्ध समागम में कहा कि बुद्ध और ऋषियों के संदेश में एकरुपता है। इसलिए वेद और बुद्ध की धाराएँ परस्पर एकीकृत होकर महाकुम्भ को सार्थकता प्रदान करते हुए वैचारिक संगम स्थापित करेंगी। बुद्ध भारत की अवतारी सत्ता हैं, वो पूजा के संकल्पों में प्रतिपल याद किए जाते हैं। मैत्री, एकात्मता और प्रीति के लिए बौद्ध धारा का समावेश होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति सभी का आदर करती है, ‘बुद्ध’ मतलब – करुणा, बुद्ध ईश्वरीय सत्ता है। आप सभी से आग्रह है कि परस्पर भागीदारी करें और समन्वित होकर कार्य करें। आज पूरा विश्व समाधान चाहता है। इसलिए यहाँ से एकात्मता का स्वर जाना चाहिए। हमारी सनातनी वैदिक संस्कृति की विचार धारा संसार को समाधान दे सकती है तथा पाथेय प्रदान कर सकती है।
महाकुम्भ यात्रा में तिब्बत, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, लाओस एवं विश्व के अनेक देशों से पधारे बौद्ध लामा, भंते व बौद्ध भिक्षु आए हैं।
संवाद कार्यक्रम को भय्याजी जोशी, इन्द्रेश कुमार, राजस्थान पत्रिका समूह के गुलाब कोठारी, तिब्बत की निर्वासित सरकार की मंत्री गैरी डोलमा, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के भदंत शीलरतन व भंते देवानंद ने संबोधित किया।
इस अवसर पर प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्षा महामण्डलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि, योग वशिष्ठ की विद्वान शैला माताजी, न्यासीगण स्वामी कैलाशानंद गिरि जी, सहित अन्य प्रभु प्रेमी गण उपस्थित रहे।