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पर्यावरण गतिविधि का एक थाली-एक थैला अभियान

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प्रयागराज/अयोध्या/दिल्ली। प्रयागराज महाकुम्भ में पर्यावरण गतिविधि के एक थैला-एक थाली अभियान ने स्वच्छ महाकुम्भ में अहम भूमिका निभाई है। थाली-थैला वितरण योजना ने लाखों रुपये तो बचाए ही अनेकानेक परिवारों को पहल के माध्यम से महापर्व से भी जोड़ा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, पत्तल-दोनों (डिस्पोजेबल कचरा) के उपयोग में 80 प्रतिशत से अधिक की कमी आई। अपशिष्ट (कचरा) का आकलन 40 हजार टन से अधिक का था, किन्तु एक थाली – एक थैला अभियान के चलते इसमें 29 हजार टन की कमी आई। महाकुम्भ के दौरान पत्तल-दोनों, प्लेट्स पर प्रतिदिन खर्च का अनुमान साढ़े तीन करोड़ रुपये का था। चालीस दिन के हिसाब से यह राशि विपुल की श्रेणी में रखी जा सकती है। जबकि इसमें परिवहन, ईंधन, सफाई कर्मचारी और अन्य संबंधित लागतें सम्मिलित नहीं हैं। इतना ही नहीं पुनः प्रयोज्य बर्तनों में भोजन परोसे जाने के कारण खाद्य अपशिष्ट में भी कमी आई।

पर्यावरण गतिविधि से प्राप्त जानकारी के अनुसार संगठनात्मक दृष्टि से 46 राज्यों में से तीन (मणिपुर, त्रिपुरा व अरुणाचल) को छोड़कर शेष 43 राज्यों के 7258 संग्रह केन्द्रों पर 2241 संगठनों के सहयोग से  थाली -थैला एकत्रित किया गया। अभियान के तहत कुल 14,17,064 थाली, 13,46,128 थैले और 2,63,678 गिलास  एकत्रित करके महाकुम्भ तक पहुंचाया। ये अखाडों, भंडारों व अन्य सामुदायिक धार्मिक रसोईयों में वितरित किए गए, जिससे लाखों रुपये की बचत हुई। इन सभी को डिस्पोजेबल वस्तुओं पर लाखों रुपये खर्च करना पड़ता। इन बर्तनों का उपयोग वर्षों तक होगा, जिससे अपशिष्ट में कमी और बचत भी निरन्तर चलेगी। साथ ही सार्वजनिक आयोजनों के लिए ‘बर्तन बैंक’ की अवधारणा विकसित होगी। इस बड़े अभियान को शून्य बजट के साथ केवल सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया गया।

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